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Manisha Maru
नेह नीर रक्त बहे, क्षित विक्षत हे कंचन देह। कुदृष्टि नोच खाए, वसुंधरा के झड़ गए मेह।। ©Manisha Maru #justice
blogwriternisha
White हजारों सपनो की कतार मैं, सपनों की लेकर पतवार वो बह जाना चाहती थीं, बेटी बनकर आईं थीं, पिजरे से आज़ाद हों उड़ जाना चाहती थी...!! .................. पड़ लिख कर , अपनी सपनों की दुनियां मैं वो नादान सी लड़की डॉक्टर बनना चाहती थी school किया college कर ug pg करके वो अपनी पहचान बनाना चाहती थी .................. पड़ भी गईं वो लिख भी गईं, अपने इरादों की वो पक्की थीं, फिर हर रोज़ अपने सफ़र की उड़ान भरने को हॉस्पिटल मैं दिन मैं ड्यूटी रात मैं ड्यूटी करती थी... .................. कहा सोचा था उस नादान ने ,की लग जायेगी उसे हैवानियत की नज़र, कुछ जिस्म के भुखे लोग रख रहें थे उस पर नज़र लोगों की ज़िन्दगी बचाने, के लिए जो खुद अपने दिन रात से लड़ रही थी... .................. जिस्म का भूखा ये इंसान इस हद तक दरिंदगी फेलाएगा, शरीर, का कतरा कतरा तो क्या आंख भी नोच कर खाएगा हवस ने इंसान की, बेटियां की ज़िन्दगी को , बस अपनी भूख मिटाने का जरिया बना डाला हैं.... ..................... अपनी मौत का इंतज़ार कर रही थी वो बेटी इंसान तो जिंदा हैं ... और हैवानियत जिस्म की भी भूख की इस क़दर बड़ चुकी है की इंसान ने इंसानियत को ही मार डाला हैं... ..….............. ©blogwriternisha justice for doctor moumita
justice for doctor moumita
read moreMeena Prajapati
Where is the justice? Mutual understanding means justice? Justice by torture is justice? One who transgresses is not worthy, one who errs. Is it fair to judge him? Why only the bad man wins in Kalyuga? We say there is God, even God helps demons these days. Why not help someone who really deserves justice..... ©Meena Prajapati #justice
Rahul Rajbhar
आज हर गली मोहल्ले में बैठे कुछ दरिंदे इस तक में | मौका मिलते ही लूट ले इज्जत भारी बाजार में || ना डर है ना भय इनको बेख़ौफ़ घुमते दिख जाएंगे इस कलयुगी संसार में | बेखौफ दरिंदे घूम रहे हैं | हम और आप बने मुख दर्शक हैं || चलो अपनी बेटियों को मां काली का पाठ सिखाएं आए इज्जत पर आंच अगर तो धड़ से शीश काट कर लाए|| ©Rahul Rajbhar Justice for Kolkata Doctor
Justice for Kolkata Doctor
read moreAmol M. Bodke
रो रोके अब आखों के अश्क़ सुख गये है इतने बलात्कार आज की तारीख में हो रहे है। पर हमें क्या, हमें तो मोमबत्तियां जला कर सडकों पर रोशनी करनी है, नामर्द सी नस्ल हैं हमारी गर्दन झुका कर दिखानी है। आग लगी है दिलों में वो भी बुझ जाती है सवेरे में फिर वही चिकारी सुनाई देती है अपने मोहल्ले में ©Amol M. Bodke #Justice
Amit Santra
Justice for R.G.Kar ©Amit Santra #DiyaSalaai justice for R.G.Kar
#DiyaSalaai justice for R.G.Kar
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