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bunny HindUstani

#Firstpoetry#mypet#streetdog#missingyoutudda उछलता था, कूदता था मेरे पैरों के पास ही खेलता था बहुत ही प्यारा था था सबसे जुदा न जाने कहां खो गया मेरा टूड्डा। जब मैं बिस्कुट का पैकेट लेकर जाता था

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#firstpoetry#mypet#streetdog#missingyoutudda
उछलता था, कूदता था
मेरे पैरों के पास ही खेलता था 
बहुत ही प्यारा था
था सबसे जुदा 
न जाने कहां खो गया मेरा टूड्डा।

जब मैं बिस्कुट का पैकेट लेकर जाता था

Anil Siwach

|| श्री हरि: || 28 - स्पर्धा कन्हाई अतिशय सुकुमार है और सखाओं में सबसे अनेक विषयों में तो तोक से भी दुर्बल है, किन्तु हठी इतना है कि जो धुन चढेगी पूरा किये किये बिना मानेगा। सब खेलों में आगे कूदेगा भले वह इसके लिए बहुत कठिन हो। अब आज दाऊ ने लम्बी छलाँग का प्रस्ताव किया तो सबसे पहिले पटुका, वनमाला उतार कर दूर रखकर प्रस्तुत हो गया! अलकें तो इसकी सुबल ने समेट कर पीछे बॉंधी। 'कृष्ण! तू रहने दे!' भद्र ने कहा - 'तू यहां एक ओर बैठकर देख कि कौन कहाँ तक कूदता है। हममें-से किसी को निर्णय करने वाला भी

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|| श्री हरि: || 
28 - स्पर्धा

कन्हाई अतिशय सुकुमार है और सखाओं में सबसे अनेक विषयों में तो तोक से भी दुर्बल है, किन्तु हठी इतना है कि जो धुन चढेगी पूरा किये किये बिना मानेगा। सब खेलों में आगे कूदेगा भले वह इसके लिए बहुत कठिन हो।

अब आज दाऊ ने लम्बी छलाँग का प्रस्ताव किया तो सबसे पहिले पटुका, वनमाला उतार कर दूर रखकर प्रस्तुत हो गया! अलकें तो इसकी सुबल ने समेट कर पीछे बॉंधी।

'कृष्ण! तू रहने दे!' भद्र ने कहा - 'तू यहां एक ओर बैठकर देख कि कौन कहाँ तक कूदता है। हममें-से किसी को निर्णय करने वाला भी

Anil Siwach

।।श्री हरिः।। 21 - मुझे ढूंढो लुका-छिपी का खेल जब खेला जाय, कन्हाई समझ ही नहीं पाता कि उसे छिपे रहना चाहिए और ढूंढने वाले से बोलना नहीं चाहिए। यह तो छिपने के स्थान से निकलकर पुकारेगा - 'मुझे ढूंढ।' श्रुतियों और योगीन्द्र-मुनीन्द्र युग-युग से ढूँढते होंगे इसे और समस्त साधकों का यही अन्वेष्य होगा, यह भिन्न बात है - उन्हें न मिलता होगा; किन्तु गोपकुमारों के लिए - प्रेमैकप्राण जनों के लिए तो यह कभी छिपा नहीं रहा किं इसे ढूँढा जाय। उनसे इसे छिपना आता ही नहीं है। कन्हाई छुपा ही हो तो कौन ढूँढकर पाव

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।।श्री हरिः।।
21 - मुझे ढूंढो

लुका-छिपी का खेल जब खेला जाय, कन्हाई समझ ही नहीं पाता कि उसे छिपे रहना चाहिए और ढूंढने वाले से बोलना नहीं चाहिए। यह तो छिपने के स्थान से निकलकर पुकारेगा - 'मुझे ढूंढ।'

श्रुतियों और योगीन्द्र-मुनीन्द्र युग-युग से ढूँढते होंगे इसे और समस्त साधकों का यही अन्वेष्य होगा, यह भिन्न बात है - उन्हें न मिलता होगा; किन्तु गोपकुमारों के लिए - प्रेमैकप्राण जनों के लिए तो यह कभी छिपा नहीं रहा किं इसे ढूँढा जाय। उनसे इसे छिपना आता ही नहीं है।

कन्हाई छुपा ही हो तो कौन ढूँढकर पाव


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