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Stories related to खेलना पब्जी गेम

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Rinkesh

भाई किस किस ने इस फोन में सांप वाला गेम खेला है। comedy video #Comedy

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shamawritesBebaak_शमीम अख्तर

#Sad_shayri आजकल मुझको आती हिचकियाँ हर्गिज़ नहीं,ऐसा लगता है,अब उसको मेरी जरूरत नहीं//१ वादे वफा तो बहुत किए थे उसने आज बातो बातो मे कह दिय #Live #writersofindia #poetsofindia #shamawritesBebaak

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नाकिश पटेल

बन उगी इसी प्रकार यह गेम है #विचार

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Manya Parmar

दिमाग का शांति का विवेक का भी इस्तेमाल किया करो आदमी। Dear parents. बेटियो को अक्षर ज्ञान ही ज़रूरी है तो आपको हमसे ज्यादा ज्ञान है आप ही क #Shayari

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Manya Parmar

अकेले हर अधिकार रखना, खुद को महान औरों को कुछ नही समझना, बुध्दि सबसे ज्यादा है तो औरत को दबाना, मुसीबत आने पर बुद्धि शांति धैर्य को तिलांजलि #olympics

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Manya Parmar

साथ दो बेटियों/बहनों का वें गलती करती है तो भी क्योंकि गलतियां इंसान से होती हैं, गलतियों के डर से उन्हें बांध कर न रखें बल्कि अपनी काबीलियत #Shayari

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MAHENDRA SINGH PRAKHAR

गीत :- उलझ रहा है निशिदिन मानव , जिनके नित्य विचारो से । भाषण देते बन अभिनेता , सत्ता के गलियारों से ।। उलझ रहा है निशिदिन मानव .... छोड़ सभ #कविता

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White गीत :-
उलझ रहा है निशिदिन मानव , जिनके नित्य विचारो से ।
भाषण देते बन अभिनेता , सत्ता के गलियारों से ।।
उलझ रहा है निशिदिन मानव ....

छोड़ सभी वह रिश्ते-नाते, बैठे ऊँचे आसन पे ।
पहचाने इंसान नही जो , भाषण देते जीवन पे ।।
जिसे खेलना पाप कहा था , मातु-पिता औ गुरुवर ने ।
उसी खेल का मिले प्रलोभन , सुन लो अब सरकारों से ।।
उलझ रहा है निशिदिन मानव .....

मातु-पिता बिन कैसा जीवन , हमने पढ़ा किताबों में ।
ये बतलाते आकर हमको , दौलत नही हिसाबों में ।।
इनके जैसा कभी न बनना , ये तो हैं खुद्दारों में ।
दया धर्म की टाँगें टूटी , इन सबके व्यापारो से ।।
उलझ रहा है निशिदिन मानव....

नंगा नाच भरे आँगन में, इनके देख घरानों में ।
बेटी बेटा झूम रहे हैं , जाने किस-किस बाहों में ।।
अपने घर को आप सँभाले, आया आज विचारों में ।
झाँक नही तू इनके घर को , पतन हुए संस्कारो से ।।
उलझ रहा है निशिदिन मानव.....

दौड़ रहे क्यों भूखे बच्चे , तेरे इन दरबारों में ।
क्या इनको तू मान लिया है , निर्गुण औ लाचारों में ।।
बनकर दास रहे ये तेरा , करे भोग भण्डारों में ।
ऐसी सोच झलक कर आयी , जग के ठेकेदारों से ।।
उलझ रहा है निशिदिन मानव ...

बदलो मिलकर चाल सभी यह , प्रकृति बदलने वाली है ।
भूखे प्यासे लोगो की अब , आह निकलने वाली है ।
हमने वह आवाज सुनी है , चीखों और पुकारों से ।
आने वाले हैं हक लेने , देखो वह हथियारों से ।।
उलझ रहा है निशिदिन मानव ....

उलझ रहा है निशिदिन मानव , जिनके नित्य विचारो से ।
भाषण देते वे अभिनेता , सत्ता के गलियारों से ।।

महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR गीत :-
उलझ रहा है निशिदिन मानव , जिनके नित्य विचारो से ।
भाषण देते बन अभिनेता , सत्ता के गलियारों से ।।
उलझ रहा है निशिदिन मानव ....

छोड़ सभ

Manya Parmar

प्यार और हिंसा में फर्क समझें। ये बातें, ये समझ हमें माता-पिता भी नहीं दे सकते लेकिन हमें अपने विचार इतने परिपक्व करने होंगे कि हमें अपनो क #Shayari

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