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Vijay Vidrohi
सूख गए हों सबके प्राण झुक गया हो आसमान 6 दिसंबर 1956 को जब हुआ बाबा साहब का महापरिनिर्वाण। छोड़ गए हम सबका साथ रहा नहीं है सर पर हाथ उनके बिन अब कौन करेगा वंचित पिछड़ों के हकों की बात। खुद मर कर किया बुद्ध को जिंदा हैं उनके जैसे शख्स चुनिंदा आज तलक है मिशन अधुरा बाबा साहब हम हैं शर्मिंदा ©Vijay Vidrohi baba sahb ko samrpit kavita hindi poetry on life poetry lovers love poetry in hindi metaphysical poetry punjabi poetry
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