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Parasram Arora
White आज मैं एक ऐसे शख्स से रूबरू हुआ. जिसमे सुनने की भरपूर शक्ति थी पर वो आँख से अंधा और ज़ुबान से गूंगा था.. आज वो बेहद खुश नजर आया क योकि वो आश्वासत था कि मरने के बाद वो स्वर्ग ही जायेगा क्योंकि उससे नर्क मे जाने योग्य कर्म कभी हुए ही नहीं थे ©Parasram Arora नर्क मे जाने योग्य कर्म
नर्क मे जाने योग्य कर्म
read mores गोल्डी
.. चरण छूने योग्य हैं वो नारियाँ जिन्होंने संबंध समाप्त होने के बाद भी अपने प्रेमी के राज़ को स्वयं तक ही सीमित रखा.....!! ©s गोल्डी .. चरण छूने योग्य हैं वो नारियाँ जिन्होंने सं
.. चरण छूने योग्य हैं वो नारियाँ जिन्होंने सं
read moreSaket Ranjan Shukla
एक साधारण लेखक के तौर पर अत्याधिक प्रसन्नता और बड़े ही गर्व के साथ मैं पेश करता हूँ “काव्य Saga (बोलती कविताओं का संग्रह)" जो कि मेरे द्वारा
read moreankita
महाभारत लेखन की कथा: पुराणों के अनुसार, महर्षि वेद व्यास ने भगवान ब्रह्मा से एक योग्य लेखक की मांग की, जो उनकी महाभारत की रचना को लिपिबद्ध
read moreRohan Roy
White श्रेष्ठता आपके दिखावे से नहीं। बल्कि खुद को, इस योग्य बनाने से आती हैं। और हम इस योग्य तभी होंगे, जब दिखावे से दूर रहेंगे। क्योंकि हर चमकता हुआ पत्थर, मोती नहीं होता। और हर कीमती मोती को, आसानी से तराशा नहीं जा सकता। किंतु स्वयं को, इतना योग्य बनाया जा सकता है। जो खुद में ही, सर्वश्रेष्ठ का प्रमाण हो। ©Rohan Roy श्रेष्ठता आपके दिखावे से नहीं। बल्कि खुद को, इस योग्य बनाने से आती हैं। | #RohanRoy | #dailymotivation | #inspirdaily | #motivation_for_life
श्रेष्ठता आपके दिखावे से नहीं। बल्कि खुद को, इस योग्य बनाने से आती हैं। | #RohanRoy | #dailymotivation | #inspirdaily | #motivation_for_life
read moreMAHENDRA SINGH PRAKHAR
गीत :- तुम जननी हो इस जग की , रच लो एक नया संसार । क्यों घुट-घुट कर फिर जीती हो , क्यों सब सहती आत्याचार ।। तुम जननी हो इस जग की .... पुरुष वर्ग नारी पर भारी , क्यों होता है करो विचार । निकल पड़ो हाथो में लेकर , घर से अपने आज कटार ।। बेटे भाई पति को अपने , दान करो अपने शृंगार । तुम जननी हो इस जग की .... कितनी बहनें कितनी बेटी , होंगी कब तक भला शिकार । चुप बैठी है सत्ता सारी , विवश हुआ है पालनहार ।। मन में अपने दीप जलाओ , नहीं मोम से जग उँजियार । तुम जननी हो इस जग की ..... छोड़ों चकला बेलन सारे , बढ़कर इन पर करो प्रहार । बहुत खिलाया बना-बना कर , इन्हें पौष्टिक तुम आहार ।। बन चंडी अब पहन गले में , इनको मुंडों का तू हार । तुम जननी हो इस जग की .... बन्द करो सभी भैय्या दूज , बन्द करो राखी त्यौहार । ये इसके हकदार नही है , आज त्याग दो इनका प्यार ।। जहाँ दिखे शैतान तुम्हें ये , वहीं निकालो तुम तलवार । तुम जननी हो इस जग की .... सिर्फ बेटियाँ जन्म लिए अब , सुतों का कर दो बहिष्कार । खो बैठें है यह सब सारे , बेटा होने का अधिकार ।। मिलकर जग से दूर करो यह , फैल रहा जो आज विकार । तुम जननी हो इस जग की .... तुम जननी हो इस जग की , रच लो एक नया संसार । क्यों घुट-घुट कर फिर जीती हो , क्यों सब सहती आत्याचार ।। महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR गीत :- तुम जननी हो इस जग की , रच लो एक नया संसार । क्यों घुट-घुट कर फिर जीती हो , क्यों सब सहती आत्याचार ।। तुम जननी हो इस जग की .... पुरुष
गीत :- तुम जननी हो इस जग की , रच लो एक नया संसार । क्यों घुट-घुट कर फिर जीती हो , क्यों सब सहती आत्याचार ।। तुम जननी हो इस जग की .... पुरुष
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