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Bhupendra Rawat
White फटे पेंट, शर्ट मे करवा दी रफू जूतों मे लगा दिया टांका लेकिन फिर भी थे वो खुश मिजाज इंसान जाहिर नहीं किया कभी अपना दर्द और अपनी जरूरतों को पेंट, शर्ट मे रफू करने के साथ ही कर दिये थे रफू अपने दर्द और जरूरते शायद, पिता जी का प्रेम था अदृश्य पिता जी के इसी अदृश्य त्याग ने मुझे सिखाया जीना हर एक मुश्किल क्षण मे लबों पर हंसी का मुखोटा लगाना ©Bhupendra Rawat #good_night फटे पेंट, शर्ट मे करवा दी रफू जूतों मे लगा दिया टांका लेकिन फिर भी थे वो खुश मिजाज इंसान जाहिर नहीं किया कभी अपना दर्द और अपन
#good_night फटे पेंट, शर्ट मे करवा दी रफू जूतों मे लगा दिया टांका लेकिन फिर भी थे वो खुश मिजाज इंसान जाहिर नहीं किया कभी अपना दर्द और अपन
read moreJitender Kumar
#Sadmusic टूटी है मेरी नींद मगर तुमको इससे क्या बजते रहें हवाओं से दर, तुमको इससे क्या तुम मौज-मौज मिस्ल-ए-सबा घूमते फिरो कट जाएँ मेरी सो
read moregaTTubaba
White घर में ना हैं दाल आटा पड़ा हैं हर डिब्बा खाली फिर भी बंदा पिछे उसके हैं जिसकी बड़ी गाड़ी बच्चा उसका लंदन में पहनता हैं महंगे जूते बेटा तेरा क्यों छुपाता हैं ? पुराने जूतों में फटे मोजे सुधर जा वरना बाहर क्या घर में भी पड़ जाएगी गाली जेबें भरने वालों के संग रह जाएगा खाली कबतक किसी और की तस्वीरों से भरा अलबम संभालेगा ? कुछ काम तो कर ऐसा की कोई आकर तेरे संग भी सेल्फी निकालेगा ! ©gaTTubaba #love_shayari घर में ना हैं दाल आटा पड़ा हैं हर डिब्बा खाली फिर भी बंदा पिछे उसके हैं जिसकी बड़ी गाड़ी बच्चा उसका लंदन में पहनता हैं म
#love_shayari घर में ना हैं दाल आटा पड़ा हैं हर डिब्बा खाली फिर भी बंदा पिछे उसके हैं जिसकी बड़ी गाड़ी बच्चा उसका लंदन में पहनता हैं म
read moreShashi Bhushan Mishra
हम आपस में बँटे हुए, रिश्तों से हैं कटे हुए, झुके कौन पहले सोचे, मनमर्जी पर डटे हुए, कोई नहीं बेदाग यहाँ, दामन सबके फटे हुए, ख़ुद को सर्वश्रेष्ठ कहते, मन्त्र एक बस रटे हुए, दुनिया हुई दिखावे की, पीछे सब अटपटे हुए, खीरा भीतर खाने तीन, बाहर दिखते सटे हुए, ख़्वाहिश भरूँ उड़ान नई, 'गुंजन' हैं पर कटे हुए, --शशि भूषण मिश्र 'गुंजन' प्रयागराज उ॰प्र॰ ©Shashi Bhushan Mishra #'गुंजन' हैं पर कटे हुए#
#'गुंजन' हैं पर कटे हुए#
read moreNiaz (Harf)
गरीबी फटे हुए कपड़ों में लिपटी ज़िन्दगी की कहानी, हर सांस में बसी है दर्द की निशानी। पेट की आग बुझाने को दिन रात जूझते हैं, ख्वाब तो हैं मगर, टूटे आईनों में सूझते हैं। रोटी के टुकड़ों में बंटा है सारा वजूद, हर ख्वाहिश पर लगता है जैसे कोई सूद। आंखों में आंसू, दिल में हसरतें दबती हैं, हर सुबह उम्मीदें फिर से मरती हैं। नहीं हैं किताबें, ना खेलों की बात, बस मेहनत में बीतता है बचपन का हर रात। वो टूटी हुई झोपड़ी, वो सूना सा चूल्हा, दौलत के आगे सब कुछ यहाँ बेमानी सा लगता है। कभी उम्मीदें होती हैं, कभी दिल तंग होता है, गरीबी में हर इंसान का सपना अधूरा सा रहता है। इस अंधेरी रात में बस एक ख्वाब है रोशनी का, शायद कभी खत्म हो ये दर्द गरीबी का। ©Niaz (Harf) गरीबी फटे हुए कपड़ों में लिपटी ज़िन्दगी की कहानी, हर सांस में बसी है दर्द की निशानी। पेट की आग बुझाने को दिन रात जूझते हैं, ख्वाब तो हैं म
गरीबी फटे हुए कपड़ों में लिपटी ज़िन्दगी की कहानी, हर सांस में बसी है दर्द की निशानी। पेट की आग बुझाने को दिन रात जूझते हैं, ख्वाब तो हैं म
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