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Praveen Jain "पल्लव"
White पल्लव की डायरी फुर्सत का हर पल जबाब कल का चाहता है सुख चैन आज का मिले मगर भविष्य का सपना सारी मौजे और मस्ती खा जाता है वो तब है जब आती जाती साँसों से इकरार नही पल भर का है फिर भी ना जाने इंसान बेजान चीजो के लिये दाँव पर अपनी जिंदगी लगा जाता है प्रवीण जैन पल्लव ©Praveen Jain "पल्लव" #love_shayari फुर्सत का हर पल,जबाब कल का चाहता है
#love_shayari फुर्सत का हर पल,जबाब कल का चाहता है
read moreNishchhal Neer
जब मिलना हो खुद से तो.. प्रकृति से मिल लेता हूँ.. मन की मटमैली यादों को.. पानी से धो लेता हूँ.. निश्छल "नीर" poetry #kavita shayari sha
read moreनवनीत ठाकुर
जमीन पर आधिपत्य इंसान का, पशुओं को आसपास से दूर भगाए। हर जीव पर उसने डाला है बंधन, ये कैसी है जिद्द, ये किसका अधिकार है।। जहां पेड़ों की छांव थी कभी, अब ऊँची इमारतें वहाँ बसी। मिट्टी की जड़ों में जीवन दबा दिया, ये कैसी रचना का निर्माण है।। नदियों की धाराएं मोड़ दीं उसने, पर्वतों को काटा, जला कर जंगलों को कर दिया साफ है। प्रकृति रह गई अब दोहन की वस्तु मात्र, बस खुद की चाहत का संसार है। क्या सच में यही मानव का आविष्कार है? फैक्ट्रियों से उठता धुएं का गुबार है, सांसें घुटती दूसरे की, इसकी अब किसे परवाह है। बस खुद की उन्नति में सब कुर्बान है, उर्वरक और कीटनाशक से किया धरती पर कैसा अत्याचार है। हरियाली से दूर अब सबका घर-आँगन परिवार है, किसी से नहीं अब रह गया कोई सरोकार है, इंसान के मन पर छाया ये कैसा अंधकार है।। हरियाली छूटी, जीवन रूठा, सुख की खोज में सब कुछ छूटा। जो संतुलन से भरी थी कभी, बेजान सी प्रकृति पर किया कैसा पलटवार है।। बारूद के ढेर पर खड़ी है दुनिया, विकसित हथियारों का लगा बहुत बड़ा अंबार है। हो रहा ताकत का विस्तार है,खरीदने में लगी है होड़ यहां, ये कैसा सपना, कैसा ये कारोबार है? ये किसका विचार है, ये कैसा विचार है? क्या यही मानवता का सच्चा आकार है? ©नवनीत ठाकुर #प्रकृति का विलाप कविता
#प्रकृति का विलाप कविता
read moreDr. Satyendra Sharma #कलमसत्यकी
White तनहा हूँ अकेला हूँ, अपने मौज मे हूँ, अलबेला हूँ, समझो तो काम का, वरना पत्थर का ढेला हूँ। #कलमसत्यकी ✍️©️ ©Dr. Satyendra Sharma #कलमसत्यकी #love_shayari तनहा हूँ अकेला हूँ, अपने मौज मे हूँ, अलबेला हूँ, समझो तो काम का, वरना पत्थर का ढेला हूँ। #कलमसत्यकी ✍️©️ #कलमसत्यकी
#love_shayari तनहा हूँ अकेला हूँ, अपने मौज मे हूँ, अलबेला हूँ, समझो तो काम का, वरना पत्थर का ढेला हूँ। #कलमसत्यकी ✍️©️ #कलमसत्यकी
read moreSarita Kumari Ravidas
White एक घर हो सपनों का आशाओं का उम्मीदो का तिनका तिनका जोड़ बना हो जो ख्वाबों सा सपनों का घर हो जो महलों सा हर रिश्ता जो चमके चांद सितारों सा साथ हों सब अपनों का एक घर हो सपनों सा ©Sarita Kumari Ravidas #sad_shayari एक घर हों सपनों का #Nojoto #Poetry #dream_home प्रेरणादायी कविता हिंदी कविता कोश कविताएं हिंदी कविता
#sad_shayari एक घर हों सपनों का Poetry #dream_home प्रेरणादायी कविता हिंदी कविता कोश कविताएं हिंदी कविता
read moreKamlesh Kandpal
ये सोचता हूँ मै अक्सर जो आता है मुझे नजर ये धरती, या ये आकाश सूर्य का अदभुत प्रकाश चंदा गोल,टीमटिमाते तारे बनाये ये सब,किसने सारे ठंडी, गर्मी औऱ ये बरसात लू के दिन,अमावस की रात पाने की खुशी, खोने का डर ये सोचता हूँ मै अक्सर जो आता है मुझे नजर ©Kamlesh Kandpal #प्रकृति का सौंदर्य हिंदी कविता
#प्रकृति का सौंदर्य हिंदी कविता
read moreMAHENDRA SINGH PRAKHAR
ग़ज़ल :- माँग तेरी मैं सज़ाना चाहता हूँ हाँ तुझे अपना बनाना चाहता हूँ राह उल्फ़त की बनाना चाहता हूँ प्यार हर दिल में बसाना चाहता हूँ आप बिन तो इस जहाँ में कुछ नही है बात मिलकर ये बताना चाहता हूँ दो कदम जो साथ मेरे तुम चलो तो इक़ नई दुनिया दिखाना चाहता हूँ रोते-रोते रात सारी कट गई यह भोर तक तुमको हँसाना चाहता हूँ ख़्वाब में आकर करोगे तुम परेशां नींद पलको से हटाना चाहता हूँ बिन तुम्हारे जो गुजारी है यहाँ पर उसकी हर कीमत चुकाना चाहता हूँ भूलकर बातें पुरानी आज तुमको मैं गले अपने लगाना चाहता हूँ फिर न तोड़े कोई ये बंधन वफ़ा का इस तरह रिश्ते निभाना चाहता हूँ । महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR ग़ज़ल :- माँग तेरी मैं सज़ाना चाहता हूँ हाँ तुझे अपना बनाना चाहता हूँ राह उल्फ़त की बनाना चाहता हूँ प्यार हर दिल में बसाना चाहता हूँ आप बिन
ग़ज़ल :- माँग तेरी मैं सज़ाना चाहता हूँ हाँ तुझे अपना बनाना चाहता हूँ राह उल्फ़त की बनाना चाहता हूँ प्यार हर दिल में बसाना चाहता हूँ आप बिन
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