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Sandeep Kothar
दोस्तों, हमारे जमीं पर कभी ब्रिटिश हुक़ूमत का झंडा लहराया करता था। ब्रिटिश, ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के नाम से व्यापार करने भारत आए, और धीरे धीरे हमारी जमीं पर अपनी हुक़ूमत जमाने लगे। कंपनी हमारे किसान भाइयों से कपास कावड़ियों के दाम ख़रीद कर उसका कपड़ा मशीनों के द्वारा विकसित कर, हमें ही उल्टा महंगा बेचती। मशीनी कपड़ों की बनावट हाथ की मशीनों से बने कपड़ों के मुकाबले बेहतर हुआ करती थी। उनकी ऐसी नीतियों ने हमारे छोटे छोटे रोजगार हमेशा के लिए ख़तम कर दिए। दोस्तों आज मैं क्यों आपको ये सब बता रहा हूं, क्युकी आज ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की जगह ऑनलाइन बिजनेस अप्लिकेशन ले रहे हैं। कोरोना महामारी के आड में हमारे सभी व्यवसायों को अपने छत्रछाया में लेकर भारत में अपनी पकड़ हर क्षेत्र में मजबूत कर रहे है, भले फिर कमर्शियल मार्केटिंग हों, एजुकेशन, फूड या फिर ट्रैवलिंग और अन्य। मतलब दोस्तों, सामान की डिलीवरी भारतीय करेंगे, हम उपभोक्ता और व्यापारी भी होंगे, सारा लेन देन एक ऑनलाइन विदेशी अप्लिकेशन के माध्यम से होगा... हम अपनी कमाई लुटा ते रहेंगे और वो सारी उम्र कमाते रहेंगे। दोस्तों क्या आप ये सब सहेंगे? ©Sandeep Manohar Kothar जरूर पढ़े 🙏🙏🙏🙏 दोस्तों, हमारे जमीं पर कभी ब्रिटिश हुक़ूमत का झंडा लहराया करता था। ब्रिटिश, ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के नाम से व्यापार करने भारत आए, और धीरे धीरे हमारी जमीं पर अपनी हुक़ूमत जमाने लगे। कंपनी हमारे किसान भाइयों से कपास कावड़ियों के दाम ख़रीद कर उसका कपड़ा मशीनों के द्वारा विकसित कर, हमें ही उल्टा महंगा बेचती। मशीनी कपड़ों की बनावट हाथ की मशीनों से बने कपड़ों के मुकाबले बेहतर हुआ करती थी। उनकी ऐसी नीतियों ने हमारे छोटे छोटे रोजगार हमेशा के लिए ख़तम कर दिए। दोस्तों आज मैं क्यों आपक
जरूर पढ़े 🙏🙏🙏🙏 दोस्तों, हमारे जमीं पर कभी ब्रिटिश हुक़ूमत का झंडा लहराया करता था। ब्रिटिश, ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के नाम से व्यापार करने भारत आए, और धीरे धीरे हमारी जमीं पर अपनी हुक़ूमत जमाने लगे। कंपनी हमारे किसान भाइयों से कपास कावड़ियों के दाम ख़रीद कर उसका कपड़ा मशीनों के द्वारा विकसित कर, हमें ही उल्टा महंगा बेचती। मशीनी कपड़ों की बनावट हाथ की मशीनों से बने कपड़ों के मुकाबले बेहतर हुआ करती थी। उनकी ऐसी नीतियों ने हमारे छोटे छोटे रोजगार हमेशा के लिए ख़तम कर दिए। दोस्तों आज मैं क्यों आपक
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