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AL Ibrahimi
मेरे यार भी कितने ज़हीन हैं. मेरे खामोशियों से...... मेरे दर्द का अंदाज़ा लगा लेते हैं. मुझे खिड़कियों से आते देख "इब्राहिमी" अपना दरवाज़ा लगा लेते हैं. शादाब अल इब्राहिमी (ज़हीन-sensible) ©AL Ibrahimi after long time.....my pen is telling about my HAMDARD.
after long time.....my pen is telling about my HAMDARD.
read moreDibyendu Kabi
Good morning all friends ©Dibyendu Kabi on the River. Life is changing. Morning is Loving.
on the River. Life is changing. Morning is Loving.
read moreShuvam
The phrase "Life is the flower for which love is the honey" uses the metaphor of a flower and honey to illustrate the essential relationship between life and love. In this analogy, life is depicted as a flower—a beautiful and transient entity that blooms and flourishes over time. Love, then, is likened to honey—a sweet, nourishing substance that enhances and enriches the flower's existence. This suggests that love is a crucial and enriching element that gives life its depth and sweetness. Just as honey enhances the flavor of the flower, love enhances the experience of life, making it more meaningful and fulfilling. Without love, life might still exist, but it would lack the sweetness and joy that love provides. Moreover, the analogy implies that love is not just a passive addition but an active, vital component that sustains and beautifies life. Love provides nourishment and meaning, making the challenges and beauty of life more profound. In essence, the phrase conveys that love is integral to living a rich and satisfying life, transforming ordinary moments into something extraordinary. ©Shuvam "Life is the flower for which love is the honey" #Quote #motivatation
"Life is the flower for which love is the honey" #Quote #motivatation
read moreसंगीत कुमार
(मनुज कवि बन जाता है) जब अम्बर पिघल धरा पर आ न सके अधरों पे मुसकान रूक जाये आँखों से अश्क बन बह जाये और जब कलपित उर रो जाये तो समझो मनुज कवि बन जाता है व्यथा जब अपना न किसी से कह सके लज्जा से मन भर जाये काली रातों की अंधियारी में जब सारा भुवन सो जाये तो समझो मनुज कवि बन जाता है जब मन भयभीत हो कुछ कहन सके पीड़ित हो अपनो से जब हाथों में कलम उठा लेते हैं शब्दों के सरिता में रम जाते हैं तो समझो मनुज कवि बन जाता है जब सामने अंधेरा छा जाये अकेला बेसहारा मन होने लगे तब नैनो के नीर स्याही से निज व्यथा को लिख डाले तो समझो मनुज कवि बन जाता है संघर्ष भरा जब जीवन हो लोगों के बीच समर्पण हो तब साहित्य में खो जाता है अपनी भावना उकेर डालता है तो समझो मनुज कवि बन जाता है जब भुलेबिसरे याद आये उर में दर्द की कसक उठे वेदना से मन काँप जाये तब हाथो में कलम उठाता है तो समझो मनुज कवि बन जाता है जब अपने प्रिय से न मिल सके यादों की व्यथा में खो जाये साहित्य की सरिता में बह जाये एक लेखनी लिख डाले तो समझो मनुज कवि बन जाता है जब जीवन मे मनचाहा सफलता मिल न सके मन गगन की उड़ान तो भरता है अक्षर शब्द मिल कविताओ में परिणित हो जाता है मन की भावना खूबसूरती से निखारता है तो समझो मनुज कवि बन जाता है ©संगीत कुमार #pen