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MAHENDRA SINGH PRAKHAR

विषय हिन्दी विधा दोहा हिन्दी हिन्दस्तान की , सुन लो होती शान । इसके देश विदेश में , है लाखो विद्वान ।।१ हिन्दी से नित मिल रह #कविता

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White विषय       हिन्दी :- विधा        दोहा

हिन्दी हिन्दस्तान की , सुन लो होती शान ।
इसके देश विदेश में , है लाखो विद्वान ।।१

हिन्दी से नित मिल रहा , भारत को सम्मान ।
हिन्दी ही पहचान है , करो सदा गुणगान ।।२

हिन्दी-हिन्दी रट रहे , हिन्दी में कुछ खास ।
हिन्दी पढ़ ले आप तो , हो जाए विश्वास ।।३

प्रथम बोल नवजात के , माँ से हो शुरुआत ।
हिन्दी के यह बोल है , होता सबको ज्ञात ।।४

हिन्दी भाषा में भरा , सुनो ज्ञान भण्डार ।
वर्ण-वर्ण पढ़कर कभी , तुम भी करो विचार ।।५

**************************
मुक्तक :-

हमें  तो  बोलना भी  माँ  सिखाती  है  सुनों  हिन्दी ।
सभी स्वर  के अलग  लक्षण बताती है सुनों हिन्दी ।
रहूँ  मैं दूर क्यूँ  इससे  सभी  हैं काम  रुक  जाते -
हमारी तो  सभी  खुशियां  दिलाती  है सुनों हिन्दी ।।१

नहीं  भाषा  गलत  कोई  मगर  पहचान  है  हिन्दी ।
हमारी  सभ्यता का  नित  करे  व्याख्यान है हिन्दी ।
इसी  में  तो  समाहित  आज  हिंदुस्तान  है सारा -
तभी तो  हिन्द  की  देखो  बनी अभिमान है हिन्दी ।।२

१४/०९/२०२३     महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR विषय       हिन्दी 
विधा        दोहा

हिन्दी हिन्दस्तान की , सुन लो होती शान ।
इसके देश विदेश में , है लाखो विद्वान ।।१

हिन्दी से नित मिल रह

Devesh Dixit

#रहन_सहन #nojotohindi #nojotohindipoetry रहन सहन रहन सहन तुम ऐसा रखना कि ये दुनिया बजाए ताली स्वभाव में कभी अहम न रखना कि ये जीवन जाए खाल #Poetry #sandiprohila

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रहन सहन

रहन सहन तुम ऐसा रखना
कि ये दुनिया बजाए ताली
स्वभाव में कभी अहम न रखना
कि ये जीवन जाए खाली

सदाचार का ऐसा पालन करना
जैसे फूलों को रखे माली
ईश्वर से यही प्रार्थना करना
सम्मान का न हो भण्डार खाली

दुनिया की न परवाह करना
कि जिंदगी अनमोल तुम्हे है बितानी
अपना फैसला ऐसा करना
कि जिंदगी न पड़ जाए तुमको भारी

परिवार को अपने संभाले रखना
अहम से न हो जाए दीवार खड़ी
प्रेम से डोर में बांधे रखना
टूट न जाए कहीं रिश्तों की लड़ी

रहन सहन तुम ऐसा रखना
कि ये दुनिया बजाए ताली
स्वभाव में कभी अहम न रखना
कि ये जीवन जाए खाली
.........................................................
देवेश दीक्षित

©Devesh Dixit #रहन_सहन #nojotohindi #nojotohindipoetry 

रहन सहन

रहन सहन तुम ऐसा रखना
कि ये दुनिया बजाए ताली
स्वभाव में कभी अहम न रखना
कि ये जीवन जाए खाल

Devesh Dixit

#रहन_सहन #कविता #nojotohindi #nojotohindipoetry रहन-सहन रहन सहन तुम ऐसा रखना कि ये दुनिया बजाए ताली स्वभाव में कभी अहम न रखना कि ये जीवन #Poetry #sandiprohila

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Devesh Dixit

#अटल_सत्य #दोहे #nojotohindi #nojotohindipoetry अटल सत्य (दोहे) अटल सत्य है मौत ही, सबको ये संज्ञान। फिर भी क्यों समझे नहीं, करते हैं अभि #Poetry #sandiprohila

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Devesh Dixit

#नोट_बंदी #nojotohindi #nojotohindipoetry नोट बंदी नोट बंदी में देख हुआ, सबका बुरा हाल। लगे कतार में बैंक के, मन में उठे सवाल। #Poetry #sandiprohila

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MAHENDRA SINGH PRAKHAR

गीत :- उलझ रहा है निशिदिन मानव , जिनके नित्य विचारो से । भाषण देते बन अभिनेता , सत्ता के गलियारों से ।। उलझ रहा है निशिदिन मानव .... छोड़ सभ #कविता

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White गीत :-
उलझ रहा है निशिदिन मानव , जिनके नित्य विचारो से ।
भाषण देते बन अभिनेता , सत्ता के गलियारों से ।।
उलझ रहा है निशिदिन मानव ....

छोड़ सभी वह रिश्ते-नाते, बैठे ऊँचे आसन पे ।
पहचाने इंसान नही जो , भाषण देते जीवन पे ।।
जिसे खेलना पाप कहा था , मातु-पिता औ गुरुवर ने ।
उसी खेल का मिले प्रलोभन , सुन लो अब सरकारों से ।।
उलझ रहा है निशिदिन मानव .....

मातु-पिता बिन कैसा जीवन , हमने पढ़ा किताबों में ।
ये बतलाते आकर हमको , दौलत नही हिसाबों में ।।
इनके जैसा कभी न बनना , ये तो हैं खुद्दारों में ।
दया धर्म की टाँगें टूटी , इन सबके व्यापारो से ।।
उलझ रहा है निशिदिन मानव....

नंगा नाच भरे आँगन में, इनके देख घरानों में ।
बेटी बेटा झूम रहे हैं , जाने किस-किस बाहों में ।।
अपने घर को आप सँभाले, आया आज विचारों में ।
झाँक नही तू इनके घर को , पतन हुए संस्कारो से ।।
उलझ रहा है निशिदिन मानव.....

दौड़ रहे क्यों भूखे बच्चे , तेरे इन दरबारों में ।
क्या इनको तू मान लिया है , निर्गुण औ लाचारों में ।।
बनकर दास रहे ये तेरा , करे भोग भण्डारों में ।
ऐसी सोच झलक कर आयी , जग के ठेकेदारों से ।।
उलझ रहा है निशिदिन मानव ...

बदलो मिलकर चाल सभी यह , प्रकृति बदलने वाली है ।
भूखे प्यासे लोगो की अब , आह निकलने वाली है ।
हमने वह आवाज सुनी है , चीखों और पुकारों से ।
आने वाले हैं हक लेने , देखो वह हथियारों से ।।
उलझ रहा है निशिदिन मानव ....

उलझ रहा है निशिदिन मानव , जिनके नित्य विचारो से ।
भाषण देते वे अभिनेता , सत्ता के गलियारों से ।।

महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR गीत :-
उलझ रहा है निशिदिन मानव , जिनके नित्य विचारो से ।
भाषण देते बन अभिनेता , सत्ता के गलियारों से ।।
उलझ रहा है निशिदिन मानव ....

छोड़ सभ
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