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थोड़ी सी जद्दोजहद और कर लेने दे ऐ जिन्दगी । अभि तो अपनों ने दगा दिया है, गैरों को परखना बाकी है।। :- सुजीत कुमार मिश्रा प्रयागराज। #जद्दोजहद #sujitmishra #सुजीत_कुमार_मिश्रा
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Heartbreak लगी दिल्लगी टूट ही सी गई । ना जाने किस तरफ उनका निगाहें करम होगा।। :- सुजीत कुमार मिश्रा प्रयागराज। #टूटा_दिल #सुजीत_कुमार_मिश्रा
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ज़िंदगी और जंग जिन्दगी एक आस पर कुछ यूं जिया मैंने। बाद मैदान_ए_जंग पर, कुछ तो शुकूं मिलेगा।। :- सुजीत कुमार मिश्रा, प्रयागराज। #जिन्दगी_और_जंग #सुजीत_कुमार_मिश्रा
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#Pehlealfaaz #Pehlealfaaz क्या लिखूं मेरे पहले अल्फ़ाज़ में। जीवन के ना जाने कितने संघर्षों में जीने का मतलब क्या होता है मैं यही भूल गया। सब से ज्यादा आनंद इंसान को बचपन में होता है पर मुझे तो वहां भी तन्हाइयां मिली। मुझे इस जमाने से रुस्वाइंयों के शिवा कुछ भी ना मिला। जिस उम्र में लडके खेलते कूदते मौज मस्ती करते हैं उस उम्र में मुझे भूख मिटाने कि चिंता थी। इन छोटे- छोटे हाथों से मैंने जितने कलम से ना सीख ली होगी उससे ज्यादा तो चाय के कप धोने पर मालिक से मिले गालियों से मिली होगी। मुझे याद है वो दिन जब घर में खाने के लिए अनाज भी नहीं था। आखिर कोई व्यक्ति कब तक चुप बैठ सकता है मै भी किसी का छोटू बन गया तो किसी का नौकर। पर घर का मालिक जरूर बन गया। वो दिन का 10 रू मिलना और खाना अलग से मेरे लिए और क्या चाहिए बस इतना बहुत था इस छोटू के लिए। जैसे तैसे समय बदलता गया और साथ में मेरा किरदार अब मैं छोटू नहीं किसी का पति और किसी का पिता बन गया। अब तो मुझे और जिम्मेदारी मिल गई । मेरे तो सब अरमान पहले से ही जले पड़े थे पर परिवार के खयाल में परवरिश में कुछ भी कमी ना हो इस लिए मुझे और मेहनत करना पड़ा। हा अब 10 रू के बदले 10000 रू मिलने लगा। क्यूंकि अब मै चाय वाला छोटू नहीं एक होटल में झूठे बर्तन साफ करने वाला रामू बन गया। पर इस तरह से भी मैं खुश नहीं रह सकता मै मेरे परिवार को यह बता भी नहीं सकता कि मै कौन सा काम कर रहा हूं। पर शायद यही मेरी किस्मत में लिखा हो । जमाने की खुशियों से दूर एक वीरान सी जिन्दगी जो किसी सजा से कम नहीं है। आखिर क्यों एक गरीब ही गरीब रहता है। आखिर क्या कारण है कि मुझ जैसे लोग को इज्ज़त या तवज्जो नहीं दी जाती। खैर अपने अतीत में जाना ही मेरा अल्फ़ाज़ है। मेरे द्वारा किया गया संघर्ष ही मेरा अल्फ़ाज़ है। यही मेरा पहला और आखिरी अल्फ़ाज़ है।। सिखाया तूने ही जीने का सलीका मुझको। ऐ जिंदगी, तूने ठोकरें दे दे कर ।। :- सुजीत कुमार मिश्रा प्रयागराज। #Pehlealfaaz #मेरा_पहला_अल्फ़ाज़ #सुजीत_कुमार_मिश्रा
