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Shiv Narayan Saxena
हर बच्चे को चाहिए, सिर पर हो इक हाथ। खेल-कूद पढ़वाइये, अनुशासन के साथ।। हर बच्चे को चाहिए, ऊॅंची उड़े उड़ान। खूंटी मगर न छोड़िये, राखि दूर अभिमान।। बच्चे प्यार-दुलार हैं, मन बगिया के फूल। देखो उनकी राह में, रहे न कोई शूल।। HAPPY CHILDREN'S DAY. ©Shiv Narayan Saxena #बालदिवस हर बच्चे को चाहिए
#बालदिवस हर बच्चे को चाहिए
read moreneelu
White आजकल बच्चे इतना बड़ा बड़ा बोलते हैं बड़े क्या बोलेंगे ©neelu #love_shayari #आजकल #बच्चे #इतना #बड़ा बड़ा #बोलते हैं बड़े क्या #बोलेंगे
puja udeshi
#बच्चे #pujaudeshi Kalpana Korgaonkar AnithaBilly sushil priya सतीश तिवारी 'सरस'
read moreMohammad Ibraheem Sultan Mirza
❤️Masha_Allah❤️माशाअल्लाह❤️ मदरसे के बच्चे की कोशिश अल्लाह क़ुबूल करे ❤️Aameen आमीन❤️ #madarsa #madarsalife #islamicvideos islamic_vide
read moreJitender Kumar
#love_shayari वही ताज है वही तख़्त है वही ज़हर है वही जाम है ये वही ख़ुदा की ज़मीन है ये वही बुतों का निज़ाम है बड़े शौक़ से मिरा घर जला
read moreRimpi chaube
समझ आई तो बच्चे कैसे भूल गए उस बात को। मैले कपड़े पहने माता–पिता,कितना कष्ट उठाएं दिन–रात को। जीवन जिन्होंने दांव लगाया,बच्चों के पालन पोषण पर, आज वही बच्चे नहीं समझते,अपने माता–पिता के जज्बात को।। ©Rimpi chaube #मातापिता 😊 समझ आई तो बच्चे कैसे भूल गए उस बात को। मैले कपड़े पहने माता–पिता,कितना कष्ट उठाएं दिन–रात को। जीवन जिन्होंने दांव लगाया,बच्चों क
#मातापिता 😊 समझ आई तो बच्चे कैसे भूल गए उस बात को। मैले कपड़े पहने माता–पिता,कितना कष्ट उठाएं दिन–रात को। जीवन जिन्होंने दांव लगाया,बच्चों क
read moreChandrawati Murlidhar Gaur Sharma
White आज़ मैंने एक बच्चे को बाहर जाते हुए और पीछे मुड़-मुड़ कर देखते हुए देखा, तो मुझे अपने बचपन की बात याद आई। मैंने सोचा, इसे साझा कर दूं, क्योंकि हो सकता है कि आपने भी ऐसा किया हो। जब हम बचपन में अंधेरे से डरते थे, और हमें रात को किसी काम से बाहर भेजा जाता था, या फिर किसी पड़ोसी के घर पर खेलते-खेलते देर हो जाती थी और अंधेरा छा जाने के कारण डर लगने लगता था, लेकिन घर भी तो जाना था। तो हम अपने ताऊजी, मां, काकी, या दादी से कहते थे कि "घर छोड़ कर आ जाओ।" और वे कहते, "हां, चलो छोड़ आते हैं।" जब घर का मोड़ आता तो वे कहते, "अब चल जा," लेकिन डर तो लग रहा होता था। तो हम कहते, "आप यहीं रुकना," और वे बोलते, "मैं यहीं हूँ, तेरा नाम बोलते रहूंगा।" जब तक वे हमारा नाम लेते रहते थे और जब तक हम घर नहीं पहुंच जाते थे, हमें यह विश्वास होता था कि वे हमारे साथ ही हैं, भले ही वे घर लौट चुके होते। लेकिन जब तक हमारा दरवाजा नहीं खुलता था, तब तक डर लगता था कि कोई हमें पीछे से पकड़ न ले। और जैसे ही दरवाज़ा खुलता, हम फटाफट घर के अंदर भाग जाते थे। फिर, जब घर के अंधेरे में चबूतरे से पानी लाने के लिए कहा जाता था, तो हम बच्चों में डर के कारण यह कहते, "नहीं, पहले तू जा, पहले तू जा।" एक-दूसरे को "डरपोक" भी कहते थे, लेकिन सभी डरते थे। पर जाना तो उसी को होता था, जिसे मम्मी-पापा कहते थे। वह डर के मारे कहता, "आप चलो मेरे साथ," और वे कहते, "नहीं, तुम जाओ, तुम तो मेरे बहादुर बच्चे हो। मैं तुम्हारा नाम पुकारूंगा।" और फिर जब वह पानी लेकर आता, तो वे कहते, "देखो, डर नहीं लगा न?" लेकिन सच कहूं तो डर जरूर लगता था। पर यही ट्रिक हम दूसरे पर आजमाते थे। आज देखो, हम और हमारे बच्चे क्या डरेंगे, वे तो डर को ही डरा देंगे! 😂 बातें बहुत ज्यादा हो गई हैं, कुछ को फालतू भी लग सकती हैं, लेकिन हमारे बचपन में हर घर में हर बच्चे के साथ यही होता था। अब आपकी प्रतिक्रिया देने की बारी है। क्या आपके साथ भी यही हुआ ChatGPT can make ©Chandrawati Murlidhar Gaur Sharma कैप्शन में पढ़े 🤳 आज़ मैंने एक बच्चे को बाहर जाते हुए और पीछे मुड़-मुड़ कर देखते हुए देखा, तो मुझे अपने बचपन की बात याद आई। मैंने सोचा, इसे
कैप्शन में पढ़े 🤳 आज़ मैंने एक बच्चे को बाहर जाते हुए और पीछे मुड़-मुड़ कर देखते हुए देखा, तो मुझे अपने बचपन की बात याद आई। मैंने सोचा, इसे
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