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Shiv Narayan Saxena
White खेल भयानक है खुला, चूके होत अचेत। ज़हर हवाओं में घुला, रहिये सभी सचेत।। वर्षा के जल से धुला, पावन पवन सुहाय। ज़हर हवाओं में घुला, है अब कौन सहाय।। ©Shiv Narayan Saxena #Sad_Status रहिये सभी सचेत.....
#Sad_Status रहिये सभी सचेत.....
read moreShiv Narayan Saxena
White चाहो ना चाहो रहै, सब करमों की बात। पाप - पुण्य ना दें दखल, रहिये सच के साथ।। झूठा जग व्यवहार है, प्रभु बिन सभी अनाथ। सच नाता रघुनाथ का, रहिये सच के साथ।। जीवन - मरण न हाथ में, करनी अपने हाथ। हरि की साखी में जिये, कभी न बिगड़े बात।। ©Shiv Narayan Saxena #rajdhani_night रहिये सच के साथ
#rajdhani_night रहिये सच के साथ
read morePURAN SINGH CHILWAL
White बुद्ध ने महल का त्याग किया शांति की तलाश में और हम शांति का त्याग कर रहे हैं महल की तलाश में मुझे पता नहीं पाप और पुण्य क्या है बस इतना पता है कि जिस कार्य से किसी का ये है और जिससे किसी के चेहरे पर मुस्कान आए वह पुण्य है ©PURAN SINGH CHILWAL #sad_quotes पुराने दिनों में घर में अजीब सा रिश्ता था दरवाजे आपस में गले मिलते थे आप तो दरवाजा भी अकेले हो गया💕💕💞🤍🤍🌷🌷🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏
#sad_quotes पुराने दिनों में घर में अजीब सा रिश्ता था दरवाजे आपस में गले मिलते थे आप तो दरवाजा भी अकेले हो गया💕💕💞🤍🤍🌷🌷🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏
read moreN S Yadav GoldMine
White {Bolo Ji Radhey Radhey} उन लोगों के सामने खुश रहिये, जो आपको पसंद नहीं करते, उन्हें जलाने के लिए काफी है!! जय श्री राधेकृष्ण जी।। ©N S Yadav GoldMine #sad_quotes {Bolo Ji Radhey Radhey} उन लोगों के सामने खुश रहिये, जो आपको पसंद नहीं करते, उन्हें जलाने के लिए काफी है!! जय श्री राधेकृष्ण जी।
#sad_quotes {Bolo Ji Radhey Radhey} उन लोगों के सामने खुश रहिये, जो आपको पसंद नहीं करते, उन्हें जलाने के लिए काफी है!! जय श्री राधेकृष्ण जी।
read moreMiMi Flix
"रहस्यमयी खदान का राज" - शहर के बाहरी हिस्से में स्थित पुरानी खदानों के रहस्य की खोज में आर्यन और सिद्धार्थ की साहसिक यात्रा शुरू होती है। ज
read moreMAHENDRA SINGH PRAKHAR
दोहा :- पति पत्नी के बीच में, होती नाजुक डोर । ऐसे मत छेडो उन्हें , हो जाए दो छोर ।। प्रेम कभी मरता नही , मर जाते हैं लोग । बात वही बतला गये , लगा जिन्हें था रोग ।। बात-बात पर जग भला , क्यों देता है टोक । कहाँ आयु है प्रेम की , जो लूँ दिल को रोक ।। करते रहते तंज हैं , क्या होता है प्यार । सब कुछ तो हैं हारतें , दिल को भी दें हार ।। जीवन से अब हार कर , पाया है यह सीख । पेरी जाती है सदा , जग में देखो ईख ।। आशा की पूँजी बड़ी, कभी न होती खर्च । रखिये अपने साथ नित , चाहे जायें चर्च ।। आशा हो तो ईश भी , मिल जाते हैं द्वार । वरना रहिये खोजते , बन पागल संसार ।। युग कितने बीते यहाँ , किया नहीं विश्राम । आशाओं से राम जी , लौटे अपने धाम ।। धैर्य रखे इंसान तो , सब संभव हो जाय । आशाओं के दीप से , जग रोशन हो जाय ।। महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR दोहा :- पति पत्नी के बीच में, होती नाजुक डोर । ऐसे मत छेडो उन्हें , हो जाए दो छोर ।। प्रेम कभी मरता नही , मर जाते हैं लोग । बात वही बतला गय
