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Dinesh Sharma Jind Haryana
White पति : शाम को घर पर फोन करता है खाने में क्या है पत्नी : जहर पति : तुम खाकर सो जाना मैं घर देरी से आऊंगा ©Dinesh Sharma Jind Haryana #देरी
MAHENDRA SINGH PRAKHAR
गीत :- धरती माँ के सीने पर अब , नहीं लगाओ फिर से घाव । नही लौट वो फिर आयेंगे , करने धरती पर बदलाव ।। धरती माँ के सीने पर अब... यहीं तो जन्में वीर अनेक, आल्हा उदल और मलखान । भूल गये हो तुम सब शायद, वीर शिवा जी औ चौहान ।। धर्म और धरती माँ पर जो, दिए प्राण का है बलिदान । देख रहा मैं क्रूर काल को , जिसका होता बुरा प्रभाव ।। धरती माँ के सीने पर अब.... वही डगर फिर से चुन लो सब , जो दिखलाये थे रसखान । जिसको जी कर मीरा जी ने , पाया जग में था सम्मान ।। इसी धरा पर राम नाम का , हनुमत करते थे गुणगान । नहीं हुई है अब भी देरी , जला हृदय में प्रेम अलाव ।। धरती माँ के सीने पर अब.... निर्मल पावन गंगा कहती , यह है परशुराम का धाम । रूष्ट नहीं कर देना उनको , झुककर कर लो उन्हें प्रणाम ।। अधिक बिलंब उचित क्यों करना , बढ़कर लो अब तुम संज्ञान । ईर्ष्या द्वेष मिटाओ जग से , पनपे हृदय प्रेम के भाव ।। धरती माँ के सीने पर अब..... नीर नदी का सूख रहा है , आज जमा ले अपना पाँव । गली-गली कन्या है पीडित, भूखे ग्वाले घूमें गाँव ।। झुलस रहें हैं राही पथ के , बता मिले कब शीतल छाँव । धीरे-धीरे प्रकृति सौन्दर्य , में दिखता क्यों हमें अभाव ।। धरती माँ के सीने पर अब.... धरती माँ के सीने पर अब , नहीं लगाओ फिर से घाव । नही लौट वो फिर आयेंगे , करने धरती पर बदलाव ।। महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR गीत :- धरती माँ के सीने पर अब , नहीं लगाओ फिर से घाव । नही लौट वो फिर आयेंगे , करने धरती पर बदलाव ।। धरती माँ के सीने पर अब... यहीं तो जन्
गीत :- धरती माँ के सीने पर अब , नहीं लगाओ फिर से घाव । नही लौट वो फिर आयेंगे , करने धरती पर बदलाव ।। धरती माँ के सीने पर अब... यहीं तो जन् #कविता
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मुक्तक :- करके सुख का त्याग , बना देखो वह सैनिक । थाम तिरंगा हाथ , नहीं वह होता पैनिक । इस जीवन में प्यार , नही होगा दोबारा । लेता है यह कौल , देश का सैनिक दैनिक ।। ये भी हैं इंसान , हृदय इनके भी होते । यह मत सोचों आप , चैन से सैनिक सोते । कुछ मत पूछो याद ,उन्हें जब घर की आती- किसी किनारे बैठ , सिसक कर वह भी रोते ।। लिए तिरंगा हाथ , बढ़े सैनिक जब आगे । बढ़े देश की शान , खौफ़ से दुश्मन भागे । ऐसे वीर जवान , देश में मेरे अपने- सुनकर दुश्मन आज, रात भर अपना जागे ।। मुझ सैनिक के पास , बहन की राखी आयी । देख उसे अब आज , याद वैशाखी आयी । बहनों का ही प्रेम , जगत में सबसे ऊपर - यही दिलाने याद , घरों की पाती आयी ।। अब भी है उम्मीद , बहन राखी का तेरी । आ जाये जब याद , भेज दे राखी मेरी । तेरा भैय्या आज , दूर सरहद पर बैठा- क्या है तू मजबूर , हुई जो इतनी देरी ।। जिनको दिया उधार , कहीं न नजर वो आते । जग में ऐसे लोग , तोड़ देते हैं नाते । मानो मेरी बात , दूर अब रहना इनसे- ये है काले नाग , समय पाकर डस जाते ।। महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR मुक्तक :- करके सुख का त्याग , बना देखो वह सैनिक । थाम तिरंगा हाथ , नहीं वह होता पैनिक । इस जीवन में प्यार , नही होगा दोबारा । लेता है यह कौ
मुक्तक :- करके सुख का त्याग , बना देखो वह सैनिक । थाम तिरंगा हाथ , नहीं वह होता पैनिक । इस जीवन में प्यार , नही होगा दोबारा । लेता है यह कौ #कविता
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White रूपमाला - मदन छन्द 2122 2122 2122 21 देखने की लालसा से, जा रहा हूँ धाम । जानता रहते वहीं हैं , आज अपने राम ।। दिव्य दर्शन भी मिलेंगे , जो करूंगा ध्यान । हैं वही आराध्य मेरे, मानता भगवान ।। रूप उसने लाख बदले, पर वही पहचान । कृष्ण राधा राम सीता , हम नहीं अंजान ।। रूप कल्की का धरो फिर, और लो अवतार । आप ही हो इस जगत के , आज पालनहार ।। अब नही देरी करो प्रभु , बढ़ गये शैतान । आज करके ध्यान तेरा , माँगते वरदान ।। रोक लो नर जाति को अब , कर रहा संहार । हैं तुम्हारे भक्त सारे , आज इस संसार ।। देव दानव और कण-कण , में तुम्हारा वास । फिर भटकते आज क्यों है , आपके ही दास ।। राह उनको भी दिखाओ , भूलते जो राह । नित्य सेवा साधना में , जो रखे हैं चाह ।। महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR रूपमाला - मदन छन्द 2122 2122 2122 21 देखने की लालसा से, जा रहा हूँ धाम । जानता रहते वहीं हैं , आज अपने राम ।। दिव्य दर्शन भी मिलें
रूपमाला - मदन छन्द 2122 2122 2122 21 देखने की लालसा से, जा रहा हूँ धाम । जानता रहते वहीं हैं , आज अपने राम ।। दिव्य दर्शन भी मिलें #कविता
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