Find the Best ज़फर Shayari, Status, Quotes from top creators only on Gokahani App. Also find trending photos & videos aboutज़फर का अर्थ, 'बहादुर शाह ज़फर शायरी इन हिंदी', ज़फरनामा इन पंजाबी, ज़फर इक़बाल, ज़फर,
Ikram Ansari
जब मुगलों ने पूरे भारत को एक किया तो इस देश का नाम कोई इस्लामिक नहीं बल्कि 'हिन्दुस्तान' रखा, हाँलाकि इस्लामिक नाम भी रख सकते थे, कौन विरोध करता ? जिनको इलाहाबाद और फैजाबाद चुभता है वह समझ लें कि मुगलों के ही दौर में 'रामपुर' बना रहा तो 'सीतापुर' भी बना रहा। अयोध्या तो बसी ही मुगलों के दौर में। 'राम चरित मानस' भी मुगलिया काल में ही लिखी गयी। आज के वातावरण में मुगलों को सोचता हूँ, मुस्लिम शासकों को सोचता हूँ तो लगता है कि उन्होंने मुर्खता की। होशियार तो ग्वालियर का सिंधिया घराना था, होशियार मैसूर का वाडियार घराना भी था और जयपुर का राजशाही घराना भी था तो जोधपुर का भी राजघराना था। टीपू सुल्तान हों या बहादुरशाह ज़फर,,, बेवकूफी कर गये और कोई चिथड़े चिथड़ा हो गया तो किसी को देश की मिट्टी भी नसीब नहीं हुई और सबके वंशज आज भीख माँग रहे हैं। अँग्रेजों से मिल जाते तो वह भी अपने महल बचा लेते और अपनी रियासतें बचा लेते, वाडियार, जोधपुर, सिंधिया और जयपुर राजघराने की तरह उनके भी वंशज आज ऐश करते। उनके भी बच्चे आज मंत्री विधायक बनते। यह आज का दौर है, यहाँ 'भारत माता की जय' और 'वंदेमातरम' कहने से ही इंसान देशभक्त हो जाता है, चाहें उसका इतिहास देश से गद्दारी का ही क्युँ ना हो। बहादुर शाह ज़फर ने जब 1857 के गदर में अँग्रैजों के खिलाफ़ पूरे देश का नेतृत्व किया और उनको पूरे देश के राजा रजवाड़ों तथा बादशाहों ने अपना नेता माना। भीषण लड़ाई के बाद अंग्रेजों की छल कपट नीति से बहादुरशाह ज़फर पराजित हुए और गिरफ्तार कर लिए गये। ब्रिटिश कैद में जब बहादुर शाह जफर को भूख लगी तो अंग्रेज उनके सामने थाली में परोसकर उनके बेटों के सिर ले आए। उन्होंने अंग्रेजों को जवाब दिया कि - "हिंदुस्तान के बेटे देश के लिए सिर कुर्बान कर अपने बाप के पास इसी अंदाज में आया करते हैं।" बेवकूफ थे बहादुरशाह ज़फर। आज उनकी पुश्तें भीख माँग रहीं हैं। अपने इस हिन्दुस्तान की ज़मीन में दफन होने की उनकी चाह भी पूरी ना हो सकी और कैद में ही वह "रंगून" और अब वर्मा की मिट्टी में दफन हो गये। अंग्रेजों ने उनकी कब्र की निशानी भी ना छोड़ी और मिट्टी बराबर करके फसल उगा दी, बाद में एक खुदाई में उनका वहीं से कंकाल मिला और फिर शिनाख्त के बाद उनकी कब्र बनाई गयी ! सोचिए कि आज "बहादुरशाह ज़फर" को कौन याद करता है ? क्या मिला उनको देश के लिए दी अपने खानदान की कुर्बानी से ? ऐसा इतिहास और देश के लिए बलिदान किसी संघी का होता तो अब तक सैकड़ों शहरों और रेलवे स्टेशनों का नाम उनके नाम पर हो गया होता। क्या इनके नाम पर हुआ ? नहीं ना ? इसीलिए कहा कि अंग्रेजों से मिल जाना था, ऐसा करते तो ना कैद मिलती ना कैद में मौत, ना यह ग़म लिखते जो रंगून की ही कैद में लिखा : लगता नहीं है जी मेरा उजड़े दयार में, किस की बनी है आलम-ए-नापायदार में। उम्र-ए-दराज़ माँग के लाये थे चार दिन, दो आरज़ू में कट गये, दो इन्तेज़ार में। कितना है बदनसीब 'ज़फर' दफ्न के लिए, दो गज़ ज़मीन भी न मिली कू-ए-यार में॥ 💐💐💐
About Nojoto | Team Nojoto | Contact Us
Creator Monetization | Creator Academy | Get Famous & Awards | Leaderboard
Terms & Conditions | Privacy Policy | Purchase & Payment Policy Guidelines | DMCA Policy | Directory | Bug Bounty Program
© NJT Network Private Limited