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Shivkumar barman
White दीपावली का पर्व करता मुझसे यही प्रस्तवाना आत्मिक संप्रभुता की हृदय में करूं संस्थापना सादगीयुक्त नवीन सुन्दरता जीवन में अपनाऊं मन को सुकून देने वाला संदेश सबको सुनाऊं अपने घर की तरह मन बुद्धि भी स्वच्छ बनाऊं दिव्य गुणों सुगन्ध से अपना हृदयतल महकाऊं मन का अंधेरा मिटाने वाला दीपक मैं जलाऊं हर आत्मा का मुख मण्डल देदीप्यमान बनाऊं सम्मानयुक्त मीठे बोल वाणी से सबको सुनाऊं सुख शांति भरी शुभकामना सबको देता जाऊं ©Shivkumar barman *दीपावली पर्व की शुभकामना* दीपावली का पर्व करता मुझसे यही प्रस्तवाना आत्मिक संप्रभुता की हृदय में करूं संस्थापना सादगीयुक्त नवीन सुन्दरता
*दीपावली पर्व की शुभकामना* दीपावली का पर्व करता मुझसे यही प्रस्तवाना आत्मिक संप्रभुता की हृदय में करूं संस्थापना सादगीयुक्त नवीन सुन्दरता
read moreRakesh frnds4ever
White मुख से जो शब्द निकलते हैं उनको तो सभी अपने अपने हिसाब से सुन लेते हैं क्योंकि शब्दों के अर्थ हर कोई अपनी अपनी समझ के हिसाब से लगता है,, किस व्यक्ति ने कहे है किस जगह कहे हैं किस विषय पर कहे हैं किसलिए कहे हैं क्यों कहे हैं,, इन आधारों पर हर कोई हर प्रकार से अलग अलग अर्थ मतलब निकाल कर सुनता तो है पर उनके अर्थों को समझता कोई नहीं,,, और दिल से जो शब्द निकलते हैं उनको समझना तो दूर किसी को सुनाई तक नहीं देते हैं,, ©Rakesh frnds4ever #मुख से जो शब्द निकलते हैं उनको तो सभी अपने अपने हिसाब से सुन लेते हैं क्योंकि #शब्दोंकेअर्थ हर कोई अपनी अपनी #समझ के हिसाब से लगता ह
#मुख से जो शब्द निकलते हैं उनको तो सभी अपने अपने हिसाब से सुन लेते हैं क्योंकि #शब्दोंकेअर्थ हर कोई अपनी अपनी #समझ के हिसाब से लगता ह
read moreसंस्कृतलेखिकातरुणाशर्मा-तरु
तरु व क्रिशु पक्षतः सर्वदेशवासिनाम् अनन्त चतुर्थी हेतु शुभकामना विश्व को शुभकामनाएं! ⚜️⚜️⚜️⚜️⚜️⚜️⚜️⚜️⚜️⚜️⚜️⚜️⚜️⚜️ समस्त देशवासियों को तरु
read moreMAHENDRA SINGH PRAKHAR
मुक्तक :- जीवन भर अब नाथ , तुम्हारा बनकर रहना । जैसे राखो आप , यहाँ पर हमको रहना । नही लोभ औ मोह , कभी जीवन में आये- यही कृपा अब नाथ , बनाये हम पर रहना ।। मातु-पिता है बृद्ध , तनिक सेवा तो कर लो । और तनय का धर्म , निभाकर झोली भर लो । ऐसे अवसर नित्य , नही जीवन में आते - मिले परम पद आप , तनिक धीरज तो धर लो ।। बनकर हरि का दास , भक्ति का पहनूँ गहना । हर क्षण मुख पे राम , बोल फिर क्या है कहना । जगे हमारे भाग्य , शरण जो उनकी पाया - अब तो उनका नाम , हमें सुमिरन है करना ।। यह तन मिट्टी जान , जलायी हमने काया । हृदय बिठाकर राम , राम को हमने पाया । अब तो आठों याम , उन्हीं का सुमिरन होता - यह मन उनका धाम , उन्ही की सारी माया ।। महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR मुक्तक :- जीवन भर अब नाथ , तुम्हारा बनकर रहना । जैसे राखो आप , यहाँ पर हमको रहना । नही लोभ औ मोह , कभी जीवन में आये- यही कृपा अब नाथ , बनाये