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#DelhiPollution सुनो ध्यान से, भैया अब तो खुद ही लड़ो लड़ाई। फईल गया है भारी प्रदूषण, खुद लो जान बचाई ।। नाही जिम्मा लेहई केजरी, नाही भाजपाई। कांग्रेस के कान ना कौनऊ, जूं चले ला भाई।। सुनो ध्यान से, भैया अब तो खुद ही लड़ो लड़ाई।। दिल्ली में लोगन के दिलवा, दम घुटेला भाई। सीधे मुंह से बात ना निकले, बोलते ला खंसिआयी ।। पहन के मास्क बाहर निकले, इतनी मोर अरज है। गाड़ी तबही बाहर निकालो, कि कौनउ जब गरज है ।। खुद भी संभलो, दूजे संभालो, जान बचा लो भाई। सुनो ध्यान से, भैया अब तो खुद ही लड़ो लड़ाई।। चलो नया अभियान चलाओ, सब कोई पेड़ लगाओ। ईंट भठ्ठी, कोयला और जुनी गाड़ी को हटाओ।। बन्द करो मत जलाओ एकऊ गठरी अब पराली। जैसे तैसे होई सके, कुछ काम करो अब भाई।। कुछ कदम खुद चलो तो लोगन लेऊ बोलाई। दिल्ली होई प्रदूषण मुक्त का घर - घर अलख जगाई।। सुनो ध्यान से, भैया अब तो खुद ही लड़ो लड़ाई।। :- सुजीत कुमार मिश्रा, प्रयागराज। #दिल्ली_के_प्रदूषण_पर_एक_दृश्य #सुजीत_कुमार_मिश्रा
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#DelhiPollution सुनो ध्यान से, भैया अब तो खुद ही लड़ो लड़ाई। फईल गया है भारी प्रदूषण, खुद लो जान बचाई ।। नाही जिम्मा लेहई केजरी, नाही भाजपाई। कांग्रेस के कान ना कौनऊ, जूं चले ला भाई।। सुनो ध्यान से, भैया अब तो खुद ही लड़ो लड़ाई।। दिल्ली में लोगन के दिलवा, दम घुटेला भाई। सीधे मुंह से बात ना निकले, बोलते ला खंसिआयी ।। पहन के मास्क बाहर निकले, इतनी मोर अरज है। गाड़ी तबही बाहर निकालो, कि कौनउ जब गरज है ।। खुद भी संभलो, दूजे संभालो, जान बचा लो भाई। सुनो ध्यान से, भैया अब तो खुद ही लड़ो लड़ाई।। चलो नया अभियान चलाओ, सब कोई पेड़ लगाओ। ईंट भठ्ठी, कोयला और जुनी गाड़ी को हटाओ।। बन्द करो मत जलाओ एकऊ गठरी अब पराली। जैसे तैसे होई सके, कुछ काम करो अब भाई।। कुछ कदम खुद चलो तो लोगन लेऊ बोलाई। दिल्ली होई प्रदूषण मुक्त का घर - घर अलख जगाई।। सुनो ध्यान से, भैया अब तो खुद ही लड़ो लड़ाई।। :- सुजीत कुमार मिश्रा, प्रयागराज। #दिल्ली_के_प्रदूषण_पर_एक_दृश्य #सुजीत_कुमार_मिश्रा
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बीते वक्त की बातें ना भूल जहन से । तेरा आज बताएगा, तेरे पैरों के छाले।। :- सुजीत कुमार मिश्रा, प्रयागराज । #कामयाबी #सुजीत_कुमार_मिश्रा
#कामयाबी #सुजीत_कुमार_मिश्रा #विचार
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यूं तो सब मुझको आवारा कहते हैं, जालिम वो भी अब किनारा करते हैं। जिनका ना इक पल भि कभी कटता करता था। वो भी अब नजरे चुराया करते हैं।। बिखरे दर्पण में एक ही चेहरा, हजारों दिखता है। आंखों से समन्दर छूटता है,जब कभी इश्क़ में दिल टूटता है।। :- सुजीत कुमार मिश्रा, प्रयागराज। #दिल_का_दर्द #सुजीत_कुमार_मिश्रा
#दिल_का_दर्द #सुजीत_कुमार_मिश्रा #शायरी
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