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Satish Kumar Meena
बसंत की मंद सुगंध से,नैनो में यौवन जाग गया। साजन के होंठों से सर्र-सर्र करता गीत भाग गया।। मुुंडेर के ऊपर वो गौरी!केशो की घुंघराली थी, दो मोतियों से मद की धारा,टप टप बहने वाली थी। मनमोही मौसम से यौवन केे लिए मद जाग गया। साजन के होंठों से सर्र-सर्र करता गीत भाग गया।। ©Satish Kumar Meena बसंत की मंद सुगन्ध
बसंत की मंद सुगन्ध
read moreAnuj Ray
White बसंत के मौसम भी कभी-कभी आंखों में ख़्वाब ,पनपने नहीं देते, और इस उम्र निगोड़ी को, ये खुश गवार मौसम चैन से सोने नहीं देते। ©Anuj Ray # बसंत के मौसम भी"
# बसंत के मौसम भी"
read morePraveen Jain "पल्लव"
White पल्लव की डायरी दायरे से बहार निकल लोग गुस्ताखी कर रहे है तृष्णा कभी,कम हुयी है कभी हरण सुख शांति का कर रहे है सामने वाला भी किरदार,हौसले रखता है मगर आचरणों की बानगी से बंधा है धूर्ततापूर्ण उतर आये है सियासत में लोग दंश और दहशत का जहर उगल रहे है सभ्यताओं को लांघ, निराशा चहुँ और परोस रहे है जंग जनता से कर, तख्त ताज कलंकित कर रहे है प्रवीण जैन पल्लव ©Praveen Jain "पल्लव" #good_night दायरे से बहार निकल,लोग गुस्ताखी कर रहे है #nojotohindi
#good_night दायरे से बहार निकल,लोग गुस्ताखी कर रहे है #nojotohindi
read moreAnkur
White मोहब्बत बरसा देना तू; सावन आया है! हालांकि सावन अब चला गया है, पर मोहब्बत बरकरार रहनी चाहिए। सजने को सजनी बेकरार रहनी चाहिए, दिलाें में प्रेम की फुहार रहनी चाहिए। वर्षा की बूंदों की बौछार रहनी चाहिए, कजरी लोकगीतों की मल्हार रहनी चाहिए। अम्बवा की डाली गुलज़ार रहनी चाहिए, तीज और त्योहार की बहार रहनी चाहिए। शिवालयों में भक्तों की कतार रहनी चाहिए, खुशियां जीवन का आधार रहनी चाहिए.. ©Ankur हालांकि सावन अब चला गया है पर मोहब्बत बरकरार रहनी चाहिए! #GoodNight #SaawanAaya #mohabbat #positive #poem Hinduism
हालांकि सावन अब चला गया है पर मोहब्बत बरकरार रहनी चाहिए! #GoodNight #SaawanAaya #mohabbat #positive #poem Hinduism
read moreAshish Singh
अखिलेश त्रिपाठी 'केतन'
सावन डमरू घनाक्षरी (अमात्रिक छन्द) सरसत उपवन , हरषत जन जन , बरसत जब घन , गरज गरज कर । लख कर जलधर , हरषत हलधर , हरषत जलचर , नभचर थलचर । परत चरन जब , बहनन तब तब , बरसत नवरस , मनहर घर घर। सकल जगत जय , जय जय उचरत ,जपत कहत सब , बम बम हर हर। ©अखिलेश त्रिपाठी 'केतन' #रक्षाबंधन #सावन #शिवजी
arvind bhanwra ambala. India
कंहा गया वो सावन। पेड़ की टहनी पर डाल कर झूला अकेले ही झूला, झूला हमने न डर, न खोफ़ था, बेफिक्री थी। आज डर है, मेरी पैदाईश, मेरे पालन का, क्या झूलूं, कंहा झूलू अब, कौन से सावन मे, अब, हर नज़र ललचाई, हर मन, हवस समाई, मुझे सिर्फ 'सामान' जानता है हवस मिटाने का मकान मानता है ©arvind bhanwra ambala. India कंहा गया वो सावन
कंहा गया वो सावन
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