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Harsh Khanna
वह घर, घर नही सिर्फ चार दीवारी की कोठरी रह जाती। जिस दिन अपने से शक़्स की सिर्फ दूरियों से ही आहट रह जाती। #yqbaba#yqdidi#कोठरी#आहट
Anil Siwach
|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 12 ।।श्री हरिः।। 10 – अनुगमन 'ठहरो!' जैसे किसी ने बलात् पीछे से खींच लिया हो। सचमुच दो पग पीछे हट गया अपने आप। मुख फेरकर पीछे देखना चाहा उसने इस प्रकार पुकारने वाले को, जिसकी वाणी में उसके समान कृतनिश्चयी को भी पीछे खींच लेने की शक्ति थी। थोड़ी दूर शिखर की ओर उस टेढ़े-मेढ़े घुमावदार पथ से चढ़कर आते उसने एक पुरुष को देख लिया। मुण्डित मस्तक पर तनिक-तनिक उग गये पके बालों ने चूना पोत दिया था। यही दशा नासिका और उसके समीप के कपाल के कुछ भागों कों छोड़कर शेष मु
read moreAashish Vyas
बचपन की यारी याद है तुझे वो हमारे बचपन की यारी वो बुढ़े माली के बुढ़ापे की लाचारी उसके बाग से फल चुराने की होशियारी साइकिल से रेस लगाने की खुमारी याद है तुझे वो अनकही बातें हमारी याद है तुझे वो घर के पीछे की पटरी वो पटरी के पास बनी डरावनी कोठरी कोठरी में दिन सारा गुजारने की बीमारी अपने रह्स्य छुपाके रखने की मंजूरी याद है तुझे वो हमारे बचपन की यारी याद है तुझे वो सब्जी वाली हमारी प्यार से कहते है जिसे हम सागकुमारी उसके टोकरी के मीठे फलों की चोरी चोरी पकड़े जाने पर समर्पण की जिम्मेदारी याद है तुझे वो हमारे बचपन की यारी वक़्त चाहे बीत गया पर हम तो अब भी वही है जितने अच्छे यार थे उतनी अच्छी यारी है तो क्या हुआ गर बालों में सफेदी की सहनाई है बस तुझसे मिल नहीं पता यही मेरी लाचारी है पर याद है मुझे हर एक प्रसंग जो दिलाता याद बचपन की यारी है जो दिलाता याद बचपन की यारी है #बचपन #यारी #bachpan #yaari #kahani #kavita #hindi #nojotohindi#nojotowriter #hindiwriter #poemwriter #writer #lekhakv#life #friendship #friends #aashishvyas #shayari #yaadein
Anil Siwach
|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 11 ।।श्री हरिः।। 12 - स्नेह जलता है 'अच्छा तुम आ गये?' माता के इन शब्दों को आप चाहें तो आशीर्वाद कह सकते हैं; किंतु कोई उत्साह नहीं था इनके उच्चारण में। उसने अपनी पीठ की छोटी गठरी एक ओर रखकर माता के चरण छुये और तब थका हुआ एक ओर भूमि पर ही बैठ गया। 'माँ मुझे देखते ही दौड़ पड़ेगी। दोनों हाथों से पकड़कर हृदय से चिपका लेगी। वह रोयेगी और इतने दिनों तक न आने के लिये उलाहने देगी।' वर्षों से पता नहीं क्या-क्या आशाएँ उमंगें, कल्पनाएँ मन में पाले हुए था वह। 'मैं मा
read moreAjay Amitabh Suman
लौट के गाँधी आये दिल्ली आज के राजनैतिक परिप्रेक्ष्य में गांधीजी अगर हिंदुस्तान आते तो उनका अनुभव कैसा होता, इस काल्पनिक लघु कथा में यही दिखाने की कोशिश की गई है. दरअसल ये कहानी आज के राजनैतिक अवसरवादिता पे एक व्ययंग है. 15 अगस्त 2018,
लौट के गाँधी आये दिल्ली आज के राजनैतिक परिप्रेक्ष्य में गांधीजी अगर हिंदुस्तान आते तो उनका अनुभव कैसा होता, इस काल्पनिक लघु कथा में यही दिखाने की कोशिश की गई है. दरअसल ये कहानी आज के राजनैतिक अवसरवादिता पे एक व्ययंग है. 15 अगस्त 2018, #nojotophoto
read moreSachin Ken
