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बेजुबान शायर shivkumar

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माँ सिद्धिदात्रि 


,, नवम दिवस तप साधना, पुण्य पर्व नवरात ।
मात सिद्धि दात्री गहो , देंगी सुख सौगात ,, ।।

*

नवम रूप माॅंअंब का, सिद्धिदात्रि  है नाम ।
देव दनुज मानव सभी, करते इन्हें प्रणाम ।।

कृपा मात की प्राप्त कर,पाई सिद्धि महेश ।
कमल पुष्प अर्पित करें,भक्ति पाएं अशेष ।।

धवल  बैंगनी  वर्ण प्रिय, है  जगदम्बे  मात ।
करती  माॅं  जगदीश्वरी,  दुष्टों  पर आघात ।।

करे साधना मात की, जो भी साधक भक्त ।
अणिमादिक सब सिद्धियां,देती माॅंअनुरक्त ।।

करो  साधना  शक्ति  की, पर्व  बड़ा  नवरात्र ।
तन अरु मन से शुद्ध हो, बनो कृपा के पात्र ।।

©बेजुबान शायर shivkumar #navratri #navratri2024 #navratri2025 #navratri2026 #navratri2027 #नवरात्रि  Sethi Ji  Sana naaz  puja udeshi  Kshitija  Andy Mann  भक्ति गा

MAHENDRA SINGH PRAKHAR

गीत :- मातु-पिता के रूप में , मिले मुझे भगवान । करता जिनकी चाकरी , बनकर मैं संतान ।। जीवन मेरा धन्य है , स्वप्न सभी साकार । जीने का मुझको म

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White गीत :-
मातु-पिता के रूप में , मिले मुझे भगवान ।
करता जिनकी चाकरी , बनकर मैं संतान ।।

जीवन मेरा धन्य है , स्वप्न सभी साकार ।
जीने का मुझको मिला , एक नया आधार ।।
अब तो आठों याम मैं, करता हूँ गुणगान ।
करता जिनकी चाकरी , बनकर मैं संतान ।।

मन मेरा गद-गद रहे , पाकर ऐसा धाम ।
जहाँ राम मेरे पिता , मातु जानकी नाम ।।
ऐसे चरणों ने मुझे , बना दिया इंसान ।
करता जिनकी चाकरी, बनकर मैं संतान ।।

अब तो जीवन का यही , मेरे है संकल्प ।
जितनी भी सेवा करूँ , लगे मुझे अब अल्प ।।
क्या माँगूं मैं आपसे , क्या दो अब वरदान ।
करता जिनकी चाकरी , बनकर मैं संतान ।।

मातु-पिता के रूप में , मिले मुझे भगवान ।
करता जिनकी चाकरी , बनकर मैं संतान ।।

महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR गीत :-
मातु-पिता के रूप में , मिले मुझे भगवान ।
करता जिनकी चाकरी , बनकर मैं संतान ।।

जीवन मेरा धन्य है , स्वप्न सभी साकार ।
जीने का मुझको म

MAHENDRA SINGH PRAKHAR

मुक्तक :- जीवन भर अब नाथ , तुम्हारा बनकर रहना । जैसे राखो आप , यहाँ पर हमको रहना । नही लोभ औ मोह , कभी जीवन में आये- यही कृपा अब नाथ , बनाये

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मुक्तक :-
जीवन भर अब नाथ , तुम्हारा बनकर रहना ।
जैसे राखो आप , यहाँ पर हमको रहना ।
नही लोभ औ मोह , कभी जीवन में आये-
यही कृपा अब नाथ , बनाये हम पर रहना ।।

मातु-पिता है बृद्ध , तनिक सेवा तो कर लो ।
और तनय का धर्म , निभाकर झोली भर लो ।
ऐसे अवसर नित्य , नही जीवन में आते -
मिले परम पद आप , तनिक धीरज तो धर लो ।।

बनकर हरि का दास , भक्ति का पहनूँ गहना ।
हर क्षण मुख पे राम , बोल फिर क्या है कहना ।
जगे हमारे भाग्य , शरण जो उनकी पाया -
अब तो उनका नाम , हमें सुमिरन है करना ।।

यह तन मिट्टी जान , जलायी हमने काया ।
हृदय बिठाकर राम , राम को हमने पाया ।
अब तो आठों याम , उन्हीं का सुमिरन होता -
यह मन उनका धाम , उन्ही की सारी माया ।।

महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR मुक्तक :-
जीवन भर अब नाथ , तुम्हारा बनकर रहना ।
जैसे राखो आप , यहाँ पर हमको रहना ।
नही लोभ औ मोह , कभी जीवन में आये-
यही कृपा अब नाथ , बनाये
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