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Veer Tiwari
रात के 9:00 बज रहे हैं, और गाँव की गलियों में एक सुकून भरी ठंडक घुली हुई है। गली के दोनों किनारों पर लगी स्ट्रीट लाइट्स की रोशनी चारों ओर बिखरी हुई है, जो गाँव की सड़कों को चाँदनी जैसा उजाला दे रही है। गर्मी अब विदा लेने को है, और ठंडी हवा के झोंके जैसे इसे अलविदा कहने के लिए हर तरफ हाथ हिला रहे हैं। गाँव की यह रात किसी बड़े शहर की चहल-पहल से अलग है—यहाँ की सड़कों पर अब हल्की रौनक बची है। कहीं-कहीं लोग अभी भी अपने घरों के बाहर बैठकर हँसी-मज़ाक कर रहे हैं, और कहीं दूर से मोबाइल की धीमी-सी धुन सुनाई दे जाती है। खेतों के किनारे खड़े बिजली के खंभे और उनके तारों पर बैठी चिड़ियों की आवाज़ें अब शांत हो गई हैं, और सड़कों के किनारे लगे पेड़ हवा के साथ धीरे-धीरे हिल रहे हैं। चार-पाँच दिन बाद दिवाली है, और उससे पहले यह ठंडी रातें जैसे त्योहार का आगाज़ कर रही हैं। यह सिर्फ़ मौसम का बदलाव नहीं है, यह एक नई ताजगी और उम्मीद का संकेत है। जैसे ही हवा के झोंके पेड़ों से टकराते हैं, उनकी पत्तियाँ हौले से फड़फड़ाती हैं, जैसे गाँव का हर कोना इस बदलाव का हिस्सा बनना चाहता हो। आसमान में चमकते तारे और एक साफ चाँद की रोशनी, स्ट्रीट लाइट्स की पीली चमक में घुल-मिल गई है। सड़कें अब लगभग खाली हैं, पर कुछ गाड़ियों की लाइट्स अभी भी गाँव की सड़कों को पार कर रही हैं। यहाँ की रातें अब बस आराम और सुकून की होती हैं, जहाँ लोग अपने दिनभर की थकान को भुलाकर थोड़ी देर ठंडी हवा में बैठे रहते हैं। गाँव का यह दृश्य—साफ सजी-धजी गलियाँ, बिजली की रोशनी, और चारों ओर फैली हल्की ठंड—मन को एक अलग ही सुकून देती है। यह आधुनिकता और गाँव की सादगी का एक सुंदर मेल है, जहाँ रातें सिर्फ़ आराम की नहीं, बल्कि एक नए एहसास की भी हैं। धूल और हवा में तैरती ठंडक, ये सब मिलकर एक नया सुर रचते हैं, जो सीधे दिल तक पहुँचता है। यहाँ की रातें, यह शांति, और हर जगह की अपनी कहानी—सब कुछ मिलकर एक ऐसा अनुभव रचती हैं, जो बहुत गहरा और मनमोहक है। यह गाँव का नया रंग है, जहाँ आधुनिकता के साथ गाँव की आत्मा बरकरार है, और हर रात उसकी अपनी ही एक नई कहानी बुनती है। ©Veer Tiwari गांव की एक शाम ....
गांव की एक शाम ....
