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सौरभ अश्क
White फूलों ने भी रखी होंगी उपवास अपने सानिध्य में आलिंगन करने के लिए भौरों को। की होंगी ईश्वर को याद मांगी होंगी छोटे समय में अपने साथी का प्रेम आलिंगन होने का साथ। मजबूर भौरा ढूंढता आ पहुंचा होगा फूलों के पास इठलाती फूल भौरों को देख सहम गई होगी लाख जतन के बाद भौरे ने जताई विश्वाश तब फूल ने चुपके चुपके सौप दी अपनी द्रवित प्रेम परिहास आवारा भौरा फूल के प्रेम को समझ न पाया रसास्वादन कर दौड़ पड़ा दूजे फूलों के पास वफा के घात पर परिघात को बर्दास्त न किया और टूट गई वो डाली से छोड़ दी अपनी सांस ©सौरभ अश्क #flowers #प्रेम #प्रकृति #फूलों #सौरभ अश्क
सौरभ अश्क
White फूलों ने भी रखी होंगी उपवास अपने सानिध्य में आलिंगन करने के लिए भौरों को। की होंगी ईश्वर को याद मांगी होंगी छोटे समय में अपने साथी का प्रेम आलिंगन होने का साथ। मजबूर भौरा ढूंढता आ पहुंचा होगा फूलों के पास इठलाती फूल भौरों को देख सहम गई होगी लाख जतन के बाद भौरे ने जताई विश्वाश तब फूल ने चुपके चुपके सौप दी अपनी द्रवित प्रेम परिहास आवारा भौरा फूल के प्रेम को समझ न पाया रसास्वादन कर दौड़ पड़ा दूजे फूलों के पास वफा के घात पर परिघात को बर्दास्त न किया और टूट गई वो डाली से छोड़ दी अपनी सांस ©सौरभ अश्क #सौरभ अश्क
सौरभ अश्क
White हमने तोड़े नहीं कभी कोई फुल टहनियों से अनुमति लेकर क्योंकि न तो फूलों की भाषा हमें मालूम है और न ही उनकी बोली हमने तो पुरुषार्थ के कलुषित झूठे आन में बेबस कर दिया है इन फूलों को और डरा दिया है इन टहनियों को किताबों की चाकरी करने वाले हम इंसान फूलों की भाषा नहीं पढ़ पाए हमने कभी ईश्वर के चरणों में तो कभी शहीद के पांवों में बिछाया है इन्हें पर इनकी शहादत कौन मनाए फूल के छोटे जीवन होते हैं उन छोटे जीवन में उनके भी सपने होते हैं खिलने का फूलने का और मुरझाने का हम छलिए मनुष्य किसी मुरझाए फूलों को कभी प्रेम न किया हमने लील ली है फूलों के जीवन ©सौरभ अश्क #flowers #फूल #पुष्प #प्रेरणा #अपनापन #सौरभ अश्क
Nitish Kumar Mishra "योद्धा युग"
मस्तक शोभित जिसके चंद्र हैं जटाओं में विराजित जिसके गंग हैं, आभूषण जिसका सर्प, मुंड माल हैं स्थल उसका कैलाश पर्वत जों विशाल हैं वस्त्र जिसका सिंह छाल हैं, मुठ्ठी में जिसके तीनों काल हैं, वहीं नीलकंठ वहीं महाकाल हैं, काशी में विश्वनाथ तों सौराष्ट्र में वो ही "सोमनाथ" हैं। ©Nitish Kumar Mishra "योद्धा युग" मस्तक शोभित जिसके चंद्र हैं जटाओं में विराजित जिसके गंग हैं, आभूषण जिसका सर्प, मुंड माल हैं स्थल उसका कैलाश पर्वत जों विशाल हैं वस्त्र जिसक
सौरभ अश्क
भरोसा इस बात का है... की ये जमीं ये आसमां ये कुदरत के बनाए सारे चीज हमेशा बने रहेंगे विश्वाश इस बात का है कि.... इसे अभिभूत करने वाला हम इंसान शरीर रूपी होकर इसे विलासिता या अध्यात्म के भोग रूपी बंधन में कुछ दिन रहकर विदा लेंगे । डर इस बात का है.... की मेरे सानिध्य में रहने वाले लोग इस बात की चिंता में रहेंगे की मेरे बाद कौन घर की जिम्मेवारी लेगा कौन ? और मैं दिल को शुकून देता हूँ... की दुनिया सिर्फ और सिर्फ मुझे से नहीं चलती । ©सौरभ अश्क #सौरभ अश्क