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Devanand Jadhav
White कधी कधी माणसाला... इच्छा नसताना हसावं लागतं! "कसे आहात?" विचारलं तर, "मजेत आहे!" असंच सांगावं लागतं ©Devanand Jadhav #Thoughts #thought #कविता छोटी कविता मराठी
Sushant Aswar
मराठी कविता पाऊस छोटी कविता मराठी कापणी कविता कविता मराठी मैत्री Entrance examination
read moreप्रणाली कावळे
White कोण रक्षितो गर्भामधे...? कोण पुरवितो तेथे वारा...? कोण निर्मितो बाळासाठी जन्माआधिच अमृत धारा...? कोण छेडीतो श्वासांमधे...? प्रभूस्मरणाच्या मंजूळ तारा, कोण निर्मितो नाद अनाहत.....? ज्याने उजळे मनगाभारा. उजळविण्याला मनगाभारा कोण चेतवी अंतरज्योती...? करण्या निशिदिन स्मरण प्रभूचे कोण देतसे अखंड स्फुर्ती...? कोण घडवितो वटवृक्षाला..? कणा येवढ्या बिजामधूनी, कोण देतसे फळांस गोडी..? जिवन सोशून मातीमधूनी. कोकिळ कंठी कोणी दिधले..? गंधर्वांचे अपूर्व देणे, वसंत येता आम्रतरूवर कोण फुलवितो त्याचे गाणे..? कुणी रेखिले मोरपिसावरी..? रंग रेशमी इंन्द्रधनुचे, मेघ बरसता गर्द वनामधे कोण नाचतो त्याच्या संगे..? निद्रेतूनही नयनांमधे स्वप्न होऊनी कोण जागतो..? सुखदु:खामधे हृदयी राहून कोण अखंडीत सोबत करतो..? कोण..? कसे..? या प्रश्नापाठी आयुष्याची संध्या होते, शरण जाता श्री सदगुरूशी मग कर्त्याची ओळख होते. "कर्ता एक रघुनंदन" हे शरणांगत होताच उमगते, प्रश्न मनीचे विरून जाती एक तत्व हे मनी प्रगटते. गुरूकृपेच्या ऋणातुनी या कोण कसे होईल उतराई, हात मस्तकी सदैव वत्सल जैसा ठेवत असते आई... ©pranali kawale #sad_shayari छोटी कविता मराठी
#sad_shayari छोटी कविता मराठी
read moreप्रणाली कावळे
good morning ©pranali kawale छोटी कविता मराठी मराठी कविता
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read moreMr.Ravi Rajdev
#poetryunplugged nojoto❤ छोटी कविता मराठी मराठी कविता संग्रह मराठी कविता प्रेम मराठी कविता कविता मराठी मैत्री
read moreAnand Kumar Ashodhiya
पर्यावरण - नई हरयाणवी रागनी तूं कितना ए जतन लगाले बन्दे वो पल में प्रलय करता है तूं भाज भाज कै थक लेगा, वो एक पग में योजन भरता है तनै पेड़ अर पौधे काट काट कै, जंगल नदी उजाड़ दिए पर्वत घाटी काट काट कै, खनिज और पत्थर काढ़ लिए उनै बाढ़ के पंजे गाड़ दिए, इब क्यूं ज्यान बचाए फिरता है तनै सारी ए धरती बंजर करदी, मार कै खाद दवाई खान पान सब जहरी कर दिया, जहरी ए हवा बणाई तनै अपनी शामत आप बुलाई, वो तौल तौल कै धरता है धरती थोथी करकै नै तनै, सारा पाणी खींच लिया पीवण नै भी छोड़या ना तनै, आंगण बाड़ी सींच लिया उनै दया का पंजा भींच लिया इब, बूंद बूंद नै मरता है कई कई मंजिल भवन बणा लिए, कितै बारा कितै ठारा पहाड़ दरकगे नदी उफणगी, तेरा कुछ ना चाल्या चारा कदे सुनामी कदे हल्लण आरहया, फिर कुदरत से क्यूं डरता है गुरु पालेराम नै पकड़ आंगली कथना रचना सिखा दिया के आच्छा के बुरा जगत में शीशे की ज्यूं दिखा दिया उनै कड़वा मीठा चखा दिया वो जीवन के दुख हरता है कॉपीराइट©️आनन्द कुमार आशोधिया 2024-25 ©Anand Kumar Ashodhiya #पर्यावरण नई हरयाणवी रागनी पर्यावरण कविता कोश कविताएं प्रेरणादायी कविता हिंदी कविता हिंदी कविता
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