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Kunal Rajput (नज़र نظر)
#ghazal बग़ैर उनके आज तक कोई महल बना नहीं वो दफ़्न आह-ओ-दर्द जो किसी तलक गया नहीं بغیر اُنکے آج تک کوئی محل بنا نہیں وہ دفن آہ و درد جو کسی تلک گیا نہیں गिला नहीं मगर कई दफ़ा ये बात चुभती है मेरे मिज़ाज का कोई भी दोस्त मिल सका नहीं
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#ghazal ख़ुद में घुट के मर रहा हूँ देख ना माँ टूट कर बिखड़ा पड़ा हूँ देख ना माँ خد میں گھٹا کے مر رہا ہوں دیکھ نا ماں طور کر بکھڑا پڑا ہوں دیکھ نا ماں रोता हूँ फिर ख़ुद ही चुप हो जाता हूँ मैं कितना तन्हा हो गया हूँ देख ना माँ
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#ghazal जो हरा में सूखा है सब , तुम्हें भूल जाना है सब वो जो तुम में मुझ सा है सब ,तुम्हें भूल जाना है सब جو ہرا میں سوکھا ہے سب ، تمہیں بھول جانا ہے سب وہ جو تم میں مجھ سا ہے سب ، تمہیں بھول جانا ہے سب कहीं हो न फिर नदामत सो हिसाब से ही रोना ये जो रोना-वोना है सब , तुम्हें भूल जाना है सब
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#ghazal गाहे-ब-गाहे सोचता हूँ तेरी चाहत कर सकूँ पर मुझमें वो हिम्मत नहीं जो ऐसी जुर्रत कर सकूँ گاہے ب گاہے سوچتا ہوں تیری چاہت کر سکوں پر مجھمیں وہ ہمّت نہیں جو ایسی جررت کر سکوں मैं अर्ज़ हूँ तुम चाँद हो, कैसे को रक्खूँगा तुम्हें
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#ghazal बस यही सदाक़त है तुमको चलते जाना है ज़िन्दगी मसाफ़त है तुमको चलते जाना है بس یہی صداقت ہے تمکو چلتے جانا ہے زندگی مسافت ہے تمکو چلتے جانا ہے मुड़ के देखता है क्या पीछे रह गया है जो
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#ghazal 212 212 212 शाम-ए-महफ़िल है और तुम नहीं जश्न-ए-क़ातिल है और तुम नहीं ? شام_محفل ہے آور تم نہیں جشن_قتل ہے آور تم نہیں
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" मक़्ते या शेर-ए-आख़िर से पहले के दो अशआर (दसवाँ और ग्यारहवाँ शे'र ) में निरंतर ख़याल है , इसलिए वो दोनों शे'र क़ितआ में है ।" #ghazal #क़ितअ_बंद_ग़ज़ल मुहब्बत ठीक है पर देख भाई कुछ अपनी नक़्श-ओ-पैकर देख भाई محبّت ٹھیک ہے پر دیکھ بھائی کچھ اپنی نقش_و_پیکر دیکھ بھائی
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#nazm आज इस उफ़क़ से सारी रंग-ए-शफ़क़ चुरा के पुर-नूर चाँदनी से नूर-ओ-चमक चुरा के बरसात-ओ-गुल से भीनी-भीनी महक चुरा के पाकीज़गी की पहली-पहली झलक चुरा के हूर-ए-अदन की नक़्श-ए-नाज़-ओ-दमक चुरा के जो कुछ बना रहा हूँ ,जो कुछ बना चुका हूँ
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#ghazal न गर जीत पाया सबाहत से अपनी तुम्हें जीत लूँगा इबादत से अपनी ن گر جیت پایا صباحت سے اپنی تمہیں جیت لونگا عبادت سے اپنی न मजनूँ न ही कोई फ़रहाद हूँ मैं
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#qitaa ये मेरे दिल की बातें हैं मेरा अंदाज़ रहने दो मेरे फूल और काँटें हैं मेरा अंदाज़ रहने दो मैं अपनी बात कहने को किसी को क्यूँ पढूँ दिन-रात मेरे दिन और रातें हैं मेरा अंदाज़ रहने दो
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