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Sumit Kumar
White "नदियाँ" स्त्रीलिंग क्यों? "सागर" पुल्लिंग क्यों? ये समझ गए तो स्त्री और पुरुष के मन को समझ जाओगे.. ©Sumit Kumar तू धार है नदियाँ की मैं तेरा किनारा हूँ..
तू धार है नदियाँ की मैं तेरा किनारा हूँ.. #Life
read morepkiran@1111
White Mein aur wo.....❤️ मुझमें और उसमे बस इतना फर्क है कि मैं सब कह देती हु और वो कुछ नही कहता है, गुस्सा आने पर मैं चिल्ला देती हु और वो बस शांत हो जाता है... मैं किसी की नहीं सुनती और वो सबकी सुन लेता है मैं जिद्दी वो समझदार बड़ा.….. मैं मोहब्बत जाता देती हु और वो मेरी बोली बातो का मान रख लेता है और शायद इसलिए भी हम जुड़े है एक दूसरे से वो मेरे हर बात ध्यान से सुनता है और मै उसकी खामोशी पढ़ लेती हू....... ©kiran pal #मैं और वो❤️#love_shayari
amar gupta
White मैं, वो और समाज... समाज - कितने मे बिका भाई , तेरी तो सरकारी नौकरी है ... मैं - बस उसकी एक मासूम भरी नजर , नजरिये और उसके कुछ विचारो मे.. समाज - पागल है क्या ! ऐसा भी क्या बोला उसने... " ना रंग देखा ,ना मेरा रूप , ना उमर का किया तकजा... इन्सान अच्छे हो बोल कर , अनमोल कर दिया उसने मुझको " ©amar gupta #मैं , वो और समाज...
indu mitra
वो नही समझ पायेंगे कभी भी मेरी मुस्कराहट के पीछे छुपे दर्द को हर रोज मेरी आंखों से छलके आंसुओं को भी क्योंकि वो बेकुसूर है मेरा दर्द मेरा है उनका तो नहीं ये आंसू भी मेरे अपने हैं उनके दिए तो नहीं अगर मेरी जिंदगी में मुश्किलें है तो वो क्यों सहते उन मुश्किलों को सच उन्हें तो हक है ना अपनी जिंदगी बेहतरीन बनाने का। ©indu mitra मैं और वो शायरी लव
मैं और वो शायरी लव
read moreJashvant
White मैं जिस्म ओ जाँ के तमाम रिश्तों से चाहता हूँ नहीं समझता कि ऐसा क्यूँ है न ख़ाल-ओ-ख़द का जमाल उस में न ज़िंदगी का कमाल कोई जो कोई उस में हुनर भी होगा तो मुझ को इस की ख़बर नहीं है न जाने फिर क्यूँ! मैं वक़्त के दाएरों से बाहर किसी तसव्वुर में उड़ रहा हूँ ख़याल में ख़्वाब ओ ख़ल्वत-ए-ज़ात ओ जल्वत-ए-बज़्म में शब ओ रोज़ मिरा लहू अपनी गर्दिशों में उसी की तस्बीह पढ़ रहा है जो मेरी चाहत से बे-ख़बर है कभी कभी वो नज़र चुरा कर क़रीब से मेरे यूँ भी गुज़रा कि जैसे वो बा-ख़बर है मेरी मोहब्बतों से दिल ओ नज़र की हिकायतें सुन रखी हैं उस ने मिरी ही सूरत वो वक़्त के दाएरों से बाहर किसी तसव्वुर में उड़ रहा है ख़याल में ख़्वाब ओ ख़ल्वत-ए-ज़ात ओ जल्वत-ए-बज़्म में शब ओ रोज़ वो जिस्म ओ जाँ के तमाम रिश्तों से चाहता है मगर नहीं जानता ये वो भी कि ऐसा क्यूँ है मैं सोचता हूँ वो सोचता है कभी मिले हम तो आईनों के तमाम बातिन अयाँ करेंगे हक़ीक़तों का सफ़र करेंगे ©Jashvant एक नज़्म और
एक नज़्म और #Life
read moreDr. Parwarish
White तुम वक्त लिखना... मैं तकदीर लिख दूंगा....!! मुहब्बत से बड़ा कोई जादू नहीं है जाना, तुम सांस लेना, हवा की तस्वीर लिख दूंगा।। ©Dr. Parwarish मैं और तुम
मैं और तुम #लव
read morepandey_prakash
अश्क़ बह गए , वक्त बीत गया, उम्र ढल गई , इश्क़ रह गया .. ©pandey_prakash वक्त इश्क़ और मैं...
वक्त इश्क़ और मैं... #लव
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