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ਸੀਰਿਯਸ jatt
White सुनिये दो पंक्ति रावण के संदर्भ मे! "के माना हुआ था पाप मुझसे पराई स्त्री को लंका लाया था, मरियाद की रेखा में रहते हुए उसको पटरानी बनाना था " ये तो नियति थी मरीयादा पुरषोत्तम के हाथो से मेरा वध निश्चित है परंतु आज के कायर और मुर्ख लोग मेरे पुतले में आग लगाते है बताओ मुझे क्या वो मेरी तराह ज्ञानी कह लाते है? एक हाथ से औरत की इज़्ज़त उतारते है दूसरे हाथ से मेरे पुतले में आग लगाते है ऐसा कलयुग आ गया! अगर में बहक गया तो कितना पापी हो गया! ©ਸੀਰਿਯਸ jatt #Dussehra रावण के पुतले में आग तभी लगाना जब आप रावण के बराबरी हो!
#Dussehra रावण के पुतले में आग तभी लगाना जब आप रावण के बराबरी हो!
read morekavi Dinesh kumar Bharti
टीका बन गया रोग ©kavi Dinesh kumar #टीका बन गया रोग कविता
#टीका बन गया रोग कविता
read morePrakashChandraKumar
White रात अँधेरी हो सजनी के हाथो में मेरा हाथ हो बस लेकिन कुछ याद में साथ हो मेरी हर कल्पना की नयी पहचान हों! ©PrakashChandraKumar #love_shayari रात अँधेरी हो सजनी के हाथो में मेरा हाथ हो #प्रकाश_की_काश #1000followers #1k
#love_shayari रात अँधेरी हो सजनी के हाथो में मेरा हाथ हो #प्रकाश_की_काश #1000followers #1k
read morePraveen Jain "पल्लव"
White पल्लव की डायरी मन के संचित भावो ने ही आवरण भव भवो के ओड़े है आकुल व्याकुल हर्ष विषाद में अनजाने पापो के पाप आत्मा में जोड़े है करो चिकित्सा इनकी अब दस दिन दसधर्म को प्रगटाओ एक एक धर्म का सार समझो बोधिसत्व चेतना तक पहुँचायो कैम्प समझो आत्मशुद्धि का दस दिन विकारों को दूर भगाये सत्य शौच संयम त्याग तपस्या और व्रतों से मुक्तिपथ अपनाकर जन्म मरण का रोग भगाये प्रवीण जैन पल्लव ©Praveen Jain "पल्लव" #Buddha_purnima जन्म मरण के रोग भगाये #nojotohindi
#Buddha_purnima जन्म मरण के रोग भगाये #nojotohindi
read moreM R Mehata(रानिसीगं )
White जय माता दी 🌼🌼🌼 अपने और पराये का भेद सिखाया है जीवन में कैसे रखे दोनो से मेल.... मीठा हो बोल परायो के लिए केवल अपनापन तो अपनो के लिए ही है केवल अच्छे से समझाया है.... 😪💔 ©M R Mehata(रानिसीगं ) #teachers_day अपनापन हो अपनो के लिए
#teachers_day अपनापन हो अपनो के लिए
read moreHeer
रोग ऐसा रोग लगा मुझे की, अब नहीं दिखता कोई अपना, जकड़ा मुझको इसने ऐसे की, रहा न कोई अपना। छाया अब घनघोर अंधेरा, कैसी दुविधा है आई, चारो ओर उदासी है लाई, इंतजार जीवन भर पाया। चेहरे पर खुशी नहीं अब, ऐसा साल आया अब, पैसे रहा न अपने रहे,रहा न कोई अपना। शुरुआत में लगा मुझे भी, सलामत घर को लौट जाऊंगा, सब कुछ ठीक फिर हो जायेगा,पहले जैसा बन जायेगा। लेकिन फिर अचानक से, इस बीमारी ने अपना रंग दिखाई, दिखाया मुझको फिर आइना, मुझसे मेरी पहचान कराई। अब पूछते है एक दूसरे से, कब होगा सब पहले जैसा, कब तक रहेगा सब ऐसा, हर सुबह करते है अब सब, सवाल नए एक दूसरे से। कही ऐसा न हो जाए, उड़ जाए पंछी अकेला, रह जाए बस खाली पिंजरा, समझ आया जब रोग ये लगा, रहा न कोई अपना। Alfazii 🖊️💙 ©Heer #रोग