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'भूप'
मैं कब कहता हूँ जग मेरी दुर्धर गति के अनुकूल बने, मैं कब कहता हूँ जीवन-मरू नंदन-कानन का फूल बने ? काँटा कठोर है, तीखा है, उसमें उसकी मर्यादा है, मैं कब कहता हूँ वह घटकर प्रांतर का ओछा फूल बने ? ©'भूप' अज्ञेय
अज्ञेय
read moreHintsOfHeart.
"सपने की एक किरण मुझको दो ना, है मेरा इष्ट तुम्हारे उस सपने का कण होना। और सब समय पराया है, बस उतना ही क्षण अपना। तुम्हारी पलकों का कँपना, तनिक-सा चमक खुलना, फिर झँपना।"¹ ©HintsOfHeart. #Good_Night 💖 1.अज्ञेय की कविता #पलकों_का_कँपना का अंश।
#good_night 💖 1.अज्ञेय की कविता #पलकों_का_कँपना का अंश।
read moreसिद्धार्थ मिश्र स्वतंत्र
नदी के दो किनारे हम Hindi Trending Love Poetry कविता शायरी Shayar स्वतंत्र
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