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Satish Kumar Meena
बचपन अभी गया नहीं, खेल खिलौने बाकी है। इन मासूमों के हाथों में,, नादानी की राखी है।। जग का इनको पता नहीं, इंसान फरिश्ता धरती का। कुछ ऐसे भी होते है लाड़ो,, जिनका काम है गलती का।। ऐसे सख्शों से बचना है, जिनकी आंखों में शर्म नहीं। अपना पराया कोई नहीं, नियत खोटी और मर्म नहीं।। सच्चे दिल के कम ही मिलेंगे, पहचानना मुश्किल होगा। हे लाड़ो! अपनी रक्षा का,, स्वयं भार उठाना तुझे होगा। कानून की आंखे बन्द है, बस! पट्टी हटाना बाकी है। इन मासूमों के हाथों में,, नादानी की राखी है।। ©Satish Kumar Meena @नादानी की राखी
@नादानी की राखी
read moreAttitude Life
White हमसे जलने वालों के लिए बस इतना पैगाम है, जलना छोड़ दो, नहीं तो राख हो जाओगे मेरे नाम से। ©Attitude Life हमसे जलने वालों के लिए बस इतना पैगाम है, जलना छोड़ दो, नहीं तो राख हो जाओगे मेरे नाम से। #AttitudeShayari #Zindagi #SelfRespect #Motivat
हमसे जलने वालों के लिए बस इतना पैगाम है, जलना छोड़ दो, नहीं तो राख हो जाओगे मेरे नाम से। #Attitudeshayari #Zindagi #selfrespect Motivat
read moreMAHENDRA SINGH PRAKHAR
मुक्तक :- जीवन भर अब नाथ , तुम्हारा बनकर रहना । जैसे राखो आप , यहाँ पर हमको रहना । नही लोभ औ मोह , कभी जीवन में आये- यही कृपा अब नाथ , बनाये हम पर रहना ।। मातु-पिता है बृद्ध , तनिक सेवा तो कर लो । और तनय का धर्म , निभाकर झोली भर लो । ऐसे अवसर नित्य , नही जीवन में आते - मिले परम पद आप , तनिक धीरज तो धर लो ।। बनकर हरि का दास , भक्ति का पहनूँ गहना । हर क्षण मुख पे राम , बोल फिर क्या है कहना । जगे हमारे भाग्य , शरण जो उनकी पाया - अब तो उनका नाम , हमें सुमिरन है करना ।। यह तन मिट्टी जान , जलायी हमने काया । हृदय बिठाकर राम , राम को हमने पाया । अब तो आठों याम , उन्हीं का सुमिरन होता - यह मन उनका धाम , उन्ही की सारी माया ।। महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR मुक्तक :- जीवन भर अब नाथ , तुम्हारा बनकर रहना । जैसे राखो आप , यहाँ पर हमको रहना । नही लोभ औ मोह , कभी जीवन में आये- यही कृपा अब नाथ , बनाये
मुक्तक :- जीवन भर अब नाथ , तुम्हारा बनकर रहना । जैसे राखो आप , यहाँ पर हमको रहना । नही लोभ औ मोह , कभी जीवन में आये- यही कृपा अब नाथ , बनाये
read moreKavi Avinash Chavan(युवा कवी)
प्रेमात मागतो मी माझीच राख थोडी, देवून टाक माझ्या चितेस आग थोडी.. #युवाकवी
read moreMAHENDRA SINGH PRAKHAR
गीत :- तुम जननी हो इस जग की , रच लो एक नया संसार । क्यों घुट-घुट कर फिर जीती हो , क्यों सब सहती आत्याचार ।। तुम जननी हो इस जग की .... पुरुष वर्ग नारी पर भारी , क्यों होता है करो विचार । निकल पड़ो हाथो में लेकर , घर से अपने आज कटार ।। बेटे भाई पति को अपने , दान करो अपने शृंगार । तुम जननी हो इस जग की .... कितनी बहनें कितनी बेटी , होंगी कब तक भला शिकार । चुप बैठी है सत्ता सारी , विवश हुआ है पालनहार ।। मन में अपने दीप जलाओ , नहीं मोम से जग उँजियार । तुम जननी हो इस जग की ..... छोड़ों चकला बेलन सारे , बढ़कर इन पर करो प्रहार । बहुत खिलाया बना-बना कर , इन्हें पौष्टिक तुम आहार ।। बन चंडी अब पहन गले में , इनको मुंडों का तू हार । तुम जननी हो इस जग की .... बन्द करो सभी भैय्या दूज , बन्द करो राखी त्यौहार । ये इसके हकदार नही है , आज त्याग दो इनका प्यार ।। जहाँ दिखे शैतान तुम्हें ये , वहीं निकालो तुम तलवार । तुम जननी हो इस जग की .... सिर्फ बेटियाँ जन्म लिए अब , सुतों का कर दो बहिष्कार । खो बैठें है यह सब सारे , बेटा होने का अधिकार ।। मिलकर जग से दूर करो यह , फैल रहा जो आज विकार । तुम जननी हो इस जग की .... तुम जननी हो इस जग की , रच लो एक नया संसार । क्यों घुट-घुट कर फिर जीती हो , क्यों सब सहती आत्याचार ।। महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR गीत :- तुम जननी हो इस जग की , रच लो एक नया संसार । क्यों घुट-घुट कर फिर जीती हो , क्यों सब सहती आत्याचार ।। तुम जननी हो इस जग की .... पुरुष
गीत :- तुम जननी हो इस जग की , रच लो एक नया संसार । क्यों घुट-घुट कर फिर जीती हो , क्यों सब सहती आत्याचार ।। तुम जननी हो इस जग की .... पुरुष
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