दोहा :- पति पत्नी के बीच में, होती नाजुक डोर । ऐसे मत छेडो उन्हें , हो जाए दो छोर ।। प्रेम कभी मरता नही , मर जाते हैं लोग । बात वही बतला गय
read moreJaleshwar Mehta
MiMi Flix
"जादुई पुस्तकालय | ज्ञान का खजाना और अनु की जीवन बदलने वाली खोज" - जब अनु ने खोला जादुई पुस्तकालय का दरवाजा, तब खुली दुनिया का सबसे अद्वितीय
read moreChandrawati Murlidhar Gaur Sharma
White आज़ मैंने एक बच्चे को बाहर जाते हुए और पीछे मुड़-मुड़ कर देखते हुए देखा, तो मुझे अपने बचपन की बात याद आई। मैंने सोचा, इसे साझा कर दूं, क्योंकि हो सकता है कि आपने भी ऐसा किया हो। जब हम बचपन में अंधेरे से डरते थे, और हमें रात को किसी काम से बाहर भेजा जाता था, या फिर किसी पड़ोसी के घर पर खेलते-खेलते देर हो जाती थी और अंधेरा छा जाने के कारण डर लगने लगता था, लेकिन घर भी तो जाना था। तो हम अपने ताऊजी, मां, काकी, या दादी से कहते थे कि "घर छोड़ कर आ जाओ।" और वे कहते, "हां, चलो छोड़ आते हैं।" जब घर का मोड़ आता तो वे कहते, "अब चल जा," लेकिन डर तो लग रहा होता था। तो हम कहते, "आप यहीं रुकना," और वे बोलते, "मैं यहीं हूँ, तेरा नाम बोलते रहूंगा।" जब तक वे हमारा नाम लेते रहते थे और जब तक हम घर नहीं पहुंच जाते थे, हमें यह विश्वास होता था कि वे हमारे साथ ही हैं, भले ही वे घर लौट चुके होते। लेकिन जब तक हमारा दरवाजा नहीं खुलता था, तब तक डर लगता था कि कोई हमें पीछे से पकड़ न ले। और जैसे ही दरवाज़ा खुलता, हम फटाफट घर के अंदर भाग जाते थे। फिर, जब घर के अंधेरे में चबूतरे से पानी लाने के लिए कहा जाता था, तो हम बच्चों में डर के कारण यह कहते, "नहीं, पहले तू जा, पहले तू जा।" एक-दूसरे को "डरपोक" भी कहते थे, लेकिन सभी डरते थे। पर जाना तो उसी को होता था, जिसे मम्मी-पापा कहते थे। वह डर के मारे कहता, "आप चलो मेरे साथ," और वे कहते, "नहीं, तुम जाओ, तुम तो मेरे बहादुर बच्चे हो। मैं तुम्हारा नाम पुकारूंगा।" और फिर जब वह पानी लेकर आता, तो वे कहते, "देखो, डर नहीं लगा न?" लेकिन सच कहूं तो डर जरूर लगता था। पर यही ट्रिक हम दूसरे पर आजमाते थे। आज देखो, हम और हमारे बच्चे क्या डरेंगे, वे तो डर को ही डरा देंगे! 😂 बातें बहुत ज्यादा हो गई हैं, कुछ को फालतू भी लग सकती हैं, लेकिन हमारे बचपन में हर घर में हर बच्चे के साथ यही होता था। अब आपकी प्रतिक्रिया देने की बारी है। क्या आपके साथ भी यही हुआ ChatGPT can make ©Chandrawati Murlidhar Gaur Sharma कैप्शन में पढ़े 🤳 आज़ मैंने एक बच्चे को बाहर जाते हुए और पीछे मुड़-मुड़ कर देखते हुए देखा, तो मुझे अपने बचपन की बात याद आई। मैंने सोचा, इसे
कैप्शन में पढ़े 🤳 आज़ मैंने एक बच्चे को बाहर जाते हुए और पीछे मुड़-मुड़ कर देखते हुए देखा, तो मुझे अपने बचपन की बात याद आई। मैंने सोचा, इसे
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