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Stories related to ख़िल्क़त-ए-शहर

    LatestPopularVideo

nada.dil

White हर शहर अच्छा होता है 
पर अपना शहर तो दिल के करीब होता है

©nada.dil #sad_shayari 



#Life #शहर #लव #nojohindi

हिमांशु Kulshreshtha

ए दिल.. #कविता

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White मन तो बावरा है
अटकता है कभी तो
भटकता है कभी.. 
विरक्त है कभी तो
आसक्त है कभी...
धूप है प्रेम की
तो छाह यादों की कभी!!

डूबता उतरता सा
मचलता, भटकता सा कभी,
कितने रंग समेटे खुद में
हो रहा बदरंग कभी

रे मन..
कैसे पाऊँ थाह तेरी
है तू आस कभी तो
तू है निर्लिप्त कभी

©हिमांशु Kulshreshtha ए दिल..

Lõkêsh

शहर… #Poetry

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White कितने दर्द दबाए बैठे है, कितने जख्म छिपाये बैठे है ।यहां गांव सी भोर नहीं ,घर आंगन का छोर नहीं । नहीं यहां वो मित्र सखा,नहीं यहां वो सुख चैना। अब रास नहीं आते यह  महल अटारी , हमको अपनी बस्ती प्यारी । पल पल हर पल संघर्ष यहां,खुशी का स्वांग रचाए बैठे है । न जाने इस शहर में , कितने दर्द दबाए बैठे है ...

©Lõkêsh शहर…

#Poetry

tripti agnihotri

विषय -गाँव और शहर #कविता

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Ghumnam Gautam

White रिंद जब मैक़दे को जाते हैं
पुर-अदब मैक़दे को जाते हैं

मेरे ग़म ने ये मुझसे पूछ लिया―
आप कब मैक़दे को जाते हैं?

जितने भी हैं नए ज़माने के
सारे रब मैक़दे को जाते हैं

क्या ग़ज़ब है कि बे-अदब हैं जो
बा-अदब मैक़दे को जाते हैं

जब कोई ख़ास ग़म सताता है
लोग तब मैक़दे को जाते हैं

उफ़! तेरे ये नशीले तिश्ना लब
क्या ये लब मैक़दे को जाते हैं?

शह्र में कौन रोए बुत के पास!
सब-के-सब मैक़दे को जाते है

©Ghumnam Gautam #love_shayari 
#शहर 
#लोग 
#ghumnamgautam

Satish Kumar Meena

शहर #विचार

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Satish Kumar Meena

शहर की हवा #विचार

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k. k

#Sad_shayri शहर 2 #SAD

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Urmeela Raikwar (parihar)

ए जिंदगी #शायरी

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Dev Rishi

#दिल ए बारिशें #कविता

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संगीत सी ये मीठी बारिश... सरगम जैसी लगती हैं 
पल्लव के ये बहुत प्यारे , तुम तो प्रेमिका सी लगती हो....
कौन गाये करूण कथाएं , तुम तो यौवन सी थिरकती हो
काशी में  मणिकर्णिका... क्या तुम उसके जैसी लगती हो  


खिला ग़ुलाब चंपा चमेली, 
मादकता सी लगती हो 
अधरों पर मीठी मुस्कान,  
खिली पंखुड़ियों जैसी लगती हो 

वीरों के पथ कोमल शोभा सुसज्जित हो, 
  खुद मरने को तत्पर रहती हो  
संगीत सी ये मीठी बारिश... सरगम जैसी लगती है 
पल्लव के ये बहुत प्यारे, तुम तो प्रेमिका सी लगती हो.....



   जाए के ये धनी माटी, सोना सपूत उपजाती हो 
तपती मरती विमुक्त जनों से, फिर भी हरियाली से भरी हुई रहती हो  
वो श्रंगार बारिशें का , उसमें तो ज्यादा ही जंचती हो 
जननी जन्म भूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी  तुम लगती हो.....


  गांवों के किसान तेरे  , जैसे पहली मुहब्बत सी लगती हो 
वो दूर से तुझे निहारें , तुम तो मृगतृष्णा सी क्यों लगती हो 
 छीन क्यों तुम लेती हो  , तनय सुख क्यों नहीं जीने देती हो  
 तेरे मिट्टी में मैं मिल जावा, उस पागल से क्यों कहलाती हो  

 न मिले तुझे दिल ए बारिशें, रक्तों की तुम केवल प्यासी हो   
अगर दिल तेरा भर जाएं तो  एक दफा तुम सावन बुलाना
रिमझिम रिमझिम बारिश बरसें  यौवन की विरह  तुम पा जाना
संगीत सी ये मीठी बारिश... सरगम जैसी लगती हैं 
पल्लव के ये बहुत प्यारे , तुम तो प्रेमिका सी लगती हो........

©Dev Rishi #दिल ए बारिशें
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