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Stories related to गौने की रात बड़ी कठिन रसिया

M.K Meet

#मै बड़ी उलझन में हूं!

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White  मैं मुहब्बत हूं या जरूरत 
पता नहीं!!
*************
कभी उसको हमसे बात करने की बेचैनी हूआ करती थी
कभी वह हमसे बात करने को पागल रहा करती थी
कभी बह हमसे बात करने के लिए तड़पा करती थी 
क्योंकि..........................................
कभी वो हमसे बे इन्तेहा मुहब्बत किया करती थी  !!!!!
और अब.........................................
उसने कहीं और बात करना शुरू कर दिया है
उसकी बेचैनियां कहीं और है 
उसकी तडप कहीं और है 
वो पागल होने लगी है किसी और के लिए 
उससे बात करने के लिए मुझे इग्नोर करने लगी हैं!
क्योंकि मैं..
अब उसकी मुहब्बत नहीं ,सिर्फ जरूरत बन‌के रह गया हूं!
मैं मुहब्बत हूं या जरूरत 
पता नहीं 
दिल अभी भी मुहब्बत कहता है 
और दिमाग अब जरूरत समझता है 
और मैं उलझन में हूं 
😂😂😂
??







.

©M.K Meet #मै बड़ी उलझन में हूं!

Shiva Sarika

# बिहार बड़ी दुर्गा मुंगेर

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Veer Tiwari

पूस की रात

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पूस की रात - मुंशी प्रेमचंद की एक प्रसिद्ध कहानी है, जो एक गरीब किसान हल्कू की जिंदगी के संघर्ष और उसकी विवशता को बेहद मार्मिक ढंग से प्रस्तुत करती है। यह कहानी ग्रामीण भारत की गरीबी, शोषण, और मनोस्थिति को दर्शाती है, जो आज भी कई रूपों में प्रासंगिक है।

कहानी का सारांश

कहानी का मुख्य पात्र हल्कू एक छोटा किसान है, जो अपनी जमीन पर फसल उगाता है। उसकी जिंदगी गरीबी से जूझती रहती है, और कर्ज चुकाने की मजबूरी में उसे हमेशा समझौते करने पड़ते हैं। एक बार फिर से उसे कर्ज चुकाने के लिए अपनी कमाई से कंबल खरीदने का सपना छोड़ना पड़ता है, और ठिठुरती ठंड में रात के खेत की रखवाली के लिए जाना पड़ता है।

पूस की ठंडी रात में वह अपने कंबल की कमी से ठिठुरता है, लेकिन उसकी हालत ऐसी है कि वह कुछ नहीं कर सकता। ठंड से बचने के लिए वह अपने कुत्ते झबरा के पास सटकर सोने की कोशिश करता है, और अंत में ठंड से हारकर वह अपनी हालत पर हंसने लगता है। कहानी का अंत यह दिखाता है कि हल्कू अगले दिन की चिंता किए बिना, उस क्षण की ठंड से राहत पाने के लिए सब कुछ छोड़कर झबरा के साथ खेत छोड़कर चला जाता है।

विशेषताएं और आज के समय की तुलना

1. ग़रीबी और विवशता: हल्कू की हालत उस किसान की है, जो कर्ज, शोषण, और आर्थिक तंगी से जूझता है। यह स्थिति आज भी कई गरीब किसानों और मजदूरों की सच्चाई है, जो अपने मूलभूत ज़रूरतों को भी पूरा करने के लिए संघर्ष करते रहते हैं। चाहे आज की दुनिया में कितनी भी तरक्की क्यों न हो जाए, परंतु इस वर्ग के लोग अब भी कई समस्याओं से जूझ रहे हैं।

2. मानसिक पीड़ा और उम्मीद की झलक: हल्कू का ठंड में ठिठुरना और खुद को सांत्वना देना यह दिखाता है कि इंसान कैसे विषम परिस्थितियों में भी अपने मनोबल को बनाए रखने की कोशिश करता है। आज भी लोग कठिनाइयों का सामना करते हुए अपने मानसिक संतुलन और उम्मीदों को बरकरार रखने का प्रयास करते हैं।

3. प्राकृतिक कठिनाइयाँ: कहानी में ठंड और सर्दी का ज़िक्र उन प्राकृतिक चुनौतियों का प्रतीक है, जिनसे किसान हर दिन जूझते हैं। आज भी बदलते मौसम और प्राकृतिक आपदाएं किसानों की जीविका पर गहरा असर डालती हैं, और यह समस्या आज की वास्तविकता के साथ भी मेल खाती है।

सीख और संदेश

संघर्ष की हकीकत: कहानी यह सिखाती है कि जीवन में असली संघर्ष बाहरी समस्याओं से नहीं, बल्कि भीतर की मजबूरियों और हालातों से होता है। हल्कू का संघर्ष उसकी गरीबी के खिलाफ नहीं, बल्कि ठंड से राहत पाने के लिए खुद से किया गया संघर्ष है।

वास्तविकता का सामना: कहानी यह भी दिखाती है कि गरीबी और जरूरत के सामने इंसान की इच्छाएं और सपने कैसे बेमानी हो जाते हैं। हल्कू का अपनी हालत पर हंसना यह दर्शाता है कि वह खुद की हालत को स्वीकार कर चुका है।

पूस की रात अपने छोटे कलेवर में बड़े सामाजिक मुद्दों को उठाती है और यह दिखाती है कि कठिनाइयों के सामने भी इंसान अपने मन को समझाने के तरीके ढूंढ लेता है। प्रेमचंद ने इस कहानी के जरिए वास्तविकता को बेहद मार्मिक ढंग से उकेरा है, जो आज भी उतनी ही प्रासंगिक है, जितनी उस समय थी।

✍️Veer Tiwari

©Veer Tiwari पूस की रात

Shiv Narayan Saxena

#good_night वस्ल की रात में.....

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White ना अमां का समां और ये आसमां
तारे झलमल करें  देखता आसमां
मुस्कुराते हैं अब सब दीये प्यार में
मिल तो ले सनम वस्ल की रात में

©Shiv Narayan Saxena #good_night वस्ल की रात में.....

harshit tyagi

अभिनय भी बहुत कठिन होता हैं

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हां मैं रावण हूँ अहंकार से भरा हुआ 
अपनो के हाथों छला हुआ 
सोने के लंके में बैठा हूँ
मैं एक दानव हूँ हां हां मैं रावण हूँ ।

©harshit tyagi अभिनय भी बहुत कठिन होता हैं

Anuradha T Gautam 6280

बड़ी ख्वाहिश की कोई शौकीन नहीं छोटी-छोटी ख्वाहिश में ही मेरी बड़ी-बड़ी #ख्वाहिशें बन जाती हैं..🖊️ अनु_अंजुरी🤦🏻🙆🏻‍♀️

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RAVI PRAKASH

#sad_quotes जिंदगी से बड़ी

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gaTTubaba

#World_Photography_Day अंजाम से अंजान थे गुनाह करनेवाले सजा अफसोस की बड़ी थी , रब की सजा से ज्यादा....

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White अंजाम से अंजान थे गुनाह करनेवाले 
सजा अफसोस की बड़ी थी , रब की सजा से ज्यादा....

©gaTTubaba #World_Photography_Day अंजाम से अंजान थे गुनाह करनेवाले 
सजा अफसोस की बड़ी थी , रब की सजा से ज्यादा....

sumeet raj

#GoodMorning #न जी भर के देखा न कुछ बात की बड़ी आरज़ू थी मुलाक़ात की #sumeetraj #sumeetworld

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Parasram Arora

वियोग की रात

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