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Kalpesh Soni
रुके जो कदम तेरे तो हम तेरी और चल देंगे वादा करो सजाओगे मेरी जुल्फों को हरबार तुम्हारे आने से पहेले हम उनको खोल देंगे #अलकों #बेकाबू #दिल #love #अनुमोदन #yqbaba #yqdidi #YourQuoteAndMine Collaborating with RITU Srivastava
Anil Siwach
।।श्री हरिः।। 45 - खायेगा? 'खायेगा!' कन्हाई के हाथ में मोदक है। केशर-पीत, खूब बड़ा-सा मोदक! बूंदी का बना ऐसा मोदक जिसे देखकर ही क्षुधा जाग जाय और फिर श्याम के हाथ का मोदक प्राप्त करने को तो स्वर्ग के देवता भी क्षुधातुर हो जायेंगे। मधुमंगल का तो सबसे प्रिय आहार है मोदक। सखाओं ने भरपूर शृंगार किया है ब्रजराज-कुमार का। अलकों से लेकर चरणों तक पुष्प-गुच्छ, गुञ्जा, किसलय, पिच्छ आदि से इसे सजाया है। इसके सम्पूर्ण शरीर को गैरिक, रामरज, खड़िया आदि से ऐसा चित्रित किया है कि यह चित्र-मन्दिर ही बन गया है।
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।।श्री हरिः।। 38 - तुलसी-पूजन मैया तुलसी-पूजन कर रही है। गौर श्रीअंग, रंत्न-खचित नील कौशेेय वस्त्र कटि में कौशेय रज्जु से कसा है। चरणों में रत्ननूपुर हैं। कटि में रत्न जटित स्वर्णकाञ्ची है। करों में चूड़ियाँ हैं, कंकण हैं। रत्न जटित अंगूठियाँ हैं। भुजाओं में केयूर हैं। कंठ में सौभाग्य-सूत्र, मुक्तामाल, रत्नहार है और है नील कञ्चुकी रत्नखचित्त लाल कौशेय ओढनी। मोतियों से सज्जित माँग, मल्लिका-मालय-मंडित वेणी। आकर्ण-चुम्बित कज्जल-रञ्जित लोचन, कर्णों में रत्न-कुण्डल, भालपर सिन्दूर-बिन्दु, मैया ब्रजेश
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।।श्री हरिः।। 35 - क्या करेगा? 'कनूँ ! तू खो जाय तो क्या करेगा?' तोक दौड़ा-दौडा आया और कन्हाई का दक्षिण कर पकड़कर पूछ बैठा। आपको यह प्रश्न बहुत अटपटा-असंगत लग सकता है। यह तो ऐसा ही प्रश्न है जैसे कोई पूछे कि 'सूर्य आकाश में खो जाय तो क्या करे?' भला यह व्रजराजकुमार वृन्दावन में खो कैसे सकता है? लेकिन तोक तो गोपकुमारों में सबसे छोटा है। उसके लिए कोई प्रश्न अटपटा नहीं है। कृष्ण के समान ही इन्दीवर सुन्दर, वैसी ही घुंघराली अलकों में मयूर-पिच्छ लगाये, पीताम्बर की कछनी-उत्तरीयधारी वनमाली तोक केवल, आ
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।।श्री हरिः।। 34 - अन्वेषण 'तू क्या ढूंढ़ रहा है?' जब कोई कमर झुकाकर भूमि से दृष्टि लगाए एक-एक तृण का अन्तराल देखता धीरे-धीरे पद उठाता चले तो समझना ही होगा कि उसकी कोई वस्तु खो गयी है और वह उसे ढूंढ रहा है। साथ ही वह वस्तु बहुत छोटी होनी चाहिये, जो तृणों की भी ओट में छिप सके। कन्हाई कमर झुकाये एक-एक पद धीरे-धीरे उठाता चल रहा है। इस चपल ऊधमी के लिये इस प्रकार पृथ्वी पर नेत्र गड़ाकर चलना सर्वथा अस्वाभाविक है। ऐसी क्या वस्तु इसकी खोयी है कि इतनी शान्ति से, इतनी स्थिरता एकाग्रता से लगा है अन्वेषण
