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Anil Siwach

।।श्री हरिः।। 40 - बतंगा 'यह तो बतंगा है।' कन्हाई ने कहा और सखाओं की ओर दौड़ गया। नन्हें से नन्द-नन्दन को नाम रखना बड़ा अच्छा आता है। यह गायों, वृषभों, बछड़े-बछड़ियों का, कपियों का, श्वानों का, पक्षियों का, कौओं तक का बडे प्यार से नामकरण करता है, लेकिन कन्हाई अभी है ही कितना बड़ा कि इतने सारे नामों को स्मरण रख सके। कल जिसका नाम इसने उज्जवल रखा, आज उसी को सुबोध कहने लगेगा। अटपटे नाम तो गोपियों के - अपने को खिझाने वाली गोपियों के रखता है - नित्य नये नाम। अब आज इस गोपी का नाम इसने बतंगा रख दिया।

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।।श्री हरिः।।
40 - बतंगा

'यह तो बतंगा है।' कन्हाई ने कहा और सखाओं की ओर दौड़ गया।

नन्हें से नन्द-नन्दन को नाम रखना बड़ा अच्छा आता है। यह गायों, वृषभों, बछड़े-बछड़ियों का, कपियों का, श्वानों का, पक्षियों का, कौओं तक का बडे प्यार से नामकरण करता है, लेकिन कन्हाई अभी है ही कितना बड़ा कि इतने सारे नामों को स्मरण रख सके। कल जिसका नाम इसने उज्जवल रखा, आज उसी को सुबोध कहने लगेगा। अटपटे नाम तो गोपियों के - अपने को खिझाने वाली गोपियों के रखता है - नित्य नये नाम। अब आज इस गोपी का नाम इसने बतंगा रख दिया।

Anil Siwach

।।श्री हरिः।। 16 - ऊधमी मैया यशोदा का लाल ऊधमी बहुत है। कब क्या ऊधम करेगा, कुछ ठिकाना नहीं रहता। इससे कुछ खटपट किये बिना रहा नहीं जाता है और लड़कियों को चिढाने, तंग करने का तो जैसे इसे व्यसन है। लडकियाँ भी तो ऐसी हैं कि इससे दूर नहीं रह पाती, किन्तु इसमें बेचारी लड़कियों का क्या दोष है। यह भुवनमोहन है ही ऐसा कि इससे दूर तो पशु-पक्षी भी नहीं रह पाते, मनुष्य कैसे दूर रहेगा। गोपकुमार प्रातःकाल सूर्योदय से पूर्व ही नन्दभवन आ जाते हैं। जागते ही उन्हें कन्हाई के समीप पहुँचने की धुन चढती है। मातायें

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।।श्री हरिः।।
16 - ऊधमी

मैया यशोदा का लाल ऊधमी बहुत है। कब क्या ऊधम करेगा, कुछ ठिकाना नहीं रहता। इससे कुछ खटपट किये बिना रहा नहीं जाता है और लड़कियों को चिढाने, तंग करने का तो जैसे इसे व्यसन है।

लडकियाँ भी तो ऐसी हैं कि इससे दूर नहीं रह पाती, किन्तु इसमें बेचारी लड़कियों का क्या दोष है। यह भुवनमोहन है ही ऐसा कि इससे दूर तो पशु-पक्षी भी नहीं रह पाते, मनुष्य कैसे दूर रहेगा।

गोपकुमार प्रातःकाल सूर्योदय से पूर्व ही नन्दभवन आ जाते हैं। जागते ही उन्हें कन्हाई के समीप पहुँचने की धुन चढती है। मातायें


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