read moreशुभम मिश्र बेलौरा
White गांव का शहरी जब गांवों से पढ़ने निकले थे लक्ष्यों का अंबार लिए, माता पिता और गुरु दोस्त के सपनों का किरदार लिए। मक्खन रोटी के डिब्बे में नानी के दिये अचार लिए, दादी दादा के लाड प्यार में घुले हुए संस्कार लिए। शहर पहुंचते ही ये सब धीरे धीरे छूट गये, चमकीले चौराहों पर सब कन्ठी माला टूट गये। शहर पहुंच कर शाम को जब सब्जी लेना शुरू किया, पहली बार birthday में जब छोटा सा pack पिया। गांवों में उठने के वक्त अब शहरों में डेली सोता हूं, उठते ही पहले टपरी पर चाय सिगरेट पीता हूं। शहरी बनने के चक्कर में मेरा गांव ही पीछे छूट गया, गांव शहर की होड़ में मेरा लक्ष्य भी मुझसे रूठ गया। ©Shubham Mishra #Sad_Status गांव का शहरी
#Sad_Status गांव का शहरी
read moreAshok Verma "Hamdard"
White अच्छे थे वो, कच्चे घर भी, इमारतों में, इंतजाम बहुत है!! गाँव की गलियाँ, खाली पड़ी हैं, शहरों में, सामान बहुत है!! खुली हवा में, जो चैन मिलता, बंद कमरों में, धुआँ बहुत है!! न रिश्तों की अब, गर्मी बची है, पर तकनीकी, सम्मान बहुत है!! दादी-नानी की बातें छूटीं, मोबाईल में ही ज्ञान बहुत है!! सच्ची हंसी, कम दिखती अब, लेकिन चेहरे पर ,नकाब बहुत है!! सुख-सुविधाओं से घिरा इंसान, पर दिलों में, अरमान बहुत है!! दौड़ रही दुनिया, आगे बढ़ने को, फिर भी जीने में, थकान बहुत है!! सादगी की जो मिठास थी कभी, अब दिखावे में, ईमान बहुत है!! अकेले होते लोग भीड़ में, फिर भी दिखते, महान बहुत है!! *अशोक वर्मा "हमदर्द"*(कोलकाता) ©Ashok Verma "Hamdard" #गांव और शहर
#गांव और शहर
read moreSatish Kumar Meena
मत आवो जी साजणियां अपणा गांव। गांव भी विदेश लाग छ।। थां फरज निभावो मातृभूमि का लाल, थांसू ही तो देश आग छ।। ©Satish Kumar Meena गांव भी विदेश लाग छ
गांव भी विदेश लाग छ
read moreArjun Rawat पार्थ
बदनाम
White आखरी बस से उसे विदा कर आया हु घर में ख़ामोशी है और रातें लंबी हमारे गांव का वो आखरी बच्चा आज शहर जा रहा है ©बदनाम गांव
गांव
read moreAnand Kumar Ashodhiya
पर्यावरण - नई हरयाणवी रागनी तूं कितना ए जतन लगाले बन्दे वो पल में प्रलय करता है तूं भाज भाज कै थक लेगा, वो एक पग में योजन भरता है तनै पेड़ अर पौधे काट काट कै, जंगल नदी उजाड़ दिए पर्वत घाटी काट काट कै, खनिज और पत्थर काढ़ लिए उनै बाढ़ के पंजे गाड़ दिए, इब क्यूं ज्यान बचाए फिरता है तनै सारी ए धरती बंजर करदी, मार कै खाद दवाई खान पान सब जहरी कर दिया, जहरी ए हवा बणाई तनै अपनी शामत आप बुलाई, वो तौल तौल कै धरता है धरती थोथी करकै नै तनै, सारा पाणी खींच लिया पीवण नै भी छोड़या ना तनै, आंगण बाड़ी सींच लिया उनै दया का पंजा भींच लिया इब, बूंद बूंद नै मरता है कई कई मंजिल भवन बणा लिए, कितै बारा कितै ठारा पहाड़ दरकगे नदी उफणगी, तेरा कुछ ना चाल्या चारा कदे सुनामी कदे हल्लण आरहया, फिर कुदरत से क्यूं डरता है गुरु पालेराम नै पकड़ आंगली कथना रचना सिखा दिया के आच्छा के बुरा जगत में शीशे की ज्यूं दिखा दिया उनै कड़वा मीठा चखा दिया वो जीवन के दुख हरता है कॉपीराइट©️आनन्द कुमार आशोधिया 2024-25 ©Anand Kumar Ashodhiya #पर्यावरण नई हरयाणवी रागनी पर्यावरण कविता कोश कविताएं प्रेरणादायी कविता हिंदी कविता हिंदी कविता
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