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Fuck off nojoto

नादानगी में कैसे, ख़ुद को बहका रहे हैं नही है नही है, इश्क़ झुठला रहे है.. दिल जलाने में उनको, मज़े आ रहे है जिगर चाक करके #Shayari

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नादानगी में कैसे,   ख़ुद को बहका रहे हैं
नही  है  नही  है,     इश्क़  झुठला  रहे  है..

दिल  जलाने  में  उनको, मज़े  आ  रहे  है
जिगर  चाक  करके,  वो  चले  जा  रहे  है..

हुए पाँच दिन कुल, उनको मुझसे है बिछड़े
अभी  से  ये  तारे,  जिस्म  पिघला  रहे  हैं..

गले से लगा लो,   या मुझको मार डालो
वसवसे तन्हाइयों के,   दिल दहला रहे हैं..

किया ये अहद है,   फिर ना होगी मुहब्बत
लाचारगी तो देखो,   ख़ुद को बहला रहे हैं..

लगाते है वो मोल,   उदासियों का मिरी
हूँ  परेशां  बे-मतलब,  ये  दोहरा  रहे  हैं..

आँखों से मिरी आँसू, सँभाले ही न संभलें
रहमत ये किस ख़ुशी में,  वो बरसा रहे हैं..

इक शराब ही है,  ग़म-ए-फुरक़त समझती
मरीज़-ए-इश्क़ ख़ुद को, यूँ भी समझा रहे हैं..

वाक़िफ़ हो गए है, दुश्वारियों से ज़िन्दगी की
हम  भी  हैं  इंसा,  हम  भी  पछता  रहे  हैं..

तस्वीरों को जिसकी, देखकर तू था रोया
कूचा-ए-रक़ीब में वो इश्क़ फरमा रहे हैं..

दूर महसूस ख़ुद को, करते है ख़ुद ही से
बेवज़ह नही हम, तग़ज़्ज़ुल फ़रमा रहे है..

किनारे  लग  गए  हैं,    मिरे  ख़्वाब  सारे
देखकर  मिरा  हस्र,  ये  भी  घबरा  रहे  है..

मेरा अज़ीब होना,  ही  है  मेरी  जरूरत
छोटे मोटे ग़म तो,  आने को शरमा रहे है..

©Arshu.... नादानगी में कैसे,   ख़ुद को बहका रहे हैं
नही  है  नही  है,     इश्क़  झुठला  रहे  है..

दिल  जलाने  में  उनको, मज़े  आ  रहे  है
जिगर  चाक  करके

अदनासा-

विडियो सौजन्य एवं हार्दिक आभार💐🌹🙏😊🇮🇳🇮🇳https://www.instagram.com/reel/C8rezAhvL3e/?igsh=YTJuYWVjdXB1aWE1 #हिंदी #कव्वाली #कलाकार #फ़नकार हबी #Instagram #पत्थर #वीडियो #काशी #काबा #अदनासा #हबीबपेंटर

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MAHENDRA SINGH PRAKHAR

*विधा     सरसी छन्द आधारित गीत* आओ लौट चलें अब साथी , सुंदर अपने गाँव । वहीं मिलेगी बरगद की सुन , शीतल हमको छाँव ।। आओ लौट चलें अब साथी ... #कविता

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*विधा     सरसी छन्द आधारित गीत*

आओ लौट चलें अब साथी , सुंदर अपने गाँव ।
वहीं मिलेगी बरगद की सुन , शीतल हमको छाँव ।।
आओ लौट चलें अब साथी ....

पूर्ण हुई वह खुशियाँ सारी , जो थी मन में चाह ।
खूब कमाकर पैसा सोचा , करूँ सुता का ब्याह ।।
आज उन्हीं बच्चों ने बोला , क्यों करते हो काँव ।
जिनकी खातिर ठुकरा आया, मातु-पिता की ठाँव ।
आओ लौट चलें अब साथी .....

स्वार्थ रहित जीवन जीने से , मरना उच्च उपाय ।
सुख की चाह लिए भागा मैं, और बढ़ाऊँ आय ।।
यह जीवन मिथ्या कर डाला , पाया संग तनाव ।
देख मनुज से पशु बन बैठा , डालो गले गराँव ।।
आओ लौट चलें अब साथी....

भूल गया मिट्टी के घर को , किया नहीं परवाह ।
मिला प्रेम था मातु-पिता से , लगा न पाया थाह ।।
अच्छा रहना अच्छा खाना , मन में था ठहराव ।
सारा जीवन लगा दिया मैं , इन बच्चों पर दाँव ।।
आओ लौट चलें अब साथी .....

झुकी कमर कहती है हमसे , मिटी हाथ की रेख ।
गर्दन भी ये अब न न  करती ,लोग रहे सब देख ।।
वो सब हँसते हम पछताते, इतने हैं बदलाव ।
मूर्ख बना हूँ छोड़ गाँव को , बदली जीवन नाँव ।।
आओ लौट चलें साथी अब ...

कभी लोभ में पड़कर भैय्या , छोड़ न जाना गाँव ।
एक प्रकृति ही देती हमको , शीतल-शीतल छाँव ।।
और न कोई सगा धरा पर , झूठा सभी लगाव ।
अब यह जीवन है सुन दरिया , जाऊँ जिधर बहाव ।।
आओ लौट चलें अब साथी....

आओ लौट चलें अब साथी , सुंदर अपने गाँव ।
वहीं मिलेगी बरगद की सुन , शीतल हमको छाँव ।।

महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR *विधा     सरसी छन्द आधारित गीत*

आओ लौट चलें अब साथी , सुंदर अपने गाँव ।
वहीं मिलेगी बरगद की सुन , शीतल हमको छाँव ।।
आओ लौट चलें अब साथी ...
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