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बेजुबान शायर shivkumar
"अस्तित्व" सिर्फ़ पेड़ होना ही काफ़ी नहीं घना और विशाल भी बनना पड़ता है। एक वृक्ष को सम्मान पाने के लिए.. नदी नहीं मानी जाती है । नदीजब तक प्रवाह में उफ़ान न हो और जल में शीतलता नही आती । मनुष्य का सिर्फ मनुष्य होना भी काफ़ी नहीं है । सत्कार पाने के लिए ज़रूरी है । बाहों में बल, चेहरे पर चमक उच्च कुल, श्रेष्ठ पदनही तो कम से कम पर्याप्त धन । नैसर्गिक मनुष्य द्वारा ही बनाए गए समाज में सिर्फ़ एक नैसर्गिक मनुष्य होने का कोई अस्तित्व नहीं ! ©बेजुबान शायर shivkumar " #अस्तित्व " सिर्फ़ पेड़ होना ही काफ़ी नहीं घना और विशाल भी बनना पड़ता है। एक #वृक्ष को #सम्मान पाने के लिए.. नदी नहीं मानी जाती है । न
" अस्तित्व " सिर्फ़ पेड़ होना ही काफ़ी नहीं घना और विशाल भी बनना पड़ता है। एक वृक्ष को सम्मान पाने के लिए.. नदी नहीं मानी जाती है । न
read moreneelu
White किसी भी मनुष्य की वर्तमान मनोस्थिति का शुद्ध रूप 'मनःस्थिति' है ©neelu #Sad_Status #किसी भी #मनुष्य की #वर्तमान
#Sad_Status #किसी भी #मनुष्य की #वर्तमान
read moreN S Yadav GoldMine
White {Bolo Ji Radhey Radhey} क्रोध में मनुष्य अपने मन की बात तो कहता नहीं, दुसरे के दिल को दुखाना चाहता है, यही उसके दुख का कारन बनता है !! जय श्री राधेकृष्ण जी। ©N S Yadav GoldMine #Sad_Status {Bolo Ji Radhey Radhey} क्रोध में मनुष्य अपने मन की बात तो कहता नहीं, दुसरे के दिल को दुखाना चाहता है, यही उसके दुख का कारन बन
#Sad_Status {Bolo Ji Radhey Radhey} क्रोध में मनुष्य अपने मन की बात तो कहता नहीं, दुसरे के दिल को दुखाना चाहता है, यही उसके दुख का कारन बन
read moreMukesh Poonia
White मनुष्य के लिए कठिनाइयों का होना बहुत जरूरी है क्योंकि कठिनाइयों के बिना सफलता का आनंद नहीं लिया जा सकता है . ©Mukesh Poonia #Thinking #मनुष्य के लिए #कठिनाइयों का होना बहुत जरूरी है क्योंकि कठिनाइयों के बिना #सफलता का #आनंद नहीं लिया जा सकता है बेस्ट सुविचार अनमोल
#Thinking #मनुष्य के लिए #कठिनाइयों का होना बहुत जरूरी है क्योंकि कठिनाइयों के बिना #सफलता का #आनंद नहीं लिया जा सकता है बेस्ट सुविचार अनमोल
read moreperson
गीता के अनुसार मनुष्य के दुःख का कारण क्या है? यदि भगवद गीता को देखें तो हम पाते हैं कि संसार के दुखों का प्रमुख कारण आत्मा के स्वरूप के विषय में हमारा अज्ञान है। हम स्वजनों की मृत्यु की आशंका से ही भयभीत हो जाते हैं। हमने जो भी अर्जित किया या पाया है, उसकी हानि की शंका भी हमारी चेतना को कभी पूर्णतया स्वछंद नहीं होने देती। भगवद गीता के मुताबिक, मनुष्य के दुखों का प्रमुख कारण आत्मा के स्वरूप के बारे में अज्ञानता है. इसके अलावा, मनुष्य के दुखों के कुछ और कारण ये हैं: हमने जो भी अर्जित किया या पाया है, उसकी हानि की शंका हमारी चेतना को कभी पूर्णतया स्वच्छंद नहीं होने देती. मनुष्य में श्रेष्ठ गुणों का अभाव होता है. मनुष्य का शत्रुतापूर्ण और अमानवीय स्वभाव दुनिया को उदास और निराशाजनक बना देता है. अधिकांश मनुष्य इस बात का परिप्रेक्ष्य खो चुके हैं कि यह जीवन क्या है. उनकी मनोवैज्ञानिक प्रक्रिया अस्तित्वगत प्रक्रिया से कहीं अधिक बड़ी हो गई है. भगवद गीता के मुताबिक, मनुष्य को अपने विवेक, परिश्रम, बुद्धि और उद्यम पर संदेह नहीं करना चाहिए. उसे सदैव सत्य और स्वधर्म के पक्ष में रहना चाहिए. ©person गीता के अनुसार मनुष्य के दुःख का कारण क्या है? यदि भगवद गीता को देखें तो हम पाते हैं कि संसार के दुखों का प्रमुख कारण आत्मा के स्वरूप के वि
गीता के अनुसार मनुष्य के दुःख का कारण क्या है? यदि भगवद गीता को देखें तो हम पाते हैं कि संसार के दुखों का प्रमुख कारण आत्मा के स्वरूप के वि
read moreप्रा.शिवाजी ना.वाघमारे
का कुणावर प्रेम कराव ? का कुणासाठी झुरायच ,का कुणासाठी मरायच, देवाने आई बाबा दिले आहे त्यांच्यासाठी सगळं करायच.. ©प्रा.शिवाजी ना.वाघमारे का
का
read moreRohan Roy
White मनुष्य हमेशा अपने जीवन में, सबसे ज्यादा कुछ होने की बजाय, कुछ नहीं होने की संदेह से, भयभीत होता है। इसलिए उसका मन वास्तविक चीजों को छोड़कर, काल्पनिक विचारों पर ज्यादा भरोसा करता है। ©Rohan Roy मनुष्य हमेशा अपने जीवन में | #RohanRoy | #dailymotivation | #inspirdaily | #motivation_for_life | #rohanroymotivation | positive life quote
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