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Bharat Bhushan pathak
विषय-वीर/ आल्हा छंद विधा-१६-१५ मात्रा प्रति चरण,चार चरण। दो-दो चरण समतुकांत।चरणांत गुरु लघु रखना है। छंदों का तुम भी कर जाना,केवल थोड़ा ही अभ्यास। नहीं कभी तुम ऐसे-वैसे,करना नहीं शब्द विन्यास।। ये विधा है बहुत ही प्यारी,सीखो इसका अभी विधान। अँधेरे में तीर ना छोड़ो,सोच-समझ करना संधान।। काव्य लगे बिना छंद सूना,सीखो थोड़ा इसको आज। स्वरविहीन ही गाना ये है,संगीत बिना ये है साज।। ©Bharat Bhushan pathak hindi poetry on life hindi poetry poetry in hindi poetry
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read moreBharat Bhushan pathak
#विधा-सोरठा छंद देकर जिसने प्राण,रक्षित जीवन को किया। लिया नहीं अवकाश,सेवा माता को दिया।।१ खाते हरदम चोट,तपते रवि सम ही यहाँ । पल भर को भी चैन,लेते वो बोलो कहाँ।।२ छोड़ सदा परिवार,सदैव सरहद पे रहें। करते सबसे प्रेम,वार शत्रु के भी सहें।।३ मिले हमें आनंद,उपाय करते हैं यही। रहते ओढ़े बर्फ,कहता एकदम हूँ सही।।४ ©Bharat Bhushan pathak poetry in hindi poetry lovers hindi poetry hindi poetry on life poetry on love
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read moreDr Deepak Kumar Deep
White बेटी तुम्हारा जन्मदिन आया है, खुशियों का फिर से संदेसा लाया है। हंसती रहो तुम यूं ही सदा, हर पल हो खुशियों से भरा। तुम हो हमारे जीवन की रोशनी, तुमसे ही है घर की हर खुशी। सपनों की उड़ान यूं भरती रहो, हमेशा आगे बढ़ती और चमकती रहो। जन्मदिन की ढेरों शुभकामनाएं! © डाॅ दीपक कुमार 'दीप' . ©Dr Deepak Kumar Deep hindi poetry poetry hindi poetry on life
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read moreBindi
न राम है न रावण है ये कलयुग की रामायण है युगों युगों से सुन रहे थे जो गाथा वो बनके रह गई मनोरंजन का साधन है यँहा हर मोड़ पर खड़ा इक दानव है न कोई रावण जैसा सच्चा ब्राह्मण है न शबरी के वो झूठे बेर है न बचा इब दिलों मे प्रेम है न कोई वचन निभाने वाला है पिता के कहने पर न कोई वनवास जाने वाला है न लक्ष्मण जैसा भाई है मन मे बस नफरत की खाई है न मर्यादा पुरुषोत्तम राम है जो समझे माता पिता के चरणों मे ही चारो धाम है न सीता सी कोई सती है वैचारिक मतभेदों पर वो अब अड़ी है न हनुमंत जैसा कोई सखा है जो सुख दुःख की घड़ी मे संग खड़ा है रामायण के अन्य पात्र भी बदल रहे हैं अपना स्वरूप कलयुग का इंसान भूलता जा रहा है अपना मूल रूप न राम है न रावण है ये कलयुग की रामायण है ©Bindi #maa #🩷❤️🪷 hindi poetry on life #ramayan
Preet k dil say
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read moreVivek saxena
White समय का चक्र बड़ा निराला कभी हंसता कभी रुलाता। समय है बड़ा बलवान इसको अभीतक जान न सका कोई पहलवान। समय ही नीचे गिराता समय ही ऊपर उठता समय ही घड़ी का समय बताता। समय का खेल निराला ,समय ही सब कुछ करता। समय ही जन्म लेता समय ही मृत्यु करता। समय ही मीठा बुलवाता समय ही कणुआ बुलावता। समय ही राजा से रंक बनाता समय ही रंक से राजा बनाता। समय का चक्र निराला कभी हंसता कभी रुलाता। क्योंकि समय ही बड़ा बलवान अभी तक जान न सका कोई पहलवान। ©Vivek saxena #GoodMorning hindi poetry on life poetry lovers poetry on love hindi poetry poetry
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