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|| श्री हरि: || 22 - नाम बताओ 'अरे, कौन है? छोड़ भी।' आज तनिक भद्र सखाओं से हटकर तमाल तरु के मूल में आ बैठा था। तमाल की ओट से आकर कन्हाई ने पीछे से उसके दोनों नेत्र अपने करों से बन्द कर लिये भद्र चौंका नहीं; किन्तु उसने अपने दोनों करों से नेत्र बन्द करने वाले के कर कलाइयों से कुछ ऊपर पकड़ लिये। अब यह स्पर्श भी क्या पहिचानने की अपेक्षा करता है? रुनझुन नूपुर भी बजे थे। बहुत सावधानी से आने पर भी कटि की मणिमेखला में कुछ क्वणन हुआ ही था और नन्दनन्दन के श्री अंग से जो उसकी वनमाला में लगी तुलसी का स
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|| श्री हरि: || 11 - गोपाल 'कनूँ तू देवता है?' 'तू देवता है।' कुछ चिढे स्वर में इस प्रकार कन्हाई ने कहा जैसे कोई किसी को गाली के बदले गाली दे दे। पता नहीं क्या बात है कि इस श्रीदाम से कन्हाई खटपट करता ही रहता है! इसी को चिढाने-खिझाने पर उतारु रहता है। इतने पर भी श्रीदाम रहेगा इसी के साथ। इससे लडेगा, झगड़ेगा, खीझेगा; किन्तु इस व्रजराजतनय का साथ तो नहीं छोडा जा सकता।
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।।श्री हरिः।। 18 - वर्षा में श्याम को जल से सहज प्रेम है और वर्षा हो रही हो, तब तो पूछना ही क्या? सभी बालक प्राय: वर्षा में भीगकर स्नान करने के व्यसनी होते हैं। कन्हाई को कोई रोकनेवाला न हो तो यह तो शरत्कालिन वर्षा में भी भीग-भीगकर स्नान करता, उछलता-कूदता फिरे। यह तो पावस की वर्षा है। इसमें तो पशु भी नीचे छिपने नहीं जाते। उन्हें भी भीगने में आनन्द आता है। प्रातःकाल बालक गोचारण के लिए चलते थे, तब आकाश में थोड़े ही मेघ थे; किन्तु पावस में घटा घिरते देर कितनी लगती है। आकाश प्रथम प्रहर बीतते ही मे
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।।श्री हरी।। 13 - स्नान 'दादा! स्नान करेगा तू?' कन्हाई अग्रज के समीप दौड़ा-दौड़ा आया और वाम पार्श्व में खड़े होकर दोनों भुजाएँ भाई के कण्ठ में डालकर कन्धे पर सिर रखकर बड़े स्नेहपूर्वक पूछ रहा है। 'स्नान?' दाऊ ने तनिक सिर घुमाया। वे इस पूछने का अर्थ जानते हैं। श्यामसुंदर स्नान करना चाहता है। शैशव से यह जल पाते ही उसमें लोट-पोट होने में आनन्द मनाता रहा है।स्नान योग्य जल हो तो स्नान करने को इसका मन मचल पड़ता है। लेकिन मैया ने बार-बार मना किया है कहीं यमुना अथवा सरोवर में स्नान करने को। सखाओं को म #Books
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|| श्री हरि: || 8 - निर्माता 'कनूँ ! क्या कर रहा है तू?' भद्र ने पूछा समीप आकर। उसे कुछ आहट लगी थी गोष्ठ में और यह देखने आ गया था कि यहाँ कौन क्या कर रहा है। गायें, वृषभ, बछड़े-बछडियाँ सब अभी-अभी चरने को गयी हैं। कोई सेवक या सेविका अभी गोष्ठ स्वच्छ करने आयी नहीं है। केवल सद्य:प्रसूता गाये हैं अपने बच्चों के साथ और वे गोष्ठ के एक भाग में हैं। गोमय, गोमूत्र, गायों के खा लेने से बची घास जो उनके खुरों से कुचली है, पूरे गोष्ठ में फैली है। गोष्ठ इस समय अस्वच्छ है। ऐसे समय गोष्ठ में कन्हाई चुपचाप घु #Books
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