मुक्तक :- जीवन भर अब नाथ , तुम्हारा बनकर रहना । जैसे राखो आप , यहाँ पर हमको रहना । नही लोभ औ मोह , कभी जीवन में आये- यही कृपा अब नाथ , बनाये
read moreसंस्कृतलेखिकातरुणाशर्मा-तरु
आप सभी को भी छठी उत्सव की हार्दिक शुभकामनाएं 🌿 🙏 . शीर्षक छठी उत्सव . विधा शुभकामना . . भाव वास्तविक क्रिशु हमारा भाई के लिए
read moreMAHENDRA SINGH PRAKHAR
कुण्डलिया :- आती होंगी राधिका , सुनकर वंशी तान । मुरलीधर अब छोड़ दो , अधरो की मुस्कान ।। अधरो की मुस्कान , बढ़ाये शोभा न्यारी । मुख मण्ड़ल के आप , नही सोहे लाचारी ।। कैसे तुमसे दूर , कहीं राधा रह पाती । सुन कर वंशी तान , दौड़ राधा नित आती ।। महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR कुण्डलिया :- आती होंगी राधिका , सुनकर वंशी तान । मुरलीधर अब छोड़ दो , अधरो की मुस्कान ।। अधरो की मुस्कान , बढ़ाये शोभा न्यारी । मुख मण्ड़ल के
कुण्डलिया :- आती होंगी राधिका , सुनकर वंशी तान । मुरलीधर अब छोड़ दो , अधरो की मुस्कान ।। अधरो की मुस्कान , बढ़ाये शोभा न्यारी । मुख मण्ड़ल के
read moreMAHENDRA SINGH PRAKHAR
कुण्डलिया :- आती होंगी राधिका , सुनकर वंशी तान । मुरलीधर अब छोड़ दो , अधरो की मुस्कान ।। अधरो की मुस्कान , बढ़ाये शोभा न्यारी । मुख मण्ड़ल के आप , नही सोहे लाचारी ।। कैसे तुमसे दूर , कहीं राधा रह पाती । सुन कर वंशी तान , दौड़ राधा नित आती ।। महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR कुण्डलिया :- आती होंगी राधिका , सुनकर वंशी तान । मुरलीधर अब छोड़ दो , अधरो की मुस्कान ।। अधरो की मुस्कान , बढ़ाये शोभा न्यारी ।
कुण्डलिया :- आती होंगी राधिका , सुनकर वंशी तान । मुरलीधर अब छोड़ दो , अधरो की मुस्कान ।। अधरो की मुस्कान , बढ़ाये शोभा न्यारी ।
read moreसंस्कृतलेखिकातरुणाशर्मा-तरु
सर्वेभ्यः संस्कृतदिने शुभकामना🙏 आप सभी को संस्कृत दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं स्वलिखित रचना शीर्षक संस्कृत भाषा विधा कविता भाषा शैली संस
read moreChandrawati Murlidhar Gaur Sharma
White ढूंढ रही हैं नजरे शायद अभी दिख जाएं। आया है फिर राखी का त्यौहारकहीं किसी बहन को बिछड़ा भाई तो किसी भाई को बिछड़ी बहन मिल जाएं। माना राखी महंगी और रिश्ते सस्ते हों गए है। पर कभी तो बाहरी दिखावा छोड़ मन की आंखों से मेल हटा कर मिल लिया करो। जानें कब किसी की अगली सुबह आंख न खुले इसलिए जब याद आए तब ही बात कर लिया करों। ©Chandrawati Murlidhar Gaur Sharma बार कोई त्यौहार आता है, पर तू नज़र नहीं आता है। इस बार भी राखी का त्यौहार आया है, पर यादों को कोई मिटा नहीं पाया है। पूजा की थाली सजाती हूँ
बार कोई त्यौहार आता है, पर तू नज़र नहीं आता है। इस बार भी राखी का त्यौहार आया है, पर यादों को कोई मिटा नहीं पाया है। पूजा की थाली सजाती हूँ
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