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IG @kavi_neetesh

कात्यायनी माता अराधना (माता रानी के षष्टम रूप की अराधना) “आप सभी मित्रों एवं साथियों तथा प्यारे बच्चों को शारदीय नवरात्रि के परम पावन #navratri #भक्ति

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MAHENDRA SINGH PRAKHAR

लावणी छन्द इस माँ से जब दूर हुआ तो , धरती माँ के निकट गया । भारत माँ के आँचल से तब , लाल हमारा लिपट गया ।। सरहद पर लड़ते-लड़ते जब , थक कर देखो #कविता

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White लावणी छन्द
इस माँ से जब दूर हुआ तो , धरती माँ के निकट गया ।
भारत माँ के आँचल से तब , लाल हमारा लिपट गया ।।
सरहद पर लड़ते-लड़ते जब , थक कर देखो चूर हुआ ।
तब जाकर माँ की गोदी में , सोने को मजबूर हुआ ।।

मत कहो काल के चंगुल में , लाल हमारा रपट गया ।
जाने कितने दुश्मन को वह , पल भर में ही गटक गया ।।
सब देख रहे थे खड़े-खड़े , अब उस वीर बहादुर को ।
जिसके आने की आहट भी , कभी न होती दादुर को ।।

पोछ लिए उस माँ ने आँसूँ, जिसका सुंदर लाल गया ।
कहे देवकी से मिलने अब , देख नन्द का लाल गया ।।
तीन रंग से बने तिरंगे , का जिसको परिधान मिले ।
वह कैसे फिर चुप बैठेगा , जिसको यह सम्मान मिले ।।

सुबक रही थी बैठी पत्नी , अपना तो अधिकार गया ।
किससे आस लगाऊँ अब मैं , जीने का आधार गया ।।
और बिलखते रोते बच्चे , का अब बचपन उजड़ गया ।
कैसे खुद को मैं समझाऊँ , पेड़ जमीं से उखड़ गया ।।

महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR लावणी छन्द
इस माँ से जब दूर हुआ तो , धरती माँ के निकट गया ।
भारत माँ के आँचल से तब , लाल हमारा लिपट गया ।।
सरहद पर लड़ते-लड़ते जब , थक कर देखो

MAHENDRA SINGH PRAKHAR

ग़ज़ल :- इस ज़िन्दगी का बाकी भी अरमान नहीं है  जो भी दिया है दुनिया ने सम्मान नहीं है  #शायरी

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White ग़ज़ल :-

इस ज़िन्दगी का बाकी भी अरमान नहीं है 
जो भी दिया है दुनिया ने सम्मान नहीं है 

करना था इसे काम तरक्की हो वतन की
फ़िर्को में बटा लड़ता क्या नादान नहीं है 

किससे करूँ मैं जाके शिकायत भी अदू की 
 पहचान मगर इनकी भी आसान नहीं है 

इतना न करो जुल्म़ भी सरकार सभी पर 
इंसान की औलाद है शैतान नहीं है 

हर जुल्म़ लिखा होगा हिसाबों में तुम्हारा 
बन्दे खुदा के घर के बेईमान नहीं है 

दौलत के पुजारी हैं न होंगे ये किसी के 
जो मजहबों में बाटता इंसान नहीं है 

कुछ लोग हैं दे देते हैं जो जान वतन पर 
इस मुल्क़ की  ऐसे तो बढ़ी शान नहीं है 

अब और न तारीफें करें आप यहाँ पर 
अब इतने भी  अच्छे यहां परिधान नहीं है 

आया खुदा के घर से तो इंसान प्रखर था 
पर आज उसी की कोई पहचान नहीं है 

महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR ग़ज़ल :-


इस ज़िन्दगी का बाकी भी अरमान नहीं है 

जो भी दिया है दुनिया ने सम्मान नहीं है 

MAHENDRA SINGH PRAKHAR

दोहा :- जबसे बन्द प्रणाम है, सब कुछ हुआ विराम । रिश्ते आज प्रमाण हैं , सम्मुख है परिणाम ।। भजता आठों याम हूँ , जिनका हर पल नाम । वे ही सुधि #कविता

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दोहा :-
जबसे बन्द प्रणाम है, सब कुछ हुआ विराम ।
रिश्ते आज प्रमाण हैं , सम्मुख है परिणाम ।।
भजता आठों याम हूँ , जिनका हर पल नाम ।
वे ही सुधि लेते नहीं , कण-कण में है धाम ।।
हर पल तेरी ही शरण , रहता हूँ घनश्याम ।
कर दे अब कल्याण तो , मन में लगे विराम ।।
सुन लो इस संसार में , दो ही प्यारे नाम ।
पहला सीता राम है , दूजा राधेश्याम ।।
जीवन रक्षक आप हैं , जीवन दाता आप ।
फिर बतलाएँ आप प्रभु , होता क्यूँ संताप ।।
वह मेरा भगवान है , यह तन है परिधान ।
बस इतना ही जानता , यह बालक नादान ।।
डाल बाँह बीवी गले , भूल गये वह फर्ज ।
अब तो माँ के दूध का , याद नही है कर्ज ।।

महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR दोहा :-
जबसे बन्द प्रणाम है, सब कुछ हुआ विराम ।
रिश्ते आज प्रमाण हैं , सम्मुख है परिणाम ।।
भजता आठों याम हूँ , जिनका हर पल नाम ।
वे ही सुधि
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