वो छोटी सी एक कोठरी उसपर नज़र पड़ते ही कुछ धुंदली सी यादें ताज़ा हो गई अक्सर एक बूढ़ी अम्मा के खाँसने की आवाज आती रहती थी जिससे उसके पास जाने पर कुछ दवाइयों की गन्ध सी आने लगती थी कई बार शाम के टाइम खेलते खेलते उसमे जा छिपते थे हमें देखकर वो बूढ़ी अम्मा भी बड़ी खुश होती थी,कई बार किवाड़ के पीछे या अपनी खाट के नीचे छिप जाने का इशारा भी करती थी उस कोठरी में एक खाट कुछ कपड़े और अलमारी में कुछ दवाओं की बोतलें रखी रहती थीं कई बार स्कूल से लौटते वक्त बारिश से भी बचाया था उस कोठरी ने,आज बर्षों बाद जब नज़र पड़ी तो उसपर मोटा सा एक ताला लटका था,बाद में पता लगा कि अब उस कोठरी को लेकर तीन भाइयों में झगड़ा रहता है एक भाई कहता है,"माँ को में रोटी देता था इसलिए कोठरी का हकदार में हूँ" दूसरा भाई कहता है, "मैं माँ की दवाई लाता था इसलिए कोठरी तो मेरी है" तीसरा भाई कहता है,"माँ के अन्तिम संस्कार के लिए पैसे मैंने दिए थे तो कोठरी का असली हक़दार मैं हूँ" अब तीन भाइयों में झगड़े की जड़ बनी हुई है वो छोटी सी एक कोठरी वो छोटी सी एक कोठरी उसपर नज़र पड़ते ही कुछ धुंदली सी यादें ताज़ा हो गई अक्सर एक बूढ़ी अम्मा के खाँसने की आवाज आती रहती थी जिससे उसके पास जाने पर कुछ दवाइयों की गन्ध सी आने लगती थी कई बार शाम के टाइम खेलते खेलते उसमे जा छिपते थे
वो छोटी सी एक कोठरी उसपर नज़र पड़ते ही कुछ धुंदली सी यादें ताज़ा हो गई अक्सर एक बूढ़ी अम्मा के खाँसने की आवाज आती रहती थी जिससे उसके पास जाने पर कुछ दवाइयों की गन्ध सी आने लगती थी कई बार शाम के टाइम खेलते खेलते उसमे जा छिपते थे #Poetry #story #nojotohindi #nojotokhabri
read moreBhaskar Anand
ये जो उदघोषित स्वप्न थे पन्नों पर एक एक कर के स्याह काली,शब्दों तक सीमित रह गई जो मायने थे समन्धित वाक्यों के वो अन्तर्विरोधों में ढह गए आज जब एकीकृत स्वप्नों से मन ने जब वार्तालाप की तो वैचारिक परिभाषाओं ने खुद के ही रपट लिखा दिए फिर भी स्वप्न तो स्वप्न था, उसने अबकी संवेदनाओं से पहल की संवेदनाओं ने एकजुट होकर उन स्वप्नों को जरा टटोला था #Poetry
read moreikadashi tripathi
घर आजा परदेसी"..... "कभी जो बे मौसम बरसात आ गई होगी" "तुझे याद ना मेरी आई किसी से अब क्या कहना"... यह स्वर भीने भीने कानों में पड़ रहे थे.. इतनी धीमी आवाज कहां से आ रही है?? इतनी भयंकर रात में आखिर गांव में किसको दीवानगी छाई है ?? अक्सर यह आवाजें पिछले पांच छह महीनों से आ ही रही थी.. #Books
read moreikadashi tripathi
घर आजा परदेसी"..... "कभी जो बे मौसम बरसात आ गई होगी" "तुझे याद ना मेरी आई किसी से अब क्या कहना"... यह स्वर भीने भीने कानों में पड़ रहे थे.. इतनी धीमी आवाज कहां से आ रही है?? इतनी भयंकर रात में आखिर गांव में किसको दीवानगी छाई है ?? अक्सर यह आवाजें पिछले पांच छह महीनों से आ ही रही थी..
घर आजा परदेसी"..... "कभी जो बे मौसम बरसात आ गई होगी" "तुझे याद ना मेरी आई किसी से अब क्या कहना"... यह स्वर भीने भीने कानों में पड़ रहे थे.. इतनी धीमी आवाज कहां से आ रही है?? इतनी भयंकर रात में आखिर गांव में किसको दीवानगी छाई है ?? अक्सर यह आवाजें पिछले पांच छह महीनों से आ ही रही थी.. #Books
read moreAnil Siwach
|| श्री हरि: || 10 - आर्त 'बाबूजी! आज तो आप कहीं न जायें।' कोई नीचे से गिड़गिड़ा रहा था। उसका लड़का बिमार था और उसकी दशा बिगड़ती जा रही थी। आज कम्पाउंडर आया नही था। अस्पताल बंद रखना कल शाम को निश्चित हो चुका था वृद्ध डाक्टर अपने मकान में ऊपरी तल्ले में बैठे अपनी लड़की से श्रीमद्भागवत का बंगला अनुवाद सुन रहे थे। 'मैं डाक्टर हूँ बेटी! स्निग्ध स्वर में उन्होंने कहा, 'मेरी आवश्यकता हिंदू-मूसलमान को समान रूप से है। कोई इस बुड्ढे को मारकर क्या पावेगा?' 'उत्तेजना मनुष्य को पिशाच बना देती है।' दूर से 'अ #Books
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