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नवनीत ठाकुर

#पिता का साया

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पिता की यादों में है वो ख़ामोश रहमत,
उनके लफ़्ज़ों में आज भी वफ़ा का पैग़ाम बाकी है।
हर मुश्किल घड़ी में वो हौसला बनकर आते हैं,
वो दुनिया से रुख़्सत हुए, पर उनका असर बाकी है।

वो चले गए, छोड़ गए ज़िंदगी की तालीम,
उनके नक्श-ए-राह पर हर कदम का निशां बाकी है।
जब भी टूटता हूँ सफर की ठोकरों में कहीं,
उठाने को आज भी उनका अरमां बाकी है।

पिता का साया आज भी है मेरे साथ यूं,
उनकी दुआओं का साया हर राह पे बाकी है।
चले गए वो फलक के सफर पर दूर कहीं,
पर उनकी मौजूदगी का एहसास हर सांस में बाकी है।

वो जुदा हुए, पर छोड़ गए अनमोल ख़ज़ाना,
यादों में बसा है महकता उनका गुलिस्तां बाकी है।
अब वो सितारा बनकर आसमां में रोशन हैं,
उनकी रौशनी से मेरी हर रात और सुबह बाकी है।

जैसे अंधेरों में चिराग़ की लौ जलती है,
वैसे ही उनकी यादों का उजाला हर लम्हा बाकी है।
इस फानी दुनिया से वो चले गए हैं भले,
मगर मेरे दिल में वो जिंदा हैं, उनका हर वो लम्हा बाकी है।

©नवनीत ठाकुर #पिता का साया

नवनीत ठाकुर

#प्रकृति का विलाप कविता

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जमीन पर आधिपत्य इंसान का,
पशुओं को आसपास से दूर भगाए।
हर जीव पर उसने डाला है बंधन,
ये कैसी है जिद्द, ये किसका  अधिकार है।।

जहां पेड़ों की छांव थी कभी,
अब ऊँची इमारतें वहाँ बसी।
मिट्टी की जड़ों में जीवन दबा दिया,
ये कैसी रचना का निर्माण है।।

नदियों की धाराएं मोड़ दीं उसने,
पर्वतों को काटा, जला कर जंगलों को कर दिया साफ है।
प्रकृति रह गई अब दोहन की वस्तु मात्र,
बस खुद की चाहत का संसार है।
क्या सच में यही मानव का आविष्कार है?

फैक्ट्रियों से उठता धुएं का गुबार है,
सांसें घुटती दूसरे की, इसकी अब किसे परवाह है।
बस खुद की उन्नति में सब कुर्बान है,
उर्वरक और कीटनाशक से किया धरती पर कैसा अत्याचार है।
 हरियाली से दूर अब सबका घर-आँगन परिवार है,
किसी से नहीं अब रह गया कोई सरोकार है,
इंसान के मन पर छाया ये कैसा अंधकार है।।

हरियाली छूटी, जीवन रूठा,
सुख की खोज में सब कुछ छूटा।
जो संतुलन से भरी थी कभी,
बेजान सी प्रकृति पर किया कैसा पलटवार है।।
बारूद के ढेर पर खड़ी है दुनिया, 
विकसित हथियारों का लगा बहुत बड़ा अंबार है।
हो रहा ताकत का विस्तार है,खरीदने में लगी है होड़ यहां, 
ये कैसा सपना, कैसा ये कारोबार है?
ये किसका विचार है, ये कैसा विचार है?
क्या यही मानवता का सच्चा आकार है?

©नवनीत ठाकुर #प्रकृति का विलाप कविता

Sonal Panwar

सुनहरी धूप है पिता 🥰❤✨ #father #pita Poetry कविता कोश कविताएं हिंदी कविता हिंदी कविता

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ग़मों की काली परछाई को रख हमसे दूर
ख़ुद दुःख सहकर भी जो हमें दे ख़ुशी की खनक, 
वो खुशियों से झिलमिलाती सुनहरी धूप है 'पिता'।

©Sonal Panwar सुनहरी धूप है पिता 🥰❤✨ #father #pita #Poetry #Nojoto  कविता कोश कविताएं हिंदी कविता हिंदी कविता

Bittu comedy

माता पिता का आशीर्वाद हिंदी शायरी शायरी हिंदी में

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माता पिता का आशीर्वाद

©Bittu brind माता पिता का आशीर्वाद  हिंदी शायरी शायरी हिंदी में

लेखक ओझा

#sad_quotes जीवन में शब्दों का महत्व

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White शब्दो को इक्कठा कीजिए 
चाहे वो कड़वे हो या मधुर
क्योंकि जीवन में आगे जाने का रास्ता 
इन्ही गलियारो से होकर जाता है। ।

©लेखक ओझा #sad_quotes जीवन में शब्दों का महत्व

Bachan Manikpuri

सांसो का महत्व

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Anil Sapkal

#foryoupapa पिता जीवन का संगीत है, पिता हैं तो जित है ll # कविता कोश# प्यार पर कविता# हिंदी कविता# कविताएं# प्रेरणादायी कविता हिंदी

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थका हारा जब जब तू दफ्तर से घर आता है
मुश्किलोमे, संकटोमें जब जब तू घिर जाता हैं ।
ऐसे में क्या करे तब कुछ समझ नहीं आता है 
आंख से आसू बहता हैं और पापा याद आता है।।


जिम्मेदारियों का बोझ जब जब सरपें आता हैं
कोशिशोंके बावजूद भी तू संभाल नहीं पाता है।
अकेलेपनका अहसास जब जब तुझे सताता है
आंख से आसू बहता है और पापा याद आता है।।










अनिल

©Anil Sapkal #foryoupapa पिता जीवन का संगीत है, पिता हैं तो जित है ll # कविता कोश# प्यार पर कविता# हिंदी कविता# कविताएं# प्रेरणादायी कविता हिंदी

kavi Dinesh kumar Bharti

#गोरखपुर का मौसम बारिश पर कविता

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Kamlesh Kandpal

#प्रकृति का सौंदर्य हिंदी कविता

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ये सोचता हूँ मै अक्सर
जो आता है मुझे नजर
ये धरती, या ये आकाश
सूर्य का अदभुत प्रकाश
चंदा गोल,टीमटिमाते तारे
बनाये ये सब,किसने सारे
ठंडी, गर्मी औऱ ये बरसात
लू के दिन,अमावस की रात
पाने की खुशी, खोने का डर 
ये सोचता हूँ मै अक्सर
जो आता है मुझे नजर

©Kamlesh Kandpal #प्रकृति का सौंदर्य  हिंदी कविता

Deepali Singh

पिता

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पिता

ज़िम्मेदारियों की कसौटी पर वो बैठा
ख्वाहिशें अपनी अंदर ही रौंदाता, 
सर पर मेरेउसके आशीष का पहरा
दुःख क्लेश पर उनके प्रेम का परदा, 
परेशानियाँ खुद की खुद तक छिपाये
संकट संतान के वो खुद पर ले आये, 
जैसे पास कोई उनके रामबाण हो
समस्या उनके लिए कोई आम बात हो, 
जो भी मुसीबत आये चाहे जब भी
दिखाये जैसे कुछ हुआ ही नहीं, 
पता नहीं कैसे करते ये सब अब भी
हर पल बिताता होगा बस चिंता में ही, 
नींद -चैन जो अपने दिन- रात गँवाए
तो दर्द कोई हमको कैसे छु पाए..? 
पिता की उन पावन चरणों की
हम तो भाग्यशाली धूल माटी.., 
प्रणाम है ऐसे संकट मोचन को..! 
जो मोती बनाया हम धूल कणों को ।

©Deepali Singh पिता
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