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Azaad Pooran Singh Rajawat
White "हमको तो तन्हाई भी अच्छी लगती है प्रशंसकों की प्रशंसा से कहीं अधिक खुदा कसम आलोचकों की आलोचना अच्छी लगती है सफलता के शिखर पर चढ़ने का असली रास्ता आलोचकों की आलोचना ही सिखलाती है हमको तो तन्हाई भी अच्छी लगती है सुकून मिलता है, असीम शांति मिलती है श्वासों में सुगंध सुमित्रों की घुलती है दिल में ख्वाबों खयालों की सरिता बहती है फिर क्या सृजन को कल्पनाओं की आजाद कलम चल पड़ती है हमको तो तन्हाई भी अच्छी लगती है।" सभी प्रशंसकों व आलोचकों को आजाद सलाम। ©Azaad Pooran Singh Rajawat #Sad_Status #तनहाई भी अच्छी लगती है#
#Sad_Status #तनहाई भी अच्छी लगती है#
read moreUrmeela Raikwar (parihar)
White मैं अकेली, और चारो और अँधेरे, कब तक रोक पाऊँगी इस जीवन को , कब से मर चुका है, बाकी है तो बस तेरे कांधे पर जाना,, By Urmee Ki Dairy ©Urmeela Raikwar (parihar) #Sad_Status मैं अकेली
#Sad_Status मैं अकेली
read moreRaju_Divakar
White आप होशियार हो अच्छी बात है लेकिन हमे बेवकूफ ना समझे यह उससे भी अच्छी बात है ©Raju_Divakar #Couple आप होशियार हो अच्छी बात है लेकिन हमे बेवकूफ ना समझे यह उससे भी अच्छी बात है# hirapurvines01
#Couple आप होशियार हो अच्छी बात है लेकिन हमे बेवकूफ ना समझे यह उससे भी अच्छी बात है# hirapurvines01
read moreParasram Arora
White वो रात अकेली ही बिस्तर पर पढ़ी पढ़ी अपनी तन्हाई पर आंसू बहा कर सिसकती रहीं और मैं दूर खड़ा उसकी तन्हाई और उसके आंसुओ को पीता रहा ©Parasram Arora अकेली रात
अकेली रात
read moreVijay Shankar
White अच्छी पत्नी पाने के लिए हर युग में प्रतियोगिताएं होती रही हैं. त्रेता में धनुष तोड़ना था, तो द्वापर में मछली की आंख पर निशाना लगाना था.. कलियुग में अब सरकारी परीक्षा पास करनी पड़ती है ।। ©Vijay Shankar अच्छी पत्नी पाने के लिए हर युग
अच्छी पत्नी पाने के लिए हर युग
read moreParasram Arora
White जिन अच्छी गज़लो को लिखने मे गमो ने मेरा साथ दिया..था . लेकिन जिस दिन से मेरे गमो ने मेरा साथ छोड़ा है तबसे मैं ने अच्छी गज़लो को न लिखने का मन बना लिया है ©Parasram Arora अच्छी ग़ज़ल
अच्छी ग़ज़ल
read moreShashi Bhushan Mishra
White महफ़िल में भी मिली अकेली तन्हाई, गम के पन्ने पलट रही थी रुस्वाई, गिरा ताड़ से अटका किसी खजूरे पर, बेचारे ने कैसी है किस्मत पाई, बैठ गया खालीपन उसके जाने से, कभी नहीं हो सकती जिसकी भरपाई, बिन बरसे ही सावन घर को लौट गया, मन के अंदर ख़्वाहिश लेती अंगड़ाई, दिन ढ़लने को आतुर मेरे आंगन का, लगी छुड़ाने पीछा अपनी परछाई, आम आदमी की थाली से गायब है, कोर-कसर पूरा कर देती महंगाई, पैसों से तक़दीर की टोपी मिल जाती, दूर सिसकती बैठी मिलती तरुणाई, दिल की बात सुनाऊँ मैं किससे गुंजन, आहत करती मन को यादें दुखदाई, ---शशि भूषण मिश्र 'गुंजन' समस्तीपुर बिहार ©Shashi Bhushan Mishra #मिली अकेली तन्हाई#
#मिली अकेली तन्हाई#
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