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ऋतुराज पपनै "क्षितिज"
Unsplash दीमक कुतरता नहीं जैसे जिल्द को, बस अन्दर ही अन्दर खत्म कर देता है किताबों को। चिन्ता कुतरती नहीं है वैसे ही जिस्म को, बस अन्दर ही अन्दर खत्म कर देती है आदमी को, सपनों को या ख्वाबों को। ©ऋतुराज पपनै "क्षितिज" #चिन्ता #ख्वाब #मंजिल
reena sagar
Unsplash मैंने जो देखा वो सच है क्या?ये वही है न ,,लगता तो वो ही है,,, एक बार मुड़ कर देखती हूं !हां! यह वही है, वही है लेकिन ये यहां कैसे? पूछो ,,, नहीं नहीं नहीं ,सफेद शर्ट ,वही गाड़ी पर खड़े होने का अंदाज एक पैर गाड़ी पर दूसरा पैर जमीन पर लेकिन इसने मुझे पहचान क्यों नहीं अब मैं दिखती भी तो वैसी नहीं ,,कहता था_ जब तुम मेरे पास से होकर गुजरोगी तो मेरी मुट्ठी बंद हो जाएगी देखो तो सही एक बार पलट कर,,, ये क्या! आज भी मुट्ठी बंद है ,,, मैं जीत गयी,,, ©reena sagar #library जीत गयी
#library जीत गयी
read moreहिमांशु Kulshreshtha
हम बैठे हैं एक दूसरे के सामने घुटनों के बल, किसी अपराधी की तरह किसी सजा की प्रतीक्षा में.. हम जानते हैं, हमारा अपराधबोध और, प्रेम में होते हुए भी अलगाव… जो हमारी सबसे बड़ी सजा थी इसलिए… गर्म आँसुओं से बह गईं सभी शिकायतें, झुकी नजरों ने काट दिए गले… गलतफहमियों के। हम बैठे रहे कुछ क्षण.. भीगे गालों को सहलाते हुए टूटे फूटे शब्दों में और रोते हुए … एक दूजे को बहलाते हुए….!!!! ©हिमांशु Kulshreshtha चाह....
चाह....
read morePraveen Jain "पल्लव"
White पल्लव की डायरी चीख रही है मानवता वेदनाओं से कराहती है गैर बराबरी इतनी बढ़ गयी भुखमरी सताती है कुछ आकाओ के चंगुल में विश्व जकड़ा है तबाही तबाही जग में दिखाती है डॉलर की चमक फीकी ना पड़ जाये कई देशों की अर्थव्यवस्था चट कर जाती है डर भय और पेटेंट के बल पर जग को निगलती जाती है शांति का आवरण ओड़ कर विश्व में आतंक फैलाती है प्रवीण जैन पल्लव ©Praveen Jain "पल्लव" #International_Day_Of_Peace गैर बराबरी इतनी बढ़ गयी
#International_Day_Of_Peace गैर बराबरी इतनी बढ़ गयी
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