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Khushi_ bhaliyan31
Shivam mishra Ashish kumar Official RAVI Kumar Sethi Ji SURAJ SHARMA #Love
read moreVINOD
motivational Jyotilata Parida Prince Singh pawapuri Author Shivam kumar Mishra (Shivanjal) Nirbhay Kumar Anushka #मोटिवेशनल
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motivational Aman Singh Pramit patel Deep_26Nt Author Shivam kumar Mishra (Shivanjal) Khushi_ bhaliyan31 #मोटिवेशनल
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motivational Subhashree Sahu Hanumat Kewat Author Shivam kumar Mishra (Shivanjal) Aman Singh angel rai #मोटिवेशनल
read moreBALJEET SINGH MAHLA
BALJIT MAHLA ©BALJEET SINGH MAHLA prabhu murli vajaa Author Shivam kumar Mishra Bhawana Mehra Neetu Sharma Gurtej Singh RUHI. PAYAL SINGH
prabhu murli vajaa Author Shivam kumar Mishra Bhawana Mehra Neetu Sharma Gurtej Singh RUHI. PAYAL SINGH #Bhakti
read moremahi singh
White क्या हम सच में आज़ाद है???? आज़ादी का असली मतलब क्या है???? क्या उन चीखों के पीछे हमारी आज़ादी है??? या उस चुप्पी या डर के पीछे हमारी आज़ादी है?? क्या उन तिरंगे में लिपटे वीर जवानों के परिवार के आंखों से निकलते अंशु में हमारी आज़ादी है?? या बिन मौत मारे जाने वालो मासूमों में हमारी आज़ादी है???? या उन यूंगस्टर्स के सपने के टूटने में हमारी आज़ादी है?? एक दूसरे का खून बहाने में हमारी आज़ादी है???? अगर इतने के बाद भी आपको लगता है आप आजाद हो तो आपको आज़ादी मुबारक।।।।। ©mahi singh #happy_independence_day Pyare ji "सीमा"अमन सिंह Prashant Shakun "कातिब" Kumar Shaurya The Shivam Pandey shraddha singh
#happy_independence_day Pyare ji "सीमा"अमन सिंह Prashant Shakun "कातिब" Kumar Shaurya The Shivam Pandey shraddha singh #wishes
read morePriñçe Ràjput
White ये समाज और उनके कुछ लोगों के बड़े बड़े चोंचले, इन्हें खुद चैन की नींद नसीब नहीं, ये लोगों को संभालने को बोलें उसके घोंसले। जिंदगी हमारी खुद के फैसले की मोहताज है, अब इसे खुद के दम पे जीना है या उनके, ये तू खुद अंदर ही अंदर सोच ले. ©Priñçe Ràjput #Lion Gautam Kumar Anudeep Author Shivam kumar Mishra Praveen Storyteller Reeda
#Lion Gautam Kumar Anudeep Author Shivam kumar Mishra Praveen Storyteller Reeda #मोटिवेशनल
read morerohit singh
इस शहर में आशिक कई घूम रहे हैं! माथे का वादा कर होठ चूम रहे हैं! ©rohit singh #tereliye। Vikash Kumar Shashikant Singh Khushi Anand Kumar Rohit singh
tereliye। Vikash Kumar Shashikant Singh Khushi Anand Kumar Rohit singh #Life
read morePriya Kumari Niharika
White बांट दो सबको, संतुलन बना रहेगा पर संतुलन तो बराबरी हुई ना? जिसमें समन्वय सहयोग और समानता हो , यदि सामानता हुई तो ज्ञात होगा कभी? प्रजा कौन है,और राजा कौन? फर्क और हैसियत के बीच की पतली सी रेखा सबको ज्ञात होनी चाहिए कि तिलकधारी कभी झुकते नहीं, और क्षत्रिय भी कभी रुकते नहीं, व्यापारियों के बढ़ते प्यास ने बनाया जनता को एनीमिया का मरीज किसने निर्मित कि ये खाई, ऊंचे हैं स्वर्ण और शूद्र है नीच? स्वयं को उच्च गिनाने में व्यस्त है संसार, सुखन मोची ने कल ही बताया, धोबी से बड़ा है सर चमार दबाने और दबने से बचने के लिए, की जाती है चढ़ाई मिट्टी के टीलों पर, जिससे फिसलते मिट्टी के बड़े टुकड़े छोटे टुकड़ों को कुचलकर बढ़ना चाहते हैं आगे अभाव, असुरक्षा और अमानवीयता से बिलखते तड़पते जिस्मो के और कितने टुकड़े नोचें जाएंगे? जल जंगल जमीन से जुड़े हाशिये पर खड़े असभ्य लोग कब तक कहलाएंगे माओवादी? देश को स्वच्छ रखने वाले कब तक बने रहेंगे देश की गंदगी? कब मिलेगा इन्हें इनका हक और जीने के लिए जिंदगी? दलित आदिवासी कृषक,मजदूर और बेटियां व्यथित हैं,सभ्य समाज का ताना-बाना बुनने वाले लोगों की धारणा और व्यवहार से आतंकित है ये उसे दहशत से जिसकी आग बरसों पहले लगाई गई आधुनिक उदार विचार वाले सभ्य समाज.....के विचार तब तर्कसंगत नहीं लगते, जब अंतरजातीय विवाह के जिक्र मात्र से शुरू होता है आंतरिक द्वंद्व और बाहरी विवाद, तब यह विचार निष्पक्ष नहीं लगता जब अन्नदाता की भुखमरी उसकी मृत्यु का कारण बनती है, तब यह विचार प्रासंगिक नहीं लगते, जब गरीब मजदूर डेढ़ रुपए मजदूरी बढ़ाने के लिए देता है धरना और रोकना पड़ता है विरोध, मात्र 25 रुपए मासिक वृद्धि पर तब एक प्रश्न विचलित करता है, कि आखिर क्या मिलता होगा डेढ़ रुपए में तब यह विचार और चुभने लगता है,जब देश की प्रगति के नाम पर विस्थापित किए जाते हैं आदिवासी अपने ही घर से यह सोच तब हमें तड़पाती है जब स्त्रियों की राय न पूछी जाती है न समझी पद की प्रतिष्ठा के सिवाय सामान्य स्तर पर मानवीय सम्मान की दृष्टि से उसके अस्तित्व को आज भी प्राथमिकता नहीं मिली क्या इन श्रेणियों में विभाजित जन.... जन गण मन का जन नहीं? क्या सम्मान केवल उच्च वर्ग के लिए आरक्षित है? या है उसे पर इनका भी हक यह सबरी केवट का देश है तो गाली से इनका स्वागत क्यों? ये एकलव्य या कर्ण का देश है तो बोली से इनको आहत क्यों? जब जब ईश्वर भी अवतरित हुए, तो उच्च घराने चुन लिये अभिप्राय भला क्या समझूं मैं, भगवन भी के इनके सगे नहीं याचना नहीं तू रण करना, क्यों आखिर अब तक जगे नहीं अमानवता फैली हो, और तुम संतुलित रहे तो समझ लेना तो आतताई के पक्ष में हो ©Priya Kumari Niharika #sad_shayari Anudeep Mukesh Poonia Author Shivam kumar Mishra Jiwan Kohli Rohit singh
#sad_shayari Anudeep Mukesh Poonia Author Shivam kumar Mishra Jiwan Kohli Rohit singh #Poetry
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