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Karan Kanaujiya
Satish Kumar Meena
बचपन अभी गया नहीं, खेल खिलौने बाकी है। इन मासूमों के हाथों में,, नादानी की राखी है।। जग का इनको पता नहीं, इंसान फरिश्ता धरती का। कुछ ऐसे भी होते है लाड़ो,, जिनका काम है गलती का।। ऐसे सख्शों से बचना है, जिनकी आंखों में शर्म नहीं। अपना पराया कोई नहीं, नियत खोटी और मर्म नहीं।। सच्चे दिल के कम ही मिलेंगे, पहचानना मुश्किल होगा। हे लाड़ो! अपनी रक्षा का,, स्वयं भार उठाना तुझे होगा। कानून की आंखे बन्द है, बस! पट्टी हटाना बाकी है। इन मासूमों के हाथों में,, नादानी की राखी है।। ©Satish Kumar Meena @नादानी की राखी
@नादानी की राखी
read moreN S Yadav GoldMine
White {Bolo Ji Radhey Radhey} शरीर की सुंदरता, कुल, शील, विधा, और यत्न पूर्वक की गई, सेवा, ये कोई भी किसी काम में नहीं आते, पर आपके द्वारा पूर्व में, संचित कर्म समय आने पर, आपके प्राबर्द्ध की वर्षा की बरसात करके नाना प्रकार के फल जरूर देते हैं, सब कुछ सोच समझ कर करना चाहिए।। (यह समझने में थोड़ा परेशानी हो सकती हैं)।। जय श्री राधेकृष्ण जी। ©N S Yadav GoldMine #good_night {Bolo Ji Radhey Radhey} शरीर की सुंदरता, कुल, शील, विधा, और यत्न पूर्वक की गई, सेवा, ये कोई भी किसी काम में नहीं आते, पर आपके
#good_night {Bolo Ji Radhey Radhey} शरीर की सुंदरता, कुल, शील, विधा, और यत्न पूर्वक की गई, सेवा, ये कोई भी किसी काम में नहीं आते, पर आपके
read moreMAHENDRA SINGH PRAKHAR
गीत :- तुम जननी हो इस जग की , रच लो एक नया संसार । क्यों घुट-घुट कर फिर जीती हो , क्यों सब सहती आत्याचार ।। तुम जननी हो इस जग की .... पुरुष वर्ग नारी पर भारी , क्यों होता है करो विचार । निकल पड़ो हाथो में लेकर , घर से अपने आज कटार ।। बेटे भाई पति को अपने , दान करो अपने शृंगार । तुम जननी हो इस जग की .... कितनी बहनें कितनी बेटी , होंगी कब तक भला शिकार । चुप बैठी है सत्ता सारी , विवश हुआ है पालनहार ।। मन में अपने दीप जलाओ , नहीं मोम से जग उँजियार । तुम जननी हो इस जग की ..... छोड़ों चकला बेलन सारे , बढ़कर इन पर करो प्रहार । बहुत खिलाया बना-बना कर , इन्हें पौष्टिक तुम आहार ।। बन चंडी अब पहन गले में , इनको मुंडों का तू हार । तुम जननी हो इस जग की .... बन्द करो सभी भैय्या दूज , बन्द करो राखी त्यौहार । ये इसके हकदार नही है , आज त्याग दो इनका प्यार ।। जहाँ दिखे शैतान तुम्हें ये , वहीं निकालो तुम तलवार । तुम जननी हो इस जग की .... सिर्फ बेटियाँ जन्म लिए अब , सुतों का कर दो बहिष्कार । खो बैठें है यह सब सारे , बेटा होने का अधिकार ।। मिलकर जग से दूर करो यह , फैल रहा जो आज विकार । तुम जननी हो इस जग की .... तुम जननी हो इस जग की , रच लो एक नया संसार । क्यों घुट-घुट कर फिर जीती हो , क्यों सब सहती आत्याचार ।। महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR गीत :- तुम जननी हो इस जग की , रच लो एक नया संसार । क्यों घुट-घुट कर फिर जीती हो , क्यों सब सहती आत्याचार ।। तुम जननी हो इस जग की .... पुरुष
गीत :- तुम जननी हो इस जग की , रच लो एक नया संसार । क्यों घुट-घुट कर फिर जीती हो , क्यों सब सहती आत्याचार ।। तुम जननी हो इस जग की .... पुरुष
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