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अभिव्यक्ति और अहसास -राहुल आरेज

नौकरी बजानी होती है सहाब

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White नौकरी बजानी होती है सहाब,
झोला उठाकर निकल जाता हूं 
लौट आता निस्तेज 
मै क्या करूं,
पेट बडा हो गया है मेरा 
सब डकार जाता है 
रद्दी हो या बेकार,
नौकरी बजानी होती है सहाब
पकने लगे है अब बाल मेरे ,
सब पता है फिर भी चलायमान तन मन,
रूकता कहां है थमता कहां है 
हा ठिकाना भी जानता हूं 
साठ के बाद का 
वही पिछले का पुराना पलंग ,
गंदी तकिया  और वो अंतिम पथ का प्रथम कोना।
हास्यपद है फिर भी 
नौकरी बजानी पडती है सहाब।

©अभिव्यक्ति और अहसास -राहुल आरेज नौकरी बजानी होती है सहाब

Vinod Mishra

"होशियार तो लोमड़ी भी होती है परन्तु वह रोमहर्षक और अनुकरणीय नहीं होती है." #विनोद #मिश्र #मोटिवेशन ✍️

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