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बेजुबान शायर shivkumar

Sethi Ji Kshitija poonam atrey angel rai puja udeshi कविता कविताएं हिंदी कविता कविता कोश मैं अपने बारे में लिखूं भी तो क्या लिखूं

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White मैं अपने बारे में लिखूं भी तो क्या लिखूं 
थोड़ा अच्छा या काफी बुरा लिखूं !!🕊️

मैं कहानी हूं पूरी या किस्सा अधूरा लिखूं ✨
मैं कौन हूं मैं खुद को क्या लिखूं !!🕊️

अपनी उम्र से तजुर्बों में बढ़ा लिखूं ✨
या उम्मीदों की लाशों पर चला लिखूं!!🕊️

ना समझेगा कोई भला मैं क्या लिखूं✨
लोग समझते हैं सुलझा हुआ 
तो खुद को क्या उलझा हुआ लिखूं !!🕊️

हम अपने बारे में और जानते ही नहीं ✨
चलो छोड़ो भी आज खुद को सरफिरा लिखूं !!✨❣️

©बेजुबान शायर shivkumar  Sethi Ji  Kshitija  poonam atrey  angel rai  puja udeshi  कविता कविताएं हिंदी कविता कविता कोश



मैं अपने बारे में लिखूं भी तो क्या लिखूं

Satish Kumar Meena

उम्मीदों के पंख

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Dhaneshdwivediwriter

#Books चलो, किताबों के इस सफर पर, हम फिर से मिलें, नई उम्मीदों के संग। #BooksBestFriends #Stories कविताएं प्रेरणादायी कविता हिंदी हिं

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चलो, किताबों के इस सफर पर,  
हम फिर से मिलें, नई उम्मीदों के संग।













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©Dhaneshdwivediwriter #Books 
 चलो, किताबों के इस सफर पर,  
हम फिर से मिलें, नई उम्मीदों के संग।
#BooksBestFriends 
#Stories 
 कविताएं प्रेरणादायी कविता हिंदी हिं

Mohanbhai आनंद

#good_night अपना कहकर आप,फिर ग़ैर समझते हो गैराना ताल्लुकात में, फिर क्यु उलझते हौ बेहाल आखे , हिसाब मांगती है अश्कों का, गोरे गाल पर रोज़

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White अपना कहकर आप,फिर ग़ैर समझते हो
गैराना ताल्लुकात में, फिर क्यु उलझते हौ

बेहाल आखे , हिसाब मांगती है अश्कों का,
गोरे गाल पर रोज़ फिर क्यु फिसलते हो 

खुले आसमान में,चांद से मिलाकर आंखें,
हुस्नकी नज़ाकत,से,फिर क्यूं बिखरते हो

बैताब  इस दिलमे, बहुत तमन्नाएं बसी है,
उम्मीदों का बाजार खुला फिर क्यूं रखते हो

खाक और मीट्टीमे, कुछ भी फर्क कहां है?
फिक्र ज़िंदगीमे बेफिजूल ,फिर क्यूं करते हैं 

आसान कहां है ? फरमाएं इश्क़ मिज़ाज,
हाल ए दिल हक़ीक़त में फिर क्यूं मचलते हो

©Mohanbhai आनंद #good_night 
अपना कहकर आप,फिर ग़ैर समझते हो
गैराना ताल्लुकात में, फिर क्यु उलझते हौ

बेहाल आखे , हिसाब मांगती है अश्कों का,
गोरे गाल पर रोज़

Mohanbhai आनंद

#GoodMorning अपना कहकरआप,फिर ग़ैर समझते हो गैराना ताल्लुकातमे फिर क्यु उलझते हौ बेहाल आखे हिसाब मांगती है अश्कों का गोरे गाल पर रोज़ फि

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White अपना  कहकरआप,फिर ग़ैर समझते हो
गैराना ताल्लुकात हे, फिर क्यु उलझते हौ

बेहाल आखे हिसाब मांगती है अश्कों का
गोरे गाल पर रोज़ फिर क्यु बरसते हो 

खुले आसमान में,चांद से मिलाकर आंखें,
हुस्नकी नज़ाकत,फिर क्यूं चुराया करते हो

बैताब  इस दिलमे बहुत तमन्नाएं बसी है,
उम्मीदों का बाजार खुला फिर क्यूं रखते हो

खाक और मीट्टीमे, कुछ भी फर्क कहां है?
फिक्र ज़िंदगीमे बेफिजूल ,फिर क्यूं करते हैं 

आसान कहां है ?फरमाएं इश्क़ मिज़ाज,
हकीकी मैं हाल ए दिल फिर क्यूं मचलते हो

©Mohanbhai आनंद #GoodMorning 

अपना  कहकरआप,फिर ग़ैर समझते हो
गैराना ताल्लुकातमे  फिर क्यु उलझते हौ

बेहाल आखे हिसाब मांगती है अश्कों का
गोरे गाल पर रोज़ फि

Saket Ranjan Shukla

एक साधारण लेखक के तौर पर अत्याधिक प्रसन्नता और बड़े ही गर्व के साथ मैं पेश करता हूँ “काव्य Saga (बोलती कविताओं का संग्रह)" जो कि मेरे द्वारा

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N S Yadav GoldMine

#Sad_Status {Bolo Ji Radhey Radhey} इन्सान ख्वाहिशो से बंधा एक जिद्दी परिंदा है, जो उम्मीदों से ही घायल है और उम्मीदों से ही ज़िंदा है !!

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White {Bolo Ji Radhey Radhey}
इन्सान ख्वाहिशो से बंधा 
एक जिद्दी परिंदा है,
जो उम्मीदों से ही घायल है
और उम्मीदों से ही ज़िंदा है !!

©N S Yadav GoldMine #Sad_Status {Bolo Ji Radhey Radhey}
इन्सान ख्वाहिशो से बंधा 
एक जिद्दी परिंदा है,
जो उम्मीदों से ही घायल है
और उम्मीदों से ही ज़िंदा है !!
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