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Parasram Arora
White प्रेम की संदेह से गहरी शत्रुता है जहा प्रेम होगा वहा संदेह का कोई अस्तित्व नहीं हो सकता क्योंकि एक प्रेमिल ह्रदय मे प्रेम और संदेह. दोनों एक साथ नहीं रह सकतेप्रेम और मजे की बात ये रही कि आज तक प्रेम और संदेह मे आपसमे वार्तालाप कभी नही हुआ ©Parasram Arora प्रेम और संदेह
प्रेम और संदेह
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"टिम्मी कछुआ और बोलने वाला कंकड़" - एक आकर्षक यात्रा पर निकलें, एक हरित जंगल में जहां एक युवा कछुआ नामक टिमी अपने अद्भुत राज को खोजता है। अप
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"संदेह की परछाईं: बैंक डकैती का साहसी अंत" - शहर की एक बड़ी बैंक डकैती की साजिश का पर्दाफाश करने के लिए रिया, एक तकनीकी विशेषज्ञ, अकेले ही ए
read moreVinod Mishra
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गीता के अनुसार मनुष्य के दुःख का कारण क्या है? यदि भगवद गीता को देखें तो हम पाते हैं कि संसार के दुखों का प्रमुख कारण आत्मा के स्वरूप के विषय में हमारा अज्ञान है। हम स्वजनों की मृत्यु की आशंका से ही भयभीत हो जाते हैं। हमने जो भी अर्जित किया या पाया है, उसकी हानि की शंका भी हमारी चेतना को कभी पूर्णतया स्वछंद नहीं होने देती। भगवद गीता के मुताबिक, मनुष्य के दुखों का प्रमुख कारण आत्मा के स्वरूप के बारे में अज्ञानता है. इसके अलावा, मनुष्य के दुखों के कुछ और कारण ये हैं: हमने जो भी अर्जित किया या पाया है, उसकी हानि की शंका हमारी चेतना को कभी पूर्णतया स्वच्छंद नहीं होने देती. मनुष्य में श्रेष्ठ गुणों का अभाव होता है. मनुष्य का शत्रुतापूर्ण और अमानवीय स्वभाव दुनिया को उदास और निराशाजनक बना देता है. अधिकांश मनुष्य इस बात का परिप्रेक्ष्य खो चुके हैं कि यह जीवन क्या है. उनकी मनोवैज्ञानिक प्रक्रिया अस्तित्वगत प्रक्रिया से कहीं अधिक बड़ी हो गई है. भगवद गीता के मुताबिक, मनुष्य को अपने विवेक, परिश्रम, बुद्धि और उद्यम पर संदेह नहीं करना चाहिए. उसे सदैव सत्य और स्वधर्म के पक्ष में रहना चाहिए. ©person गीता के अनुसार मनुष्य के दुःख का कारण क्या है? यदि भगवद गीता को देखें तो हम पाते हैं कि संसार के दुखों का प्रमुख कारण आत्मा के स्वरूप के वि
गीता के अनुसार मनुष्य के दुःख का कारण क्या है? यदि भगवद गीता को देखें तो हम पाते हैं कि संसार के दुखों का प्रमुख कारण आत्मा के स्वरूप के वि
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