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MAHENDRA SINGH PRAKHAR
उपमान छन्द दिनभर करता काम है , वह तो मनरेगा । रहकर भूखे पेट भी , सुनता क्या लेगा ।। मजे करे सरपंच जी , करके अब धोखा । मिलता नही गरीब को , थोड़ा भी चोखा ।। खुला सुबह से आज है , ठेका सरकारी । जी भर पीकर देख लो , भूलो तरकारी ।। निशिदिन जैसे आज भी , सोयेंगे बच्चे । बनो नही अब आप भी , कलयुग में सच्चे ।। गाँव-गाँव यह रीति है , सब करते थैय्या । मेरे तो सरपंच जी , है बड़का भैय्या ।। दिये न ढेला नोन का , बनते है दानी । देते भाषण मंच पर , बन जाते ज्ञानी ।। करना आज विचार सब , पग धरना धीरे । बिछे राह में शूल है , हम सबके तीरे ।। जाग गये तो भोर है , जीवन में तेरे । वरना राई नोन के , लेते रह फेरे ।। महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR उपमान छन्द दिनभर करता काम है , वह तो मनरेगा । रहकर भूखे पेट भी , सुनता क्या लेगा ।। मजे करे सरपंच जी , करके अब धोखा । मिलता नही गरीब को , थ
उपमान छन्द दिनभर करता काम है , वह तो मनरेगा । रहकर भूखे पेट भी , सुनता क्या लेगा ।। मजे करे सरपंच जी , करके अब धोखा । मिलता नही गरीब को , थ #कविता
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प्रदीप छन्द :-गीत नही किसी से कहना है अब , दिल की अपनी बात को । कौन समझता है अब मेरे , दिल के सुन जज्बात को ।। नही किसी से कहना है अब ... सुनकर सबकी बातें हमने , खायी दिल पे चोट है । किससे जाकर मैं अब पूछूँ , क्या मुझमें अब खोट है ।। कोई तो बतलाये मुझको , क्या ये जग की रीति है । बिन बादल क्यों देखा हमने , जीवन में बरसात को ।। नही किसी से कहना है अब.... राह दिखाओ जगदम्बें माँ , बीच भँवर में नाव है । एक तुम्हारे दर पे ही तो , पाते ही सब छाँव है ।। मुझे मातु कुछ भक्ति दिला दो , यही पास में गाँव है । तेरी सुधि में दौडा आया , क्या देखूँ दिन रात को ।। नही किसी से कहना है अब .... मैं भी अपनी माँ का प्यारा , राजा बेटा एक हूँ । जिसका हूँ मैं एक सहारा , देखो वही विवेक हूँ ।। कैसे उसका कर्ज उतारूँ , करता आज विचार हूँ । जिसके खून पसीने से मैं , किया नई शुरुआत को ।। जाकर उससे ही कहना अब..... नही किसी से कहना है अब , दिल की अपनी बात को । कौन समझता है अब मेरे , दिल के सुन जज्बात को ।। महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR प्रदीप छन्द :-गीत नही किसी से कहना है अब , दिल की अपनी बात को । कौन समझता है अब मेरे , दिल के सुन जज्बात को ।। नही किसी से कहना है अब ... स
प्रदीप छन्द :-गीत नही किसी से कहना है अब , दिल की अपनी बात को । कौन समझता है अब मेरे , दिल के सुन जज्बात को ।। नही किसी से कहना है अब ... स #कविता
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