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Mohan raj
गुरुप्रसादेन हरिभक्तिः लभते, गुरुं विना हरिभक्तिः नास्ति। गुरु की कृपा से हरि की भक्ति प्राप्त होती है, गुरु के बिना हरि की भक्ति नहीं होती। By the grace of the Guru one attains devotion to Hari, without the Guru there is no devotion to Hari. धन्यवाद हर हर महादेव ©Mohan raj #Life Lessons By the grace of the Guru one attains devotion to Hari, without the Guru there is no devotion to Hari.
Life Lessons By the grace of the Guru one attains devotion to Hari, without the Guru there is no devotion to Hari.
read moreMohan raj
यदा मनः निरन्तरं हरेः नाम जपं कर्तुं आरभते तदा हरिः प्राप्ता इव दृश्यते। जब मन निरंतर हरि नाम जपने लगता है तो ऐसा लगता है कि हरि की प्राप्ति हो गई है। When the mind begins to chant the name of Hari continuously, it seems that Hari has been attained. धन्यवाद हर हर महादेव ©Mohan raj #लाइफ लेसंस When the mind begins to chant the name of Hari continuously, it seems that Hari has been attained.
#लाइफ लेसंस When the mind begins to chant the name of Hari continuously, it seems that Hari has been attained.
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हरि नाम है जग में सुंदर हरि नाम है सबसे सुंदर हरि नाम है सबसे पहले हरि नाम विश्वे सुन्दरतम नाम, हरि नाम परम सुन्दर, हरि नाम प्रथम। Hari name is beautiful in the world, Hari name is the most beautiful, Hari name is first Dhanywaad Har Har Mahadev ©Mohan raj #Life Lessons Hari name is beautiful in the world, Hari name is the most beautiful, Hari name is first
Life Lessons Hari name is beautiful in the world, Hari name is the most beautiful, Hari name is first
read moreनिर्भय चौहान
महादेव के गले में अब तक अटका है विष। जिस पर दूध डाल हम दे रहे धन्यवाद। किंतु जान तो अब भी संसय में। संहारकर्ता जब जीवन देता है तो वो देता है अपनी प्राण ऊर्जा का एक अंश तुम्हें। फिर तुम भी हो जाते हो संहारकर्ता। विष्णु भी लेट रहे है उसी विष स्रोत पे, लक्ष्मी के साथ। जिस पर विषधर की तरह तुम बैठना चाहते हो। प्रकृति के पांच फन पालनहार के सर पे हमेशा तने रहते हैं। मतलब आसान नहीं है ये भी। विषधर पे बैठा जा सकता है सिर्फ लक्ष्मी के साथ ही। इच्छाएं शेषनाग ही तो है। सिर्फ ब्रह्मा के हाथो में है वेद। कमंडल में है संगम का जल।। कमल दल की सौम्यता है, अखंडित संपन्नता का प्रतीक है। सृजन का ज्ञान शायद सुगमता देता है ।। कला और कलाएं बदलने का ज्ञान सरस्वती के साथ ही आती हैं। किंतु ब्रह्मा को नहीं देखा कभी युवा, तस्वीरों या पुराणों या धारावाहिकों में। दाढ़ी सफेद हो जाए तो क्या ही सुख भोग का। बुढ़ापे में उत्कृष्टता देता है दंभ, कट जाता है कम से कम एक सर, और बचे हुए पे आ जाता है श्राप। वंदना पूजा या स्वीकार्यता से निरोध का। श्रेष्ठि वर्ग का विष अलग है। जो कनिष्ठों पे अम्लवृष्टि सी आ पड़ती है। दहन और गलन की पीड़ा के बीच बस निर्जीव जिस्म में है शांति। जिसे खा रहे कब्र में विज्जू और कीड़े। या जल कर के गंगा के साथ खेत, खेत से फसल, फसल से रोटी में आ मिला है मानव मांस के लोथड़े। जिसे खा के जीवित है, सृजनहार,पालनहार और संहारकर्ता भी। यानी विषहीन है बस जिस्म। ये आत्म अमर सो सकता है,वैकुंठ की कामना में, किंतु कर्मो का विष भी अटका है इसके गले में, ज्ञान से प्रकाशित पोषित करता सृष्टि को। और अनवरत लोटता जग माया के विषधर पर जहां लक्ष्मी बैठी है पांवों में। और सर पे शेषनाग का फन है। अब इन सबके बीच बताओ, कहां है जीवन ,कहां पे मन है।। निर्भय चौहान ©निर्भय चौहान Hinduism प्रेरणादायी कविता हिंदी कविताएं हिंदी कविता Shiv Narayan Saxena Mukesh Poonia Madhusudan Shrivastava Rakhee ki kalam se Anshu
Hinduism प्रेरणादायी कविता हिंदी कविताएं हिंदी कविता Shiv Narayan Saxena Mukesh Poonia Madhusudan Shrivastava Rakhee ki kalam se Anshu
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