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Poetry with Avdhesh Kanojia
गणपति वन्दन ------------------ जय गजबदन जय गौरीनन्दन शंकर सुत जय विघ्नहरण। जय जय असुरारी जय भयहारी जय मंगलमय कल्याणकरण।। जय ओजस्वी अद्वितीय तेजस्वी परम शांत जय गणनायक। अतुलनीय छवि भालचन्द्र जय स्कलपूज्य जय वरदायक।। अभय प्रदाता जय सुख दाता जय परब्रह्म जय अविनाशी । परम शान्त सुखराशि गजानन एकदंत सब घट वासी।। जय चर्चित चंदन प्रभु तव वन्दन धूम्रवर्ण जय पाप शमन। सकल जीव तव सुत शिवनंदन चरण कमल शत कोटि नमन।। ✍️अवधेश कनौजिया© गणपति वन्दन ------------------ जय गजबदन जय गौरीनन्दन शंकर सुत जय विघ्नहरण। जय जय असुरारी जय भयहारी जय मंगलमय कल्याणकरण।। जय ओजस्वी अद्वितीय तेजस्वी
गणपति वन्दन ------------------ जय गजबदन जय गौरीनन्दन शंकर सुत जय विघ्नहरण। जय जय असुरारी जय भयहारी जय मंगलमय कल्याणकरण।। जय ओजस्वी अद्वितीय तेजस्वी
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Happy Janmashtami हे कृष्णा श्रीकृष्ण रसामृत प्रभु तव चरण मम वन्दन हे प्रभु पुरुषोत्तम गोपाल। प्रभु तव चरण मम वन्दन हे प्रभु पुरुषोत्तम गोपाल। प्रभु तुम वर्षा हम चातक प्रभु तुम ही सबके पालक। बस जाऊँ मैं हे मुरारी चरणों में आपके हूँ सन्मुख नतमस्तक आपके प्रताप के। रंग चुका हूँ रंग में मैं हे माधव आपके चिन्ह मुझपे दिखते हैं आपकी ही छाप के। तुम सम दाता नहीं कोई भी मैं तव द्वारे एक याचक। प्रभु तुम वर्षा हम चातक प्रभु तुम ही सबके पालक। प्रभु तव चरण मम वन्दन हे प्रभु पुरुषोत्तम गोपाल। प्रभु तव चरण मम वन्दन हे प्रभु पुरुषोत्तम गोपाल। प्रभु तुम वर्षा हम चातक प्रभु तुम ही सबके पालक। आपमें में राधा श्याम आप भी हो राधा में आप सर्वमुक्त प्रभु बंधते नहीं बाधा में। आप पूर्ण पुरुषोत्तम हर विधि हूँ आधा मैं पर सुध बुध खो जाती है नाम कृष्ण राधा में। है नाम तव एक सायक मोह माया मुक्ति दायक। प्रभु तुम वर्षा हम चातक प्रभु तुम ही सबके पालक। प्रभु तव चरण मम वन्दन हे प्रभु पुरुषोत्तम गोपाल। प्रभु तव चरण मम वन्दन हे प्रभु पुरुषोत्तम गोपाल। प्रभु तुम वर्षा हम चातक प्रभु तुम ही सबके पालक। #श्रीकृष्ण श्रीकृष्ण रसामृत ..................... प्रभु तव चरण मम वन्दन हे प्रभु पुरुषोत्तम गोपाल। प्रभु तव चरण मम वन्दन हे प्रभु पुरुषोत्तम गोपाल।
#श्रीकृष्ण श्रीकृष्ण रसामृत ..................... प्रभु तव चरण मम वन्दन हे प्रभु पुरुषोत्तम गोपाल। प्रभु तव चरण मम वन्दन हे प्रभु पुरुषोत्तम गोपाल।
read moreAjay Amitabh Suman
ये कविता एक माँ के प्रति श्रद्धांजलि है । इस कविता में एक माँ के आत्मा की यात्रा स्वर्गलोक से ईह्लोक पे गर्भ धारण , बच्ची , तरुणी , युवती , माँ , सास , दादी के रूप में क्रमिक विकास और फिर देहांत और देहोपरांत तक दिखाई गई है। अंत में कवि माँ की महिमा का गुणगान करते हुए इस कविता को समाप्त करता है। माँ आओ एक किस्सा बतलाऊँ,एक माता की कथा सुनाऊँ, कैसे करुणा क्षीरसागर से, ईह लोक में आती है? धरती पे माँ कहलाती है।
ये कविता एक माँ के प्रति श्रद्धांजलि है । इस कविता में एक माँ के आत्मा की यात्रा स्वर्गलोक से ईह्लोक पे गर्भ धारण , बच्ची , तरुणी , युवती , माँ , सास , दादी के रूप में क्रमिक विकास और फिर देहांत और देहोपरांत तक दिखाई गई है। अंत में कवि माँ की महिमा का गुणगान करते हुए इस कविता को समाप्त करता है। माँ आओ एक किस्सा बतलाऊँ,एक माता की कथा सुनाऊँ, कैसे करुणा क्षीरसागर से, ईह लोक में आती है? धरती पे माँ कहलाती है।
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