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Rashmi Hule
रसग़ज़ल :- श्रृंगार रस बंद आँखों से होते है जब दिदार महबूब के खुली आँखों के तलबगार क्यु रहे हम हो जाती है जब ख़ामोशियों में बाते तो मिलने-जुलने का इंतज़ार क्यु करे हम मेरे ख़्वाबों में अक़्सर आकर ऐसे छू लेते हो कोई मख़मली चुनरिया में लिपटा हो बदन खिले लबोंपर तेरा ज़िक्र आता है ऐसे कोयल गुनगुना रहीं हो कोई ग़ज़ल महक उठती हैं तेरी साँसों से रगरग झूम उठता हैं तन-बदन जैसे गुलशन गुज़र जायें अब रातें ख़्वाबों में हो जायें युहीं मुलाकातें ख़यालों में श्रृंगार रस :-रसग़ज़ल बंद आँखों से होते है जब दिदार महबूब के खुली आँखों के तलबगार क्यु रहे हम हो जाती है जब ख़ामोशियों में बाते तो मिलने-जुलने का इंतज़ार क्यु करे हम
श्रृंगार रस :-रसग़ज़ल बंद आँखों से होते है जब दिदार महबूब के खुली आँखों के तलबगार क्यु रहे हम हो जाती है जब ख़ामोशियों में बाते तो मिलने-जुलने का इंतज़ार क्यु करे हम
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अनामिका :- काव्यसंग्रह कविता :- गीत कवी :- सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला" जैसे हम है वैसे ही रहे स्वरचित कविता caption में ⬇️ अनामिका :- काव्यसंग्रह कविता :- गीत कवी :- सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला" ** पहिली और आखरी पंक्ति कवी सुर्यकांत त्रिपाठी "निराला" जी की कविता "गीत" से लेकर.. स्वरचना **
अनामिका :- काव्यसंग्रह कविता :- गीत कवी :- सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला" ** पहिली और आखरी पंक्ति कवी सुर्यकांत त्रिपाठी "निराला" जी की कविता "गीत" से लेकर.. स्वरचना **
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