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Sunny Khude

#sad_qoute पैसा आणि पाणी माझ्या लेखणीतून #मराठीविचार

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White पैसा आणि पाणी ,दोन्ही जपून वापरायचा असतो ,नाहीतर पंचाईत होईल ,लेखक : - सनी सुनील खुडे(यूट्यूबर)

©Sunny Khude #sad_qoute पैसा आणि पाणी माझ्या लेखणीतून

cldeewana

#Paris_Olympics_2024 रिमझिम बरसात रिमझिम बरसात करके #कविता

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Pankaj Bindas

अपड़ा मायादार से दूर, दूर परदेशों मा अपड़ा मायादार की खुद भौत सतोंदी। द्वी झणों मा दिरगम्ब हूणा का बाद बी मिलन की छटपटाहट रांद, योक-दूसरा से #wife #SAD #Yaad #poem #kavita #कविता #Nozoto #viral #garhwali

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Anjali Singhal

"दिल पर लिखा है मैंने जबसे तेरा नाम, भंवरों ने भेजा है फूलों को पैगाम; नजारों ने बिखेरी है रंगों की ये शाम, सितारे भी मदहोश हैं पीकर के ये ज #Poetry #ViralVideo #EXPLORE #AnjaliSinghal

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cldeewana

#Ind_vs_pak रिमझिम फुहार लेकर आया सावन गीत #शायरी

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Nirankar Trivedi

सावन का महीना, हरियाली का रंग, बूँदों की रिमझिम और खुशियों का संग। #sawan_2024

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MAHENDRA SINGH PRAKHAR

कुण्डलिया :- नीले अम्बर के तले , जपते राधा नाम । बारिश की हर बूँद से , बचा रहे घनश्याम ।। बचा रहे घनश्याम , भीग मत जाये राधा । होगा जब संताप #कविता

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कुण्डलिया :-
नीले अम्बर के तले , जपते राधा नाम ।
बारिश की हर बूँद से , बचा रहे घनश्याम ।।
बचा रहे घनश्याम , भीग मत जाये राधा ।
होगा जब संताप , कष्ट मुझको भी आधा ।।
छाता लूँ मैं तान , दूर हैं काफी टीले ।
छाये हैं अब मेघ , न दिखते अम्बर नीले ।।

नीले अम्बर के तले , दोनों अन्तर ध्यान ।
दिव्य शक्ति दोनो यहाँ, कहते सभी सुजान ।
कहते सभी सुजान, इन्हीं की महिमा न्यारी ।
सबके दुख संताप , हरे हैं नित बनवारी ।।
रिमझिम पड़ी फुहार , हो गये दोनो गीले ।
छाता ले अब अब तान , नहीं अब अम्बर नीले ।।

महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR कुण्डलिया :-
नीले अम्बर के तले , जपते राधा नाम ।
बारिश की हर बूँद से , बचा रहे घनश्याम ।।
बचा रहे घनश्याम , भीग मत जाये राधा ।
होगा जब संताप

MAHENDRA SINGH PRAKHAR

त्रिपदा छन्द वट पीपल की छाँव । मिलती अपने गाँव । एक वही है ठाँव ।। #कविता

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White त्रिपदा छन्द

वट पीपल की छाँव ।
मिलती अपने गाँव ।
एक वही है ठाँव ।।

शीतल चले बयार ।
रिमझिम पड़े फुहार ।
चलें गाँव इस बार ।।

वह चाय की दुकान ।
उनका पास मकान ।
और हम मेहमान ।।

सुनो सफल तब काज ।
मानो मेरी बात ।
जब दर्शन हो आज ।।

धानी है परिधान ।
मुख पे है मुस्कान ।
यही एक पहचान ।।


बड़ा मधुर परिवेश ।
कुछ पुल के अवशेष ।
जोगन वाला भेष ।।

काले लम्बें केश ।
नाम सुनों विमलेश ।
चाहत उसमें शेष ।।

महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR त्रिपदा छन्द


वट पीपल की छाँव ।

मिलती अपने गाँव ।

एक वही है ठाँव ।।
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