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Dharmendra Azad
धर्मेन्द्र तिजोरीवाले "आज़ाद" के गज़ल संग्रह " उनकी यादों के उजाले " की प्रतियाँ अब उपलब्ध हैं। एक प्रति का मूल्य 100 रुपये है, और डाक व्यय 20 रुपये अतिरिक्त। एक से अधिक प्रतियाँ खरीदने पर डाक व्यय नहीं देना होगा। गज़ल संग्रह के इच्छुक पाठक निम्न खाते में राशि जमा करने के बाद वॉट्सएप्प नं 9425469326 पर सूचित करें- धर्मेन्द्र तिजोरीवाले खाता नंबर- 30933476963 IFSC कोड - SBIN0012171 राशि जमा करने के बाद वॉट्सएप्प पर अनिवार्य रूप से सूचित करें ।
Reena Patel
उपन्यास के क्षेत्र में इनका काफी योगदान था.इनका योगदान देखकर बंगाल के विख्यात उपन्यासकार चट्टोपाध्याय ने उन्हें उपन्यास सम्राट कह कर संबोधित किया था.. इन्होंने लेखन में सदैव ही लोगों का मार्गदर्शन दिया , उन्होंने साहित्य की यथार्थवादी परंपरा की नींव रखी और तो और मुंशी प्रेमचंद की स्मृति में भारतीय डाक विभाग की ओर से 31 जुलाई सन 1980 को उनकी जन्मसती के अवसर पर 30 पेसे मूल्य का एक डाक टिकट जारी किया... @_kuchbaateindilki_ #कथा सम्राट मुंशी प्रेमचंद आप हमेशा याद रहेंगे क्योंकि इन्हें उपन्यास सम्राट कह कर संबोधित किया था 🙏🙏
#कथा सम्राट मुंशी प्रेमचंद आप हमेशा याद रहेंगे क्योंकि इन्हें उपन्यास सम्राट कह कर संबोधित किया था 🙏🙏
read moreAnjali Parihar
"अपनी भूल अपने ही हाथों से सुधर जाए तो यह उससे कहीं अच्छा है कि कोई दूसरा उसे सुधारे।" - मुंशी प्रेमचंद प्रेमचंद जी ने सरकारी सेवा करते हुए कहानी लिखना आरम्भ किया, तब उन्होंने नवाब राय नाम अपनाया। बहुत से मित्र उन्हें जीवन-पर्यन्त नवाब के नाम से ही सम्बोधित करते रहे। जब सरकार ने उनका पहला कहानी-संग्रह, ‘सोजे वतन’ जब्त किया, तब उन्हें नवाब राय नाम छोड़ना पड़ा। बाद का उनका अधिकतर साहित्य प्रेमचंद के नाम से प्रकाशित हुआ। इसी काल में प्रेमचंद ने कथा-साहित्य बड़े मनोयोग से पढ़ना शुरू किया। एक तम्बाकू-विक्रेता की दुकान में उन्होंने कहानियों के अक्षय भण्डार, ‘तिलिस्मे होशरूबा’ का पाठ सुना। इस पौराणिक गा
प्रेमचंद जी ने सरकारी सेवा करते हुए कहानी लिखना आरम्भ किया, तब उन्होंने नवाब राय नाम अपनाया। बहुत से मित्र उन्हें जीवन-पर्यन्त नवाब के नाम से ही सम्बोधित करते रहे। जब सरकार ने उनका पहला कहानी-संग्रह, ‘सोजे वतन’ जब्त किया, तब उन्हें नवाब राय नाम छोड़ना पड़ा। बाद का उनका अधिकतर साहित्य प्रेमचंद के नाम से प्रकाशित हुआ। इसी काल में प्रेमचंद ने कथा-साहित्य बड़े मनोयोग से पढ़ना शुरू किया। एक तम्बाकू-विक्रेता की दुकान में उन्होंने कहानियों के अक्षय भण्डार, ‘तिलिस्मे होशरूबा’ का पाठ सुना। इस पौराणिक गा
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