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Nehu Dee.kalam

वो #एक #मेरा ,, जो मेरा ना होकर भी सिर्फ मेरा है।।।

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bhanu shahi kaushik

#poetryunplugged दिल से हटता भी नहीं,हटाता भी नहीं #शायरी

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Praveen Jain "पल्लव"

#Sad_Status शाकाहार पनपे जग में, मूक प्राणी भी जीवित रह पाये #nojotohindi #कविता

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White पल्लव की डायरी
सब जीवों पर करुणा दया ही
जीवन की सारभौमिक्ता है
शाकाहार पनपे जग में
निरीह और मूक प्राणी को
मांसाहारीयो से बचाना है
नामीबिया के सूखे का संकट
घोषणा पशुओं के कत्ल की सरकारी है
जैन समाज की पहल,मदद वहाँ पहुँचती है
वहाँ की सरकार अपना आदेश वापस करती है
उठ खड़े हो जाये सारे समाज और धर्म
माँसाहार बंद कर,पशुओं पक्षियों के
प्राणों की रक्षा हो सकती है
                                         प्रवीण जैन पल्लव

©Praveen Jain "पल्लव" #Sad_Status शाकाहार पनपे जग में, मूक प्राणी भी जीवित रह पाये
#nojotohindi

Urmeela Raikwar (parihar)

#love_shayari पास होकर भी दूर #लव

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बाबा ब्राऊनबियर्ड

शायद हरकतों से भी ! #Life

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मन्ने मोहब्बत म्ह आरक्षण चाहिए ...
मैं शक्ल से पिछड़ा हूँ

©बाबा ब्राऊनबियर्ड शायद हरकतों से भी !

deepmala kumari

Bazirao Ashish

एक बार प्रिये तुम भी! दरखत होकर देखो न। तुम भी समझोगे हाल मेरा धोखा खाकर देखो न। तुम क्या पाओगे क्या खोओगे? खुद का समर्पण करके देखो न। इक बा #Poetry

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एक बार प्रिये तुम भी!
दरखत होकर देखो न।
तुम भी समझोगे हाल मेरा
धोखा खाकर देखो न।
तुम क्या पाओगे क्या खोओगे?
खुद का समर्पण करके देखो न।
इक बार प्रिये तुम भी!
दरखत होकर देखो न।

•आशीष द्विवेदी

©Bazirao Ashish एक बार प्रिये तुम भी!
दरखत होकर देखो न।
तुम भी समझोगे हाल मेरा
धोखा खाकर देखो न।
तुम क्या पाओगे क्या खोओगे?
खुद का समर्पण करके देखो न।
इक बा

MAHENDRA SINGH PRAKHAR

गीत :- तुम जननी हो इस जग की , रच लो एक नया संसार । क्यों घुट-घुट कर फिर जीती हो , क्यों सब सहती आत्याचार ।। तुम जननी हो इस जग की .... पुरुष #कविता

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गीत :-
तुम जननी हो इस जग की , रच लो एक नया संसार ।
क्यों घुट-घुट कर फिर जीती हो , क्यों सब सहती आत्याचार ।।
तुम जननी हो इस जग की ....

पुरुष वर्ग नारी पर भारी , क्यों होता है करो विचार ।
निकल पड़ो हाथो में लेकर , घर से अपने आज कटार ।।
बेटे भाई पति को अपने , दान करो अपने शृंगार ।
तुम जननी हो इस जग की ....

कितनी बहनें कितनी बेटी , होंगी कब तक भला शिकार ।
चुप बैठी है सत्ता सारी , विवश हुआ है पालनहार ।।
मन में अपने दीप जलाओ , नहीं मोम से जग उँजियार ।
तुम जननी हो इस जग की .....

छोड़ों चकला बेलन सारे , बढ़कर इन पर करो प्रहार ।
बहुत खिलाया बना-बना कर , इन्हें पौष्टिक तुम आहार ।।
बन चंडी अब पहन गले में ,  इनको मुंडों का तू हार ।
तुम जननी हो इस जग की ....

बन्द करो सभी भैय्या दूज , बन्द करो राखी त्यौहार ।
ये इसके हकदार नही है , आज त्याग दो इनका प्यार ।।
जहाँ दिखे शैतान तुम्हें ये , वहीं निकालो तुम तलवार ।
तुम जननी हो इस जग की ....

सिर्फ बेटियाँ जन्म लिए अब , सुतों का कर दो बहिष्कार ।
खो बैठें है यह सब सारे , बेटा होने का अधिकार ।।
मिलकर जग से दूर करो यह , फैल रहा जो आज विकार ।
तुम जननी हो इस जग की ....

तुम जननी हो इस जग की , रच लो एक नया संसार ।
क्यों घुट-घुट कर फिर जीती हो , क्यों सब सहती आत्याचार ।।

महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR गीत :-
तुम जननी हो इस जग की , रच लो एक नया संसार ।
क्यों घुट-घुट कर फिर जीती हो , क्यों सब सहती आत्याचार ।।
तुम जननी हो इस जग की ....

पुरुष

Rameshkumar Mehra Mehra

# उसके इंतजार मे गुजार दी,जिंदगी हमने यू ही,इतफाक से बो मिली भी तो,किसी और की होकर.... #Quotes

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Praveen Jain "पल्लव"

#guru_purnima उनके के प्रताप से ही जग में अहिँसा और करुणा के फूल खिलते है #nojotohindi #